लंदन के बेलासाइज पार्क इलाके में 20 मेयर्स फील्ड गार्डंस एक खूबसूरत सी कोठी है जिसके पास से गुजरते हुए उस पर जड़े पीतल के दो बड़े अंडाकार बोर्ड ध्यान खींच लेते हैं। यह मनोविज्ञान और मनश्चिकित्सा के जनक सिगमंड फ्रायड की वह कोठी है जिसे उन्होंने कभी, ‘इस ग्रह पर मेरा आखिरी पता ठिकाना’ कहा था। सितंबर 1939 को इसी घर में फ्रायड ने अपने जीवन की अंतिम सांसें ली थीं।
यहूदी मूल के डॉ. फ्रायड जर्मनी के नागरिक थे जो काम के सिलसिले में चिकित्सा शास्त्रियों के तब के बड़े ठिकाने आस्ट्रिया की राजधानी वियना में जा बसे थे, जहां उन्होंने अपनी कालजयी कृतियां लिखीं और दुनिया भर में ख्याति कमाई। पर उस समय का योरोप नात्सीवादी हिटलर और उसके यहूदी उन्मूलक जुझारू जत्थों का योरोप बनता जा रहा था। कोई भी वैचारिक तानाशाही सबसे पहले नए उदार विचारों और उनको स्वर देने वालों के खिलाफ मोर्चा खोलती है। 1933 में बर्लिन में 300 पुस्तकों को राष्ट्रीयताऔर नात्सी विचारधारा विरोधी बताकर उनकी सार्वजनिक होली जलाई गई। इसमें फ्रायड और उनके कई सहयोगी यहूदी मनोवैज्ञानिकों के ग्रंथ भी शामिल थे।
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आंच जब आस्ट्रिया तक पहुंचने लगी, तो एक-एक कर फ्रायड के यह सब सहकर्मी पनाह पाने के लिए ब्रिटेन या अमरीका चले गए। जाते-जाते उन्होंने अपने मान्य गुरु को भी समय रहते योरोप से बाहर जाने की सलाह दी, लेकिन फ्रायड 1938 तक वियना में बने रहे। आखिरकार जब हिटलर ने आस्ट्रिया पर कब्जा कर वहां के यहूदियों पर बर्बर अत्याचार शुरू किए तो पानी सर से गुजर गया और भरे मन से फ्रायड सपरिवार नात्सीवाद के शरणार्थी बन कर ब्रिटेन चले आए जहां उनको हाथों हाथ लिया गया।
लंदन में आते-आते वयोवृद्ध फ्रायड जो कैंसर से जूझ रहे थे, काफी कमजोर हो चले थे, लेकिन 20 मेयर्स फील्ड के मकान में रहते हुए अपने अंतिम वर्ष में भी उन्होंने लिखना और मरीजों से मिलना जारी रखा। उनके बाद उनकी बेटी अन्ना जो खुद भी बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र की एक प्रसिद्ध हस्ती थीं 1982 तक इस मकान में रहीं और अपनी अंतिम वसीयत में इस मकान को जिसके अध्ययन कक्ष और बगीचे को, फ्रायड परिवार ने उनकी भावनाओं का खयाल रखते हुए बिलकुल उनके वियना वाले निवास जैसा बनाने की भरसक कोशिश की थी, एक संग्रहालय बनाने के लिए नगर को सौंप गईं।
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वियना से आते हुए फ्रायड अपनी प्रिय और विशाल लाइब्रेरी, अपने विख्यात काउच जिस पर लेट कर उनके मनोरोगी मरीज बेबाकी से अपने दुस्वप्न उनको सुनाते थे, दुनिया भर की सैकड़ों बरस पुरानी प्रतिमाओं और अन्य दुर्लभ कलाकृतियों का संकलन साथ ले आए थे। फ्रायड म्यूज़ियम में वे सभी जस की तस सजी हुई हैं। गुलाबों से भरे हाते को पार कर घर में घुसते ही सीढ़ियों के पास फ्रायड के दो बड़े चित्र लगे हैं। इनमें से एक को प्रसिद्ध जर्मन कलाकार फर्डिनेंडश्मुत्ज़र ने उनसे मुलाकात के दौरान पहले चारकोल और फिर तैल रंगों से बनाकर डॉक्टर को भेंट किया था, जो फ्रायड को बहुत पसंद आया था।
दूसरा चित्र मशहूर लातिन अमेरिकी पेंटर साल्वाडोर डाली ने 1938 में बनाया था जो फ्रायड को नहीं दिखाया गया क्योंकि उनके मित्र लेखक स्टीफान ज़्विग को लगा कि उस चित्र में फ्रायड के चेहरे पर मौत की परछाईं साफ दिखती है। सीढ़ियों से ऊपर एक कक्ष में अन्ना द्वारा संयोजित एक पुरानी फिल्म चलती रहती है जिसमें उनकी और उनके पिता की अंतिम यादें कैद हैं। बगल में फ्रायड की मशहूर लाइब्रेरी है, जिसमें मनोविज्ञान के अलावा इतिहास, मिथक, कला, साहित्य और दर्शन शास्त्र पर दुनिया भर की किताबों का दुर्लभ संकलन है।
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साथ ही वह मशहूर दीवान (रिक्लाइनिंग काउच) भी है जिस पर लेटकर फ्रायड के मरीज अपने मन की गांठें धीमे-धीमे खोलते थे। फ्रायड चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठे हुए वे जानकारियां नोट करते जाते थे। यही जानकारियां उनकी विशुद्ध मनोवैज्ञानिक पुस्तकों की रचना का मूलाधार हैं। खुद फ्रायड का यह भी कहना है कि उनको मानव अंतर्मन की कुछ बहुत अंतरंग बारीकियां पढ़ने में विज्ञान की अपेक्षा कई बार रचनात्मक लेखकों और दार्शनिकों से अधिक जानकारियां मिलती रहीं।
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कला प्रेमी डॉ. फ्रायड को शुरू से बहुत पुरानी कलाकृतियां जमा करने का शौक था। सौभाग्य से वे यह सारा संकलन वियना छोड़ते हुए अपने साथ लेते आए जिसे उनके बच्चों ने बहुत मनोयोग से उनके अध्ययन कक्ष और कंसल्टिंग कक्ष में ठीक वैसे ही सजा दिया जैसे वे वियना में लगी हुई थीं। आज उनकी लाइब्रेरी में प्रदर्शित यह लगभग 2000 कलाकृतियां हजारों साल पुरानी कब्रों से निकली धातु, मिट्टी, संगमरमर या अन्य तरह के पत्थरों से गढ़ी गई मानवीय आकृतियां हैं।
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अपनी छड़ी से उनको अपने एक मरीज को दिखाते हुए फ्रायड ने कहा था कि यह कलाकृतियां उनको सदा याद दिलाती हैं कि जहां कब्र में गड़ी मानव देह हमारे वाह्य मन की यादों की तरह समय के साथ गल जाती है, पर मिट्टी में दफ्न इन कलाकृतियों की ही तरह अवचेतन में दफनाई गई स्मृतियां अनश्वर होती हैं। इसलिए सही मायनों में मानव मन को उसके सारे राग-विराग सहित समझना हो, तो उसकी जड़ें अवचेतन मन के धीरजमय उत्खनन से ही खोजी जा सकती हैं।
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