अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़बिग्न्यू ब्रेज़िंस्की ने 2002 में चेतावनी दी थी कि इजरायल अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा खो रहा है, क्योंकि इजरायल के कब्जे के खिलाफ दूसरे ‘इंतिफादा’ या विद्रोह के दौरान इजराइल-फलस्तीनी हिंसा बढ़ गई थी।
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन और जिमी कार्टर के पूर्व सलाहकार ब्रेज़िंस्की ने उस समय इजरायल की प्रतिष्ठा संबंधी समस्या को बढ़ा-चढ़ाकर बताया था। आज, उनकी चेतावनी भविष्यसूचक लगती है।
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ब्रेज़िंस्की ने 22 साल पहले कहा था, “मुझे लगता है कि इजरायल की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बहुत खराब हो गई है। यह देश शुरू में उन लोगों की वापसी का प्रतीक था जिन्हें बहुत सताया गया था, मगर अब ऐसा लग रहा है कि वह लोगों का उत्पीड़न कर रहा है। और यह बहुत बुरा है।”
उन्होंने कहा, “ इजराइली लोग धीरे-धीरे दक्षिण अफ्रीका के श्वेत वर्चस्ववादी लोगों की तरह बनते जा रहे हैं, जो फलस्तीनियों का निम्न स्तर का मानते हैं, उनमें से बहुत से लोगों की हत्या करने में संकोच नहीं करते और इसे इस आधार पर उचित ठहराते हैं कि वे आतंकवाद का निशाना बन रहे हैं।”
दूसरे ‘इंतिफादा’ के दौरान फलस्तीनी आत्मघाती हमलों और आम इजराइली पर अन्य हमलों के प्रति इजरायल की कठोर प्रतिक्रिया, सात अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए हमले के जवाब में उसके आचरण की तुलना में फीकी है। हमास के इस हमले में करीब 1200 लोगों की जान गई थी जिनमें से ज्यादतर आम लोग थे।
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इससे इजरायल की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है। 2002 में अंतरराष्ट्रीय समुदाय इजरायल के खिलाफ नहीं था जैसा कि आज है। न ही पश्चिम में जनता की राय ऐसी थी।
उस समय, इजरायल पर विद्रोह को दबाने के लिए अत्यधिक बल प्रयोग का आरोप लगाया गया था, लेकिन नरसंहार और अंतरराष्ट्रीय कानून के बड़े पैमाने पर उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया गया था। 2002 में, इजराइल को दुनिया की सबसे बड़ी अदालतों, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में नहीं घसीटा गया था।
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साल 2024 में, इज़राइल अपना सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है। ऐसा लगता है कि इसकी कूटनीति गाजा से आने वाली मौत और विनाश की रोज़ाना आने वाली तस्वीरों और मानवीय कर्मियों और फलस्तीनियों की गवाही से मुकाबला करने में असमर्थ है।
इजराइल के सबसे वरिष्ठ अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं, विश्लेषकों और विद्वानों द्वारा सर्वोच्चतावाद को व्यक्त करने वाले सार्वजनिक बयानों ने इजराइल की प्रतिष्ठा के ताबूत में अंतिम कील ठोक दी है।
नेतन्याहू नीत गठबंधन सरकार के मंत्रियों ने युद्ध समाप्त होने के बाद गाजा में खुद को स्थापित करने के लिए समुदायों को बसाने की वकालत की है और दावा किया है कि घेरे गए क्षेत्र में फलस्तीनियों का भूख से मरना "उचित और नैतिक" हो सकता है।
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इन दावों के साथ-साथ युद्ध अपराधों का बचाव करने वाले अनेक और सुसंगत बयान भी हैं। इसके साथ ही मानवीय सहायता के निर्बाध प्रवाह को रोकना, बल का असंगत प्रयोग जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में नागरिक हताहत हुए, अस्पतालों, स्कूलों और उपासना स्थलों जैसे संरक्षित स्थलों को निशाना बनाया गया तथा कैदियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इजरायल के लिए अपनी दीर्घकालिक मांग को आगे बढ़ाना कठिन होता जाएगा कि फलस्तीनी, अरब और मुसलमान यहूदी राज्य के “अस्तित्व के अधिकार” को मान्यता दें।
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