पाकिस्तान की प्रसिद्ध वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमा जहांगीर नहीं रहीं। 11 फरवरी को लाहौर में उनका निधन हो गया। वह 66 साल की थीं। पाक मीडिया के अनुसार उनकी मौत कार्डियक अरेस्ट की वजह से हुई। जानकारी के अनुसार हार्ट अटैक के बाद उन्हें लाहौर के फिरोजपुर रोड अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक वह पिछले काफी समय से कैंसर से पीड़ित थीं और कई सालों से अपना इलाज करवा रही थीं।
आसमा हाशिए पर पड़े बेबस लोगों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक की तानाशाह सरकार के खिलाफ भी जमकर आवाज उठाई थी। वह यूनाइटेड नेशन्स के लिए बतौर ह्यूमन राइट्स जर्नलिस्ट्स काम करती थीं। इसके अलावा वह ह्यूमन राइट्स ऑफ कमीशन की सह संस्थापक भी थीं।आसमा 2010 से 2012 तक सुप्रीम कोर्ट बार की प्रेसीडेंट भी रही हैं। वह अक्सर सुप्रीम कोर्ट के गलत फैसलों की भी आलोचना किया करती थीं।
Published: 11 Feb 2018, 4:28 PM IST
आसमा जहांगीर का जन्म 1952 में लाहौर में हुआ था। उन्होंने किनार्ड कॉलेज से स्नातक किया और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से 1978 में वकालत की डिग्री हासिल की।
उनके निधन पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन, चीफ जस्टिस साकीब निसार और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनकी मौत की खबर के बाद कई लोग शोक जता रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम ने भी आसमा जहांगीर के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
Published: 11 Feb 2018, 4:28 PM IST
असमा ने 1987 में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की सह-स्थापना की और 1993 तक इसकी महासचिव रहीं। इसके बाद वह आयोग की अध्यक्ष बनीं। वह दक्षिण एशियाई मानवाधिकार संगठन की सह-अध्यक्ष भी रहीं। असमा को 1983 में पाकिस्तान में लोकंतत्र की बहाली को लेकर हुए आंदोलन में भाग लेने के कारण नजरबंदी में रहना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा, जो सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के शासन के खिलाफ था।
पाकिस्तान में आपातकालीन नियम लागू होने के बाद नवंबर 2007 में उन्हें फिर नजरबंदी में रहना पड़ा था। डॉन न्यूज के अनुसार, वह 2007 में वकीलों के आंदोलन के दौरान भी सक्रिय रहीं, जिसके चलते उन्हें नजरबंदी में रहना पड़ा था। असमा ने कई ऐसे मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व किया, जिन्हें उनका मौलिक अधिकार देने से मना कर दिया गया था। वह जेल में बंद अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों की आवाज बनीं।
असमा ने दो किताबें 'डिवाइन सैंक्शन? द हडूड ऑर्डिनेंस' (1988) और 'चिल्ड्रन ऑफ अ लेसर गॉड: चाइल्ड प्रिजनर्स ऑफ पाकिस्तान' (1992) लिखीं। असमा को 1995 में सितारा-ए-इम्तियाज सहित कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने के लिए असमा को 1992 में 'अमेरिकन बार एसोसिएशन इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड' से नवाजा गया। उन्हें 1995 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार और मार्टिन एनल्स अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आसमा जहांगीर पाकिस्तान में उन गिनी-चुनी आवाजों में से थीं ,जो खुले तौर पर सैनिक शासन और भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारों के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही थीं। उनका जाना पाकिस्तान की अवाम के लिए एक बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई नामुमकिन है।
Published: 11 Feb 2018, 4:28 PM IST
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Published: 11 Feb 2018, 4:28 PM IST