केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इस सप्ताह पीएम मोदी को इस बात का श्रेय दिया कि उन्होंने अमेरिका द्वारा ईरान के तेय निर्यातकों, बैंकिंग और नौ-परिवहन कंपनियों पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध से भारत को छूट दिलाने में सफलता प्राप्त की।
हालांकि, विश्लेषकों और विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि इसे लेकर सरकार का जश्न बहुत थोड़े समय के लिए ही चलेगा क्योंकि ईरान से आयात किए जाने वाले कच्चे तेल में कमी आएगी। यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, जिसका पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों पर असर पड़ेगा और भारत में भी इसका असर होगा।
सऊदी अरब में भारत के पूर्व राजदूत और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सचिव तलमीज अहमद ने कहा, “6 महीने से लेकर 1 साल के भीतर आप पाएंगे कि तेल के दामों की वृद्धि में इसका असर होगा।”
प्रतिबंध लगाने से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भारत समेत 7 अन्य देशों को ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध से छूट देने की बात कही थी। अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, 700 से ज्यादा व्यक्तियों, संस्थानों, पानी के जहाजों और हवाई जहाजों के नाम प्रतिबंध सूची पर हैं, जिनमें कई बड़े बैंक, तेल निर्यातक, नौ-परिवहन कंपनियां शामिल हैं।
अहमद ने कहा, “अभी के हिसाब से ईरान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को 2.7 मिलियन बैरल तेल प्रतिदिन मुहैया करा रहा है। अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंध के कारण वैश्विक तेल कीमतों पर बहुत गंभीर असर पड़ेगा।” उन्होंने इसका भी अंदेशा जताया कि दूसरे तेल उत्पादक अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग के हिसाब से तेल मुहैया कराने में सक्षम नहीं होंगे।”
भारत में संकेत उत्साहवर्द्धक नहीं है, जिसे अमेरिका से साथ मिलकर काम करते हुए देखा जा रहा है। पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से दावा किया कि नरेन्द्र मोदी सरकार ईरान से अपना तेल आयात पिछले वित्त वर्ष के 4 लाख 52 हजार बैरल प्रतिदिन से घटाकर 3 लाख बैरल प्रतिदिन करने के लिए सहमत हो गई है।
अमेरिका द्वारा दी गई छूट की शर्तों के अनुसार, भारत को अगले साल मई तक ईरान से कच्चे तेल के आयात को पूरी तरह बंद कर देना होगा। बता दें कि उसी वक्त भारत में लोकसभा चुनाव हो रहे होंगे।
उस समय तक घरेलू तेल कीमतों को स्थिर बनाए रखने की सरकार की कोशिशें योजना के अनुसार शायद सफल न हो सकें और बढ़ी हुई तेल कीमतों के नकारात्मक राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
विश्लेषकों का अनुमान है कि ईरान के कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता कम करने के भारत के कदम का प्रभाव अमेरिका द्वारा दी गई छूट की मोहलत खत्म होने से पहले ही दिखने लगेगा।
रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा ने बताया, “अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कमी होगी। क्योंकि न तो इराक और न ही सऊदी अरब इस हालत में है कि वो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाली कमी को पूरा कर पाए।”
आगा ने आगे कहा, “सभी देश तेल पर निर्भर हैं, और जिन 8 देशों को थोड़े समय के लिए छूट मिली है और जो ईरान से होने वाले आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं, उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।”
आगा ने तर्क दिया कि जैसे ही तेल पर निर्भर विकासशील विश्व अर्थव्यवस्थाएं ईरान से कच्चे तेल का आयात घटाएंगी, उन्हें उस कमी को पूरा करने के लिए सऊदी अरब की तरफ रूख करना होगा। उनके अनुसार उसे पूरा करना रियाद के लिए भी संभव नहीं होगा।
सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने पिछले महीने यह विश्वास जताया था कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ‘ओपीईसी’ ईरान के कच्चे तेल की कमी को पूरा कर रही है, जिस दावे को ईरान और अन्य विश्लेषकों ने गलत ठहराया था। उसी समय के आसपास 86 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से बढ़ी हुई हालिया तेल कीमतों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ईरान के कच्चे तेल के बगैर काम चलाया जा सकता है?
भारत-ईरान व्यापारिक संबंध
भारत और ईरान के बीच मौजूद व्यापार का एक बड़ा हिस्सा ईरान से आयात हुई चीजों का है और दोनों एशियाई शक्तियों के बीच काफी विविधता से भरे हुए व्यापारिक संबंध हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल भारत से ईरान निर्यात की जाने वाली चीजों की कीमत 2.7 बिलियन डॉलर के साथ दो साल की ऊंचाई पर पहुंच गई। इस मध्य एशियाई देश को भारत से निर्यात की गई चीजों में अनाज, रसायनिक पदार्थ, दवाईयां, मशीनरी और चाय प्रमुख हैं।
इसके अलावा चाबहार नाम का महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग दोनों देशों को जोड़ने की सरकार की बहुत बड़ी पहल है। यह पाकिस्तान के क्षेत्र में बिना घुसे बाहर-बाहर भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस से जोड़ेगी जिनसे वह व्यापरिक संबंध बढ़ाना चाहता है।
भारत और ईरान के बीच हुए समझौते के अनुसार, चाबहार बंदरगाह के पहले फेज में भारत दो ठिकानों को बनाएगा और चलाएगा जिसमें 85.21 मिलियन डॉलर का निवेश होगा और 10 साल की लीज पर 22.95 मिलियन डॉलर राजस्व खर्च होगा।
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