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‘फौजी इंतज़ामिया’ का नया गुलाम उर्फ इमरान खान का नया पाकिस्तान  

ज्यादा समय नहीं लगेगा, जब इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते हुए ही सरकार और ‘फौजी इंतज़ामिया’ के बीच रस्साकशी शुरु हो जाएगी। पाकिस्तानी सेना ने भी एक मंत्र सीख लिया है, पुरानी गलतियों से सीखो, उन्हें दोहराओ मत, बल्कि नई गलतियां करो...ऐसा होगा इमरान खान का नया पाकिस्तान

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

अडियाला जेल, रावल पिंडी, पाकिस्तान

कैदी नंबर 3421 : तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ

कैदी नंबर 3422 : पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी मरियम नवाज शरीफ

एमिरेट एयरलाइंस की फ्लाइट ईवाई 243 के फर्स्ट क्लास में महंगी डिज़ायनर पोशाक में फोटो-वोटो खिंचाने के बाद शरीफ बाप-बेटी की मंजिल थी, रावलपिंडी की अडियाला जेल। इसी जेल में मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड लश्कर-ए-तैयबा का जकी-उर-रहमान लखवी भी बंद है।

शरीफ बाप-बेटी को कैदियों का लिबास पहनने को दिया गया है, दोनों ऐसी जगह हैं जहां उन्हें जिंदगी की एक और सच्चाई का सामना करना पड़ रहा है। बिस्तर नहीं, फर्श पर बिछे मामूली गद्दे और करीब बने शौचालय से आती असहनीय बदबू। इस सबके बीच पाक सेना का मुख्यालय रावलपिंडी गुस्से से लाल-पीला हो रहा था, क्योंकि शरीफ की वापसी तो उनके वहम-ओ-गुमान तक में नहीं थी।

दूसरी तरफ नवाज शरीफ हैं, जो अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी अपनी पत्नी को छोड़कर बेटी मरियम के साथ गिरफ्तार होने पहुंच गए। जबकि पिछली बार तो उन्होंने सौदा कर लिया था, जिसके बदले उन्हें सऊदी अरब में राजशाही अंदाज़ में दस साल तक रहने का मौका मिला था।

नवाज शरीफ ने वापस आकर एक तरह का ट्रंप कार्ड खेल दिया है जिससे उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) में जोश आया है और ‘इंतज़ामिया’ की उस योजना को भी झटका लगा है जिसमें शऱीफ की पार्टी को कमजोर कर पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) के इमरान खान को सामने रखा जाना था।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नजम सेठी कहते हैं कि, “नवाज शरीफ और मरियम भले ही मैदान में न दिखें, लेकिन उनके भाई शाहबाज़ शरीफ कुछ हद तक उस जगह को भर पाएंगे जो फौजी इंतज़ामिया के नियंत्रण में हैं। जीप पार्टी, बलोचिस्तान की अवामी पार्टी, एमक्यूएम के कुछ धड़े, फाटा के कुछ आजाद उम्मीदवार आदि ऐसे लोग हैं जो संसद में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और इमरान खान की पीटीआई को ‘फौजी इंतज़ामिया’ के काबे में रखने का काम करेंगे।”

शरीफ की वापसी पहले जिस तरह ‘फौजी इंतज़ामिया’ के हाथ-पांव फूले हुए थे, उसी का नतीजा था कि लाहौर में एक तरह की इमरजेंसी जैसे हालात बन गए थे। इस सबके बीच नवाज शरीफ ने आईएसआई के मेजर जनरल फैज हमीद पर खुला आरोप लगाया कि इस साल का चुनाव सबसे गंदा और प्रभावित चुनाव होगा। फैज हमीद आईएसआई के मुखा हैं और आईएसआई लाहौर में एक महीने की नाकाबंदी की सलाह के बाद उन्होंने ही सेना की तरफ से चरमपंथी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक के साथ हुए समझौते पर दस्तखत किए हैं।

उधर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सांसद और बेनजीर भुट्टों के बेहद करीबी रहे फरहतुल्लाह बाबर ने भी खुलकर सेना के तीन कर्नल पर चुनावों को प्रभावित करने और उम्मीदवारों को धमकियां देने का आरोप लगाया है। फरहतुल्लाह बाबर इन दिनों बेनजीर के बेटे बिलावल को राजनीति सिखा रहे हैं। उन्होंने एक बयान में डीआई खान में कर्नल मुईज़, सुक्कुर में कर्नल आबिद अली शाह और बदिन में मेजर शहजाद पर चुनावों को प्रभावित करने और धमकियां देने का आरोप लगाया। इससे पहले ‘फौजी इंतज़ामिया’ ने कभी भी पाकिस्तान मं किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इतना खुलकर दखलंदाजी नहीं की।

इस सप्ताह शरीफ एक बार फिर अदालत में जमानत की अर्जी देकर 25 जुलाई के मतदान से पहले जेल से बाहर आने की अपील करेंगे। लेकिन शरीफ को कोई राहत मिलने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट भी इस वक्त वहां के ‘फौजी इंतज़ामिया’ के साथ है।

सुप्रीम कोर्ट ने किस तरह पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था का मजाक बना रखा है, वह वरिष्ठ वकील बाबर सत्तार के एक बयान से जाहिर हो जाती है। उन्होंने कहा कि, “आप शरीफ और मरियम को जेल में सड़ते देखना चाहते हो या नहीं, यह आपकी मर्जी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उसने पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था से जुड़े हर शख्स को शर्मिंदा किया है।”

पाकिस्तान के इस बार के चुनाव सर्वाधिक हिंसा के लिए भी याद किए जाएंगे। आत्मघाती हमलों से हुई चुनावी हिंसा में अब तक सैकड़ों लोगों की जान गई है। लेकिन पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा कहते हैं कि सेना ने आतंकवादियों की कमर तोड़ दी है। चुनावी प्रचार के आखिरी सप्ताह में न तो कार्यवाहक सरकार और न ही ‘फौजी इंतज़ामिया’ ने कोई कदम उठाया है जिसमें उम्मीदवारों को सुरक्षा मुहैया कराई जा सके। उम्मीदवार तो अब खुद सहमें हुए हैं और उन्होंने अपनी ज्यादातर बड़ी रैलियां रद्द ही कर दी हैं।

इतना ही नहीं, चुनावों में कुछेक सीटें जीतने के लिए आतंकवादी और चरमपंथी गुटों के सहयोग और समर्थन के लिए राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में भी बदलाव कर रहे हैं, और उनका ध्यान पर इस्लाम पर ज्यादा है।

फिलहाल ‘फौजी इंतज़ामिया’ को पाकिस्तान में त्रिशंकू संसद की उम्मीद है। उसने तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान जैसे प्रतिबंधित संगठन के करीब 200 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, ताकि संसद पर उसका नियंत्रण बना रहे। ‘फौजी इंतज़ामिया’ के इस कदम पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सांसद रजा रब्बानी खतरनाक बताते हैं। उनका कहना है कि, “टीएलपी के जिन लोगों ने फैजाबाद में धरना दिया था उनमें से ही करीब 150 लोग चुनावी मैदान में हैं। अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक भी चुनाव लड़ रही है। अगर इनमें से 25 सदस्य भी संसद में पहुंच गए तो सोचिए क्या हश्र होगा?”

पाकिस्तानी अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा है कि, “2018 का चुनाव दरअसल लोकतंत्र समर्थक और लोकतंत्र विरोधी शक्तियों के बीच है।”

मैंने अपना पत्रकारीय जीवन जियाउल हक के दौर में सैनिक तानाशाही के काले दिनों में शुरु किया था। लेकिन 2018 के चुनाव में मैं जो कुछ देख रही हूं, वह बहुत खतरनाक है। पहली बार मीडिया को सेल्प सेंसरशिप के लिए मजबूर किया गया है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया को हमलों का खतरा है, पत्रकारों पर हमले, धमकियां, गैरकानूनी हिरासत और यहां तक कि हत्या तक के खतरे मंडरा रहे हैं।

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ऐसे में वह संपादकीय, लेख और टीवी प्रोग्राम जिन्हें सेंसर कर दिया जा रहा है, वह सोशल मीडिया पर नजर आ रहे हैं जिससे पाकिस्तान में एक सड़े हुए तंत्र की सच्चाई सामने आती है। यूरोपीय यूनियन इलेक्शन ऑब्जर्वर मिशन जैसी संस्थाएं साफ कह रही हैं कि लालफीताशाही के चलते उन्हें चुनावों की असली तस्वीर हासिल करने में दिक्कत हो रही है।

इस बात के कयास लगने लगे हैं कि कौन बनेगा पाकिस्तान का प्रधानमंत्री। अब इसमें शक नहीं रह गया है कि इमरान खान ही अगले प्रधानमंत्री होंगे, जबकि शाहबाज शरीफ को पंजाब में सीमित कर दिया जाएगा। और ज्यादा समय नहीं लगेगा, जब इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते हुए ही सरकार और ‘फौजी इंतज़ामिया’ के बीच रक्षा, विदेश और वित्त विभाग को लेकर रस्साकशी शुरु हो जाएगी। यह वह विभाग हैं, जिन पर ‘फौजी इंतज़ामिया’ हमेशा अपना कब्जा चाहती है।

पाकिस्तानी सेना ने भी एक मंत्र सीख लिया है, पुरानी गलतियों से सीखो, उन्हें दोहराओ मत, बल्कि नई गलतियां करो...ऐसा होगा इमरान खान का नया पाकिस्तान

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