पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट ने हाफिज सईद को रिहा कर दिया है। दस माह की नजरबंदी के बाद भी ये रिहाई अपनी जगह एक सवालिया निशान है। दस माह में पाकिस्तान की सरकार हाफिज सईद के खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं कर सकी, जिसके आधार पर उसकी नजरबंदी को बढ़ाया जा सकता। पाकिस्तान की सीमा में हाफिज सईद के खिलाफ किसी भी तरह का कोई मुकदमा नहीं है। लेकिन ऐसा कोई मुकदमा दस महीने पहले भी नहीं था जब पाकिस्तान की सरकार ने हाफिज सईद को नजरबंद करने का फैसला किया था। जब बगैर मुकदमे के नजरबंद किया जा सकता था, तो नजरबंदी की मियाद क्यों नहीं बढ़ाई जा सकती।
हाफिज सईद के साथ नजरबंदी का ये खेल पहली बार नहीं खेला गया है। इससे पहले दो बार उसे इसी तरह नजरबंद किया गया है और बाद में उच्च न्यायलय ने उसे रिहा कर दिया है। इस तरह ना ये नजरबंदी नई थी और ना ही रिहाई नई है बल्कि सब पुरानी स्क्रिप्ट है। पाकिस्तान की सरकार और हाफिज सईद मिलकर ये ड्रामा अक्सर खेलते हैं। दोनों को अब इस ड्रामे के एक-एक सीन अच्छी तरह याद हो गए हैं।
ये कहना भी गलत ना होगा कि हाफिज सईद ना तो नजरबंद होकर नजरबंद होता है। और ना ही रिहा हो कर रिहा होता है। वह पाकिस्तान सरकार के एक सच्चे अनुशासित सिपाही की तरह है, जो सिर्फ अपनी ड्यूटी करता है। उसकी कामयाबी की एक वजह ये भी है कि हालात कुछ भी हों, उसके हक में हों या उसके खिलाफ, वह पाकिस्तन सरकार का वफादार रहता है। कभी गिला शिकवा नहीं करता, नाराज नहीं होता। पढ़ा-लिखा होने की वजह से उसे देश की अंतरराष्ट्रीय मजबूरियों का भी एहसास रहता है। और वह हर मुश्किल वक्त में अपने लिए रास्ता निकालने का तरीका ढूंढ ही लेता है। वह ना जिद्दी है ना ही हठधर्मी। वह हमेशा लचक दिखाता है। ये उसकी कामयाबी का राज है, जिसकी वजह से वह हर मुश्किल वक्त से बाहर निकल आता है। हाफिज सईद बहुत गर्व से कहता है कि उसने आज तक पाकिस्तान में कानून के खिलाफ कोई काम नहीं किया है। वह पाकिस्तान के संविधान और कानून का पालन करने वाला व्यक्ति है।
ये सवाल अपनी जगह अहम है कि इस बार दस महीने पहले उसे क्यों नजरबंद किया गया था। ये एक खुली हकीकत है कि दस महीने पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नए-नए अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर बैठे थे। पाकिस्तान ने उस मौके पर अपने उस वक्त के विदेश राज्य मंत्री तारिक फातमी को अमेरिका भेजा ताकि एक तो ट्रंप की पाकिस्तान को लेकर अपनाई जाने वाली नीति को पूरी तरह समझा जा सके और अगर संभव हो तो बातचीत शुरू की जा सके। तारिक फातमी ने रिपोर्ट दी कि अमेरिका को जहां और बहुत सारी नाराजगियां हैं, वहीं हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई ना होने की वजह से भी अमेरिका नाराज है। इसलिए इससे पहले कि ट्रंप कोई कार्रवाई करे हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ये भी कहा गया कि हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई से ट्रंप खुश होंगे। और पाकिस्तान को लेकर उनकी नीति नरम हो सकती है। इसलिए इस मामले में भारत को खुश होने की कोई जरूरत नहीं कि हाफिज सईद को भारत के किसी दबाव की वजह से नजरबंद किया गया था। हाफिज की नजरबंदी में भारत का कोई दबाव नहीं था।
लेकिन अब सवाल ये है कि फिर अब रिहा क्यों किया गया? तो बात सीधी है कि अमेरिका से बात करके ही रिहा किया गया। शायद बहुत लोग ये बात नजरअंदाज कर रहे हैं कि नवंबर में अमेरिकी कांग्रेस ने एक बिल पास किया है, जिसमें ये कहा गया है कि पाकिस्तान को दहशतगर्दी के लड़ाई में सहयोग के नाम पर दी जाने वाली आर्थिक मदद इस शर्त पर दी जाए कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ अमेरिका का सहयोग करेगा।
इस मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस बिल में पहले हक्कानी नेटवर्क के साथ लश्कर ए तैयबा का नाम भी शामिल था लेकिन आखिरी मौके पर लश्कर ए तैयबा का नाम निकाल दिया गया। पाकिस्तान समझता है कि लश्कर का नाम निकालना एक तो पाकिस्तान की कूटनीतिक कामयाबी है कि उस ने अमेरिका से ये बात मनवा ली है कि अमेरिका हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई की शर्त से पीछे हट जाए। और इस अमेरिकी बिल से लश्कर ए तैयबा का नाम निकलने के बाद ही पाकिस्तान में हाफिज सईद की रिहाई के रास्ते खुले।
ये कहा जा सकता है कि हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई अब पाक-अमेरिका संबंध के एजेंडे पर नहीं है। ये अब पाक-भारत मामला है और पाकिस्तान, भारत के दबाव को अहम नहीं समझता। ये बात बिल्कुल नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि अमेरिकी रक्षा सचिव 3 दिसंबर को पाकिस्तान के दौरे पर आए और उनके दौरे से एक सप्ताह पहले हाफिज सईद की रिहाई साफ जाहिर कर रही है कि अमेरिका से अंडरस्टैंडिंग मौजूद है। वरना पाकिस्तान-अमेरिका संबंध इस समय जिस मोड़ पर हैं वहां पर पाकिस्तान इतनी हिम्मत नहीं कर सकता कि वह अमेरिकी रक्षा मंत्री के दौरे से एक हफ्ते पहले हाफिज सईद को रिहा कर दे।
ये भी सच्चाई है कि हाफिज सईद की रिहाई पर व्हाइट हाउस और अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से निंदात्मक बयान जारी किए गए हैं, लेकिन पाकिस्तान का ये मानना है कि ये बयान सिर्फ रस्म अदायगी हैं। अमेरिका इस स्थिति में तो नहीं था कि हाफिज सईद की रिहाई को स्वागत योग्य कदम ठहराता। उन्हें इसकी निंदा ही करनी थी। अमेरिकी नीति को अमेरिकी कांग्रेस के बिल की रौशनी में देखने की जरूरत है।
अमेरिका और पाकिस्तान में संबंध अभी पूरी तरह ठीक नहीं हैं। मगर ऐसा भी नहीं है कि ये संबंध अब बहुत खराब हैं। ये संबंध बुरे दौर से गुजर आए हैं। कहा जा रहा है कि ट्रंप को पाकिस्तान की अहमियत का अंदाजा हो गया है। वह अब पाकिस्तान से संबंध के महत्व को समझ गए हैं और अब इसलिए खतरे वाली कोई बात नहीं है। अमेरिका को ये भी एहसास हो गया है कि चीन के साथ ‘सी पैक’ के बाद पाकिस्तान की अमेरिका पर निर्भरता बहुत कम हो गई है। इसलिए अमेरिका प्रतिबंध लगाकर पाकिस्तान से कोई बात नहीं मनवा सकता है। इसलिए बातचीत के दरवाजे खुल गए हैं। अमेरीकी सेक्रेट्री ऑफ स्टेट पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं और अब रक्षा मंत्री का भी दौरा हो रहा है।
ये बात भी सही है कि हाफिज सईद का पाकिस्तानी राजनीति में पदार्पण हो चुका है। उनकी राजनीतिक पार्टी को पाकिस्तान की सरकार का विरोध करने की वजह से पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने पंजीकृत करने से मना कर दिया है। लेकिन वह अदालत में जा चुके हैं। इससे पहले भी चुनाव आयोग ने पूर्व फौजी तानाशाह जनरल जियाउल हक के नाम पर उनके बेटे की तरफ से बनाई जाने वाली राजनीतिक पार्टी को पंजीकृत करने से इंकार कर दिया था, लेकिन अदालत ने मंजूरी दे दी थी। अदालत ने कहा था कि हर पाकिस्तानी का हक है कि पाकिस्तान के संविधान के अंदर रहते हुए राजनीतिक दल बनाए। इसलिए अब हाफिज सईद को भी इजाजत मिल जाने की पूरी संभावना है, क्योंकि वह भी एक पाकिस्तानी नागरिक है। जिसके ऊपर पाकिस्तान में पाकिस्तान के किसी भी कानून के खिलाफ कोई भी मुकदमा नहीं है। वह पाकिस्तान के संविधान और पाकिस्तान के कानूनों का पूरी तरह से पालन करता है। इसलिए उसे राजनीति में आने का भी हक है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined