ऐसे समय में जब महात्मा गांधी को भारत सरकार एक सेनेटरी इंस्पेक्टर बना चुकी है, उनका चरखा भी ले चुकी है और कई देशवासी उनके हत्यारे गोडसे को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, इन दिनों ब्रिटेन में वहां के इतिहास के सबसे बड़े असहयोग आन्दोलन के प्रेरणास्त्रोत महात्मा गांधी हैं। इस महीने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को उजागर करने के लिए और सरकार का ध्यान इस ओर दिलाने के लिए एक असहयोग आंदोलन आयोजित किया गया है, और यह आंदोलन सबसे सफल अहिंसक आंदोलनों में शुमार हो गया है। इस आंदोलन की अगुवाई एक्सतिन्शन रेबेलियन नामक एक समूह कर रहा है, जिसके आदर्शों में महात्मा गांधी और दुनिया भर के जन-अधिकार आन्दोलन शामिल हैं।
इस समूह ने 18 नवम्बर को केन्द्रीय लन्दन में थेम्स नदी पर बने 5 प्रमुख पुलों (साउथवार्क, ब्लैकफ्रिअर्स, वॉटरलू, वेस्टमिन्स्टर और लैम्बेथ) पर धरना दिया और फिर पार्लियामेंट स्क्वायर में अपने नेताओं का भाषण सुना। इस दौरान लगभग 70 प्रदर्शनकारियों को लन्दन पुलिस ने गिरफ्तार भी किया। इसके पहले भी इस आंदोलन के अनेक सदस्य सड़क रोकने या फिर अनेक भवनों के मुख्य गेट को रोकने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुके हैं। यह आंदोलन अब तक पूरी तरह से अहिंसक रहा है। कुछ महीनों पहले बने इस समूह ने कम समय में ही ब्रिटेन के अनेक हिस्सों में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। इसके समर्थन में कुछ आर्चबिशप, 100 से अधिक शिक्षाविद्, लेखक, रिपोर्टर और राजनेता उतर चुके हैं। इसकी आर्थिक जरूरतें लोगों के छोटे-छोटे अनुदान से पूरी होती हैं। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में छात्र, परिवार और बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। पर, लगातार आंदोलन करने वाले और उद्योगों का घेराव करने वाले ग्रीनपीस ने इस असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनाने से इनकार कर दिया है।
असहयोग आन्दोलन की दो मुख्य मांगें हैं – ब्रिटेन में वर्ष 2025 तक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक पहुंचाना और पर्यावरणीय मसलों पर सरकार को सलाह देने के लिए एक सिटीजन असेंबली की स्थापना। ब्रिटेन में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी सरकार को सलाह देने के लिए एक सिटीजन असेंबली स्थापित की गयी थी।
सभी शिक्षाविदों ने एक संयुक्त पत्र लिख कर इस समूह को अपने समर्थन का ऐलान किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि हो सकता है कि अन्य मुद्दों पर हमारी राय भिन्न हो, पर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हम एकमत हैं। हम अपने पर्यावरण को पूरी तरह नष्ट कर रहे हैं, जलवायु परिवर्तन का असर चारों तरफ दिखने लगा है और प्रजातियों का तेजी से विलुप्तिकरण हो रहा है - पूरा का पूरा विज्ञान इन तथ्यों को बार-बार साबित कर रहा है। इन सबके बावजूद सरकार इस दिशा में कोई काम नहीं कर रही है। सरकार को नींद से जगाने के लिए आंदोलन ही एकमात्र विकल्प है। इस समूह के एक संयोजक, रॉजर हल्लम, जनता की अभूतपूर्व भागीदारी से बहुत खुश हैं और इसे सफल मानते हैं।
ब्रिटेन में पिछले कुछ वर्षों से वायु प्रदूषण का असर बढ़ गया है और इस सन्दर्भ में स्कूल के बच्चों से लेकर बुजुर्गों ने अपने-अपने तारीके से आंदोलन किया। कुछ महीनों पहले लोगों ने वहां की संसद में प्रदूषण कम करने के लिए अधिवेशन के बीच में पर्चे भी फेंके थे। इन लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। इसमें सम्मिलित 80-वर्षीय एक नागरिक से जब पूछा गया कि वे जेल क्यों जाना चाहते हैं तब उन्होंने जवाब दिया था – मैं तो किसी भी दिन मर जाऊंगा, पर इस संतोष के साथ मरूंगा कि मैंने भावी पीढ़ी के लिए एक काम किया था।
यूरोपियन यूनियन ने वायु प्रदूषण के मसले पर ब्रिटेन को यूरोपियन कोर्ट में भी घसीटा था। अनेक नागरिकों और संस्थाओं ने भी ब्रिटेन के विभिन्न न्यायालयों में सरकार के विरुद्ध याचिकाएं दायर की हैं। ब्रिटेन की सरकार ने कुछ महीनों पहले वायु प्रदूषण कम करने के लिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए अल्पकालीन और दीर्घकालीन योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की, पर पर्यावरण के जानकारों ने इसे पूरी तरह से नकार दिया।
ब्रिटेन में आन्दोलन किये जा रहे हैं जहां प्रदूषण का स्तर भारत की तुलना में बहुत कम है। दूसरी तरफ हमारे देश में हरेक वर्ष प्रदूषण के कारण लाखों लोग मरते है, पर कोई आंदोलन नहीं होता। पर्यावरण यहाँ के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है। सरकारें भी इसे अपने मर्जी से चलाती हैं। प्रधानमंत्री जी कहते हैं, नमामि गंगे, और लोग समझते हैं गंगा साफ़ हो गयी। प्रधानमंत्री जी कहते हैं, स्वच्छ भारत, और मंत्री, नेता और संतरी सभी झाडू हाथ में लेकर कैमरे के सामने खड़े हो जाते हैं, जनता को भारत पूरी तरह से स्वच्छ नजर आने लगता है। पर्यावरण मंत्री कहते है, प्रदूषण से कोई नहीं मरता और जनता का दम घुटता है। हमारे यहां तो दंगे हो सकते हैं, अर्बन नक्सल हो सकते हैं, राम मंदिर हो सकता है, सबरीमाला भी हो सकता है, पर पर्यावरण पर कुछ नहीं हो सकता। केरल बाढ़ से बर्बाद हो गया, पर कोई आंदोलन नहीं हुआ। दूसरी तरफ सबरीमाला में महिलाएं नहीं जाएं, इसके लिए लाखों लोग सड़क पर उतर गए।
आप गांधी जी के आदर्शों की बात कीजिये, लोग आपको मसखरा समझ लेंगे। वैसे भी इतना तो तय है कि हम हिंसक समाज हैं, पौराणिक कथाएं भी हिंसा का महिमामंडन करती हैं। ऐसे में सत्य, अहिंसा, असहयोग और सविनय अवज्ञा का मतलब कोई समझने वाला नहीं है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढियां विश्वास नहीं करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा भी मानव था, पर हमारी तो कोई भी पीढ़ी इस पर विश्वास नहीं करती।
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