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परमाणु हथियारों का विरोध करने वाले देशों में ही मची है हथियार जमा करने की होड़, तो कैसे बचेगी दुनिया

अब समय आ गया है कि निरस्त्रीकरण के प्रयासों में बहुत तेजी लाई जाए। अभी तक के प्रयासों से विश्व सुरक्षा के नजदीक नहीं आ सका है। ऐसे में धरती को परमाणु हथियारों के खतरे से मुक्त करने के लिए हमें कुछ बड़े और व्यापक बदलावों की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए व्यापक स्तर पर जन समर्थन जुटाना जरूरी है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरस्त्रीकरण अभियानों से यह पूछा जाए कि उनकी सबसे बड़ी सफलता क्या रही है तो वे संभवतः यही कहेंगे कि परमाणु हथियारों का जो विश्व भंडार 1980 के दशक में 60000 के आसपास था, वह अब 15000 के आसपास हैं।

पर यदि उनसे आगे यह पूछा जाए कि क्या इस कारण विश्व और सुरक्षित हुआ है तो उनका उत्तर नकारात्मक ही होगा क्योंकि यदि 60000 परमाणु हथियार पूरे विश्व को कई बार पूरी तरह बर्बाद कर सकते थे, तो 15000 परमाणु हथियार भी पूरे विश्व को कई बार पूरी तरह बर्बाद कर सकते हैं। विश्व को कई बार पूरी तरह बर्बाद करने की विध्वंसक क्षमता तो आज तक बनी हुई है।

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दरअसल हजारों की बात तो रहने दें, यदि कुछ सौ परमाणु हथियारों का भी उपयोग कभी हो गया तो करोड़ों लोग तो तुरंत मारे जाएंगे और करोड़ों अन्य लोग तिल-तिल कर बाद में मरते रहेंगे। इसके बाद दूर-दूर तक ऐसे पर्यावरणीय और मौसमी बदलाव आएंगे जिनमें अधिकांश बचे हुए मनुष्यों और जीवों के लिए भी अस्तित्व बचाए रखना लगभग असंभव होगा।

यदि इस दृष्टि से देखा जाए तो सुरक्षा स्थिति में कोई बेहतरी नहीं हुई क्योंकि 15000 हथियार मौजूद है व लगभग 3000 हथियार तो वास्तविक उपयोग के लिए निरंतर तैनात स्थिति में हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे टैक्टीकल अणु हथियार भी विकसित किए गए हैं जिनका उपयोग सामान्य सैन्य हमले की स्थिति में भी किया जा सके।

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परमाणु हथियारों के संदर्भ में पिछले लगभग पांच वर्षों में विश्व में स्थिति और विकट हुई है। परमाणु हथियारों के और आधुनिकीकरण और मजबूती के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने निवेश को बहुत बढ़ाया और इसके बाद रुस और चीन ने भी ऐसा ही किया। इसके अतिरिक्त अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों पर नियंत्रण के जो समझौते हुए हैं, उनमें से एक महत्त्वपूर्ण समझौते का नवीनीकरण वर्ष 2019 में नहीं हो सका और कुछ अन्य समझौतों के नवीनीकरण की संभावना भी धूमिल होती जा रही हैं।

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इस कारण से (और कुछ अन्य कारणों से) अणु हथियारों के बुलेटिन से जुड़े वैज्ञानिकों ने वर्ष 2017 के बाद के समय को विशेष चिन्ता का समय बताया है। इस संस्थान के परामर्शदाताओं में 15 नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक भी हैं। यह सब आपसी परामर्श से एक ऐसी घड़ी ‘डूमस्डे क्लाक’ का संचालन करते हैं जिसमें अर्द्धरात्रि (या रात के 12 बजने) को धरती पर बहुत बड़े संकट का पर्याय माना गया है। धरती ऐसे बड़े संकट से कितनी दूर है इस आधार पर सुईयों का स्थान निर्धारित दिया जाता है। इस वर्ष इसका स्थान (रात के) 12 बजने में 2 मिनट पर निर्धारित किया गया है जो कि संकट से सबसे नजदीक की स्थिति है। बड़े सकंट से इतने अधिक नजदीक डूमस्डे क्लाक की सुईयां कभी नहीं रखी गई हैं। यह तीन कारकों के आधार पर किया गया है जिनमें से एक परमाणु हथियार है।

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अब समय आ गया है कि निरस्त्रीकरण के प्रयासों में बहुत तेजी लाई जाए। अभी तक के प्रयासों से विश्व सुरक्षा के नजदीक नहीं आ सका है। ऐसे में धरती को परमाणु हथियारों के खतरे से मुक्त करने के लिए हमें कुछ बड़े और व्यापक बदलावों की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए व्यापक स्तर पर जन समर्थन जुटाना जरूरी है। विश्व में अमन-शांति की जन-भावनाएं जितनी मजबूत होगी, उतनी ही यह संभावना रहेगी कि परमाणु हथियारों की समाप्ति की ओर बढ़ा जा सके।

विश्व के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि क्या इस विषय को समय रहते उचित प्राथमिकता मिल सकेगी व क्या इसे सुलझाया जा सकेगा। यह तभी हो सकेगा जब विश्व स्तर पर अमन-शांति के जन अभियानों का एक बड़ा उभार आए। अभी इसका इंतजार है।

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