फिलहाल दुनिया दो तरह के देशों में बंट गई है। एक ओर ऐसे देश हैं जो कोरोना की पाबंदियों में छूट देकर अपने लोगों की जिंदगी सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरे वे हैं, जो अब भी कोरोना से जूझ रहे हैं। ऐसे देशों में से ज्यादातर के पास या तो वैक्सीन नहीं है या वैक्सीनेशन की गति धीमी है। इनमें से ज्यादातर दक्षिण एशिया में मौजूद हैं।
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एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि पिछले साल जब यूरोप और अमेरिका कोरोना वायरस के भयानक प्रकोप से जूझ रहे थे, भारत सहित इन दक्षिण एशियाई देशों की कोरोना से निपटने के लिए दुनियाभर में तारीफ हो रही थी। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने इन देशों को घुटनों पर ला दिया। कई जानकार मानते हैं कि वायरस को रोकने के उपायों के प्रति इस बार इन देशों का तेजी न दिखाना इसकी वजह रहा है।
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सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं पूरे एशिया-प्रशांत इलाके के हालात फिलहाल खराब हैं। कोरोना को नियंत्रित करने में आगे रहा चीन भी फिर से नए संक्रमण के मामलों का सामना कर रहा है। वुहान और बीजिंग में कोरोना के नए मामले सामने आए हैं जबकि मौत के मामले कम होने के बावजूद दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ऐसे देश हैं, जहां वैक्सीनेशन इतना धीमा है कि फिलहाल ये 38 OECD (ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट) संगठन के देशों की लिस्ट में सबसे निचले पायदानों पर हैं।
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अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं, "फिलहाल नीति निर्माताओं के पास तेजी से लोगों को वैक्सीनेट करके आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसमें जितनी देर होगी, अर्थव्यवस्था का नुकसान उतना ही बढ़ेगा।"
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ग्लोबल बिजनेस ट्रेड सर्किल इंक के फाउंडर और सीईओ अमोल चापेकर कहते हैं, "ये देश सिर्फ इतना और कर सकते हैं कि वे कुछ सेक्टर को पहले वैक्सीनेट करने पर जोर दें ताकि उन्हें जल्द से जल्द पूरी क्षमता के साथ शुरू किया जा सके, जैसे पर्यटन और होटल उद्योग।"
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वैक्सीनेशन के आंकड़ों में इस अंतर को देखकर ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वर्ल्ड इकॉनमिक आउटलुक के हालिया अपडेट में कहा है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं पहले की गई भविष्यवाणी की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बढ़ेंगी जबकि विकासशील बाजार और अर्थव्यवस्थाएं अपेक्षाकृत धीमी गति से वापसी करेंगे जबकि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी की औसत दर 6% ही रहेगी।
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IMF ने अपनी भविष्यवाणी में दक्षिण एशिया की कई अर्थव्यवस्थाओं की तेज आर्थिक विकास की संभावना कम कर दी है। इनमें भारत को सबसे बड़ा झटका लगा है। इसकी अपेक्षित आर्थिक विकास की दर को 12.5 फीसदी से घटाकर अब 9.5 फीसदी कर दिया गया है।
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IMF ने ऐसा करने की वजह भारत में 'कोरोना की दूसरी लहर' और 'लोगों के अर्थव्यवस्था पर कम विश्वास को' बताया है। साथ ही साफ तौर पर कहा है, "G20 अर्थव्यवस्थाओं में भारत और इंडोनेशिया जैसी वैक्सीनेशन में पिछड़ रही अर्थव्यवस्थाएं सबसे ज्यादा नुकसान उठाएंगी।"
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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत में लाखों लोगों की जान गई और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। इंडोनेशिया में भी एक लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और सरकार अर्थव्यवस्था को बचाने की जद्दोजहद में लगी है।
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फिर भी भारत में अभी मात्र 9 फीसदी और इंडोनेशिया में 11 फीसदी जनसंख्या को ही कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जा सकी हैं जबकि दुनिया में अब तक औसतन 24 फीसदी जनसंख्या को पूरी तरह वैक्सीनेट किया जा चुका है। लगभग पूरी जनसंख्या को वैक्सीनेट करने की ओर बढ़ रहे ब्रिटेन जैसे देश पर्यटन गतिविधियां भी शुरू कर चुके हैं।
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बांग्लादेश को भी कोरोना की दूसरी लहर ने बुरी तरह प्रभावित किया है। यह देश अब तक 5 फीसदी जनसंख्या को भी पूरी तरह वैक्सीनेट नहीं कर सका है। लेकिन वहां जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं, बैंक, दुकान और शॉपिंग मॉल को आधी क्षमता के साथ खोल दिया गया है।
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इसी तरह बस और ट्रेन भी आधे यात्रियों के साथ चल रही हैं। वहीं कपड़ा उद्योग को पहले ही खोल दिया गया था लेकिन पर्याप्त वैक्सीनेशन के बिना ऐसा करने से फिर से मामले बढ़ने का डर बना हुआ है।
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नेपाल और श्रीलंका का हाल भी ऐसा ही है। कोरोना के अलावा ये देश कुछ अन्य समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। नेपाल में जहां कोरोना की स्थिति को राजनीतिक अस्थिरता ने खराब किया, श्रीलंका की खराब अर्थव्यवस्था ने परिस्थिति को बिगाड़ने का काम किया। ये देश भी अर्थव्यवस्था की वापसी के प्रबंध अपने स्तर पर कर रहे हैं।
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भारत के हालात पर अमोल चापेकर कहते हैं, "भारत में कुछ असंगठित सेक्टर प्रभावित रहे हैं लेकिन निर्यात करने वाले संगठित सेक्टर जैसे- ऑटोमोटिव और मेडिकल उपकरणों पर कोरोना का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा है।
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वह कहते हैं, "सप्लाई चेन में फिलहाल समस्या आपूर्ति की नहीं बल्कि मांग की है। निर्यात किए जाने वाले प्रोडक्ट्स की मांग कम हुई है। अब डर यह है कि अगर यह मांग धीरे-धीरे बढ़ने के बजाए त्योहारों के मौसम में तेजी से बढ़ी तो फिर से सप्लाई चेन में गड़बड़ी पैदा करेगी।"
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इसी तरह वियतनाम और थाईलैंड में भी कोरोना मामले बढ़ने के साथ सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई। स्थिति इतनी खराब हुई कि वायरस का प्रसार रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के चलते नाइकी और एडिडास जूते बनाने वाली फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा।
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जानकार कहते हैं कि इससे प्रोडक्शन में जो कमी आई, उसका असर छुट्टियों के शॉपिंग सीजन में दिखेगा। यानी अगर निर्यात में ज्यादा देर हुई तो कोरोना वायरस के डेल्टा वेरियंट का एशिया पर पड़ा प्रभाव पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा।
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दक्षिण एशियाई देशों से माल मंगाने वाले अमेरिकी खुदरा व्यापारियों में इसका डर भी दिख रहा है। कुछ दिन पहले अमेरिकन अपैरल एंड फुटवियर एसोसिएशन के चीफ एक्जिक्यूटिव स्टीव लामार ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से "वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया सहित अन्य मुख्य सहयोगी देशों के साथ अमेरिका में उपलब्ध अतिरिक्त वैक्सीन शेयर करने को कहा था।"
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इन देशों में उत्पादन के लिए विशेष प्रबंध किए जाने की मांग हो रही है। थाईलैंड और वियतनाम के हालात को लेकर फेडरेशन ऑफ थाई इंडस्ट्रीज चेतावनी दे चुका है कि क्वॉरंटीन और यातायात पर रोक जैसे उपाय मजदूरों की कमी को बढ़ाएंगे और कंपनियों को उत्पादन में कमी करने के लिए मजबूर करेंगे।
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