यूक्रेन युद्ध और अन्य वैश्विक कारणों से दुनियाभर में खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान पर हैं। इस संकट से निपटने के लिए विश्व व्यापार संगठन ने 164 सदस्य देशों के बीच एक समझौते का प्रस्ताव रखा है जिसे भारत, मिस्र और श्रीलंका का समर्थन नहीं मिल पाया है।
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164 देशों का व्यापार संगठन दो अंतरराष्ट्रीय समझौतों की कोशिश कर रहा है। इस हफ्ते जेनेवा में होने वाली व्यापार मंत्रियों की बैठक में इस प्रस्ताव को पेश किया जाना है, जिसका मकसद खाद्य संकट के खतरे से जूझ रहे विकासशील और गरीब देशों की मदद करना है।
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पहला समझौता एक घोषणा जारी करना है जिसमें विभिन्न देशों से बाजार खुले रखने, निर्यात पर पाबंदियां ना लगाने और पारदर्शिता बनाए रखने का आग्रह किया जाएगा। दूसरा समझौता इस बारे में है कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) को जाने वाला निर्यात बंद ना हो। डब्ल्यूएफपी युद्धग्रस्त, जलवायु परिवर्तन और अन्य आपदाओं की मार झेल रहे इलाकों में भूख से लड़ने के लिए अभियान चलाता है।
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि लगभग 30 देशों ने खाद्य, ऊर्जा और अन्य चीजों के निर्यात पर पाबंदियां लगा दी हैं जिनमें भारत द्वारा गेहूं निर्यात पर लगाई गई पाबंदियां भी शामिल हैं।
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विश्व व्यापार संगठन ने कहा है कि आमतौर पर उसके प्रस्तावों को भारत, मिस्र व श्रीलंका को छोड़कर बाकी सबका समर्थन मिला है। संगठन के एक प्रवक्ता ने बताया कि पहले तंजानिया भी समर्थन में झिझक रहा था लेकिन बाद में उसने समर्थन कर दिया। मिस्र और श्रीलंका के समर्थन ना करने की वजह एक मांग है। ये दोनों देश बड़े आयातक ही हैं और चाहते हैं कि समझौते में इस बात को मान्यता मिले कि खाद्य सामग्री निर्यात करने की इनकी क्षमताएं सीमित हैं।
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यानी, भारत ही एकमात्र देश है जो इस प्रस्ताव से मूल रूप से असहमत है। भारत पहले भी ऐसे कई प्रस्तावों को रोक चुका है जिनमें विश्व व्यापार संगठन ने बहुपक्षीय समझौतों की कोशिश की थी। इन समझौतों को लेकर भारत की आपत्ति अपने यहां भोजन के भंडार जमा करने को लेकर है।
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भारत चाहता है कि विकासशील देशों को अपने यहां भोजन के भंडार जमा करने की अनुमति होनी चाहिए और नियमों का उल्लंघन करने पर किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए। 2013 में संगठन ऐसे प्रावधानों के लिए अस्थायी तौर पर राजी हो गया था। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि संगठन की मीटिंग में यह सर्वोपरि प्राथमिकता थी।
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13 मई को भारत ने एकाएक गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी थी.इसके पीछे खाद्य सुरक्षा का हवाला दिया गया है और जिसके लिए कुछ हद तक यूक्रेन युद्ध को जिम्मेदार माना गया है। इससे पहले गेहूं का निर्यात बढ़ाने की बात कही गई थी. वहां के विदेश व्यापार निदेशालय की तरफ से जारी सरकारी गजट में आए नोटिस में कहा गया कि दुनिया में बढ़ती कीमतों के कारण भारत उसके पड़ोसी और संकट वाले देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरा है। गेहूं का निर्यात रोकने की प्रमुख वजह है घरेलू बाजार में उसकी कीमतों को बढ़ने से रोकना।
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इस प्रतिबंध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ गई हैं। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है। हालांकि भारत ने उन देशों को निर्यात जारी रखने का फैसला किया था, जिन्होंने "भोजन की सुरक्षा की जरूरत" को पूरा करने के लिए सप्लाई का आग्रह किया है।
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भारत में गेहूं की फसल को अभूतपूर्व लू के कारण काफी नुकसान हुआ है और उत्पादन घट गया है. उत्पादन घटने की वजह से भारत में गेहूं की कीमत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर चली गई हैं। रूस और यूक्रेन से गेहूं खरीदने वाले अंतरराष्ट्रीय आयातकों को भारत से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन मध्य मार्च में भारत में अचानक बदले मौसम के मिजाज ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दिल्ली के एक ग्लोबल ट्रेडिंग फर्म के मालिक ने आशंका जताई है कि इस साल उपज घट कर 10 करोड़ टन या इससे भी कम रह सकती है।
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संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकर आयुक्त और यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड ऐंड डिवेलपमेंट ने डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों से अनुरोध किया कि विकासशील देशों और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के लिए जरूरी खाद्य सामग्री पर पाबंदियां ना लगाएं।
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अफ्रीका में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है जहां 2020 में कुल जरूरत की 80 प्रतिशत खाद्य सामग्री को आयात किया गया था। कुल आवश्यकता के 92 प्रतिशत अनाज भी आयातित ही थे। यूएन ने कहा, “ऐसे समय में जबकि दुनिया खाने-पीने की चीजों की कमी झेल रही है, तब जमाखोरी, जरूरत से ज्यादा खाद्य सामग्री का भंडारण और उससे जुड़ी अटकलें लोगों के भोजन के अधिकार को प्रभावित करती हैं और सबके लिए भोजन मुहैया कराने की कोशिशों को कमजोर करती हैं।
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यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त व्लादिस दोंबरोवस्किस ने सोमवार को पीयूष गोयल से मुलाकात की। इसके बाद दोंबरोवस्किस ने कहा, “डब्ल्यूटीओ की मंत्री स्तरीय बैठक को सफल बनाने के लिए सभी सदस्य देशों को समझौते करने की एक जैसी भावना और उत्साह से काम करना होगा।”
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