एक ओर पूरी दुनिया में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है वहीं दूसरी ओर कई देशों के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक दिन रात इस वायरस का इलाज ढूंढने में लगे हैं। अलग-अलग स्तर पर कई तरह के दावे भी किए जा रहे हैं, हालांकि अब तक इस वायरस से बचने के लिए कोई दवा नहीं मिल पाई है। वहीं इस बीच हैरान करने वाली एक खबर अमेरिका से सामने आई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया की जिस दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) को कोरोना वायरस महामारी के बीच 'गेम चेंजर' करार दिया था, उसे अमेरिकी एजेंसी ने खारिज कर दिया है।
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अमेरिका से ही एक नई स्टडी सामने आई है जिसमें कहा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा लेने वाले मरीजों की मौत ज्यादा हो रही है। मंगलवार को अमेरिका की टॉप एजेंसी ने मलेरिया की इस दवा का प्रयोग करने से मना कर दिया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोविड-19 का महामारी में ट्रायल नहीं हुआ है। ऐसे में बिना ट्रायल के इसका प्रयोग ठीक नहीं है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन कोरोना मरीजों का इलाज सामान्य तरीकों से हो रहा है, उनके मरने की आशंका कम रहती है। जबकि, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा का उपयोग करने पर मरीजों की ज्यादा मौत हुई है।
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इस स्टडी में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से करीब 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो रही है। जबकि, सामान्य प्रक्रिया से इलाज करते हैं तो सिर्फ 11 प्रतिशत मरीज ही अपनी जान गवां रहे हैं। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा कोरोना मरीज को अकेले दी जाए या एजिथ्रोमाइसिन के साथ दी जाए। मरीज के ठीक होने के चांस कम रहते हैं। जबकि, उसकी हालत बिगड़ने और मरने की आशंका ज्यादा रहती है। NIH ने डॉक्टरों के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की हैं। जिसमें कहा गया है कि इसका उपयोग न करें।
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हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के अलावा एक और एंटी-बायोटिक एजिथ्रोमिसिन के प्रयोग से भी मना कर दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि एचसीक्यू और एजिथ्रोमिसिन में टाक्सिसिटी यानी विषाक्तता की आशंका है। ऐसे में अभी इसका प्रयोग ठीक नहीं है। हालांकि विशेषज्ञों ने भी कहा है कि एचसीक्यू का दूसरा वर्जन जो क्लोरोक्वीन है उसे प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन साथ ही डॉक्टरों को इसके संभावित विपरीत प्रभावों पर भी नजर रखने के लिए कहा है। रिसर्चर्स और विेशेषज्ञों ने कहा है कि स्टडी के अलावा इसकी प्रभावशीलता साबित करने के लिए और ज्यादा आंकड़ों की जरूरत होगी।
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NIH और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के वैज्ञानिकों की टीम ने 368 कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट प्रक्रिया की जांच की। इनमें से कई मरीज या तो मर चुके थे, या फिर ठीक होकर अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिए गए थे। इस जांच में पता चला कि 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई। 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन दी गई। जबकि, 158 मरीजों का इलाज सामान्य तरीके से किया गया। उन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई। जिन 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा दी गई थी, उसमें से 27.8% मरीजों की मौत हो गई। जिन 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा के साथ एजिथ्रोमाइसिन की दवा दी गई थी उनमें से 22.1% मरीजों की मौत हो गई। जबकि, उन 158 मरीजों की बात करें तो जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई, उनमें सिर्फ 11.4% मरीज ही मारे गए।
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