जब से तापमान का रेकॉर्ड रखा जाना शुरू हुआ है, तब से लेकर अब तक के वक्त में पिछले आठ साल सबसे ज्यादा गरम रहे हैं। इसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र ने की है। साल 2022 में दुनिया ने एक-के-बाद-एक कई अभूतपूर्व और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया। माना जा रहा है कि आपदाओं की नियमितता और भीषणता, दोनों में ही जलवायु परिवर्तनके कारण तेजी आई है। तापमान में लगातार हो रही इस वृद्धि का सिलसिला 2015 से शुरू हुआ है। तब से हर साल रेकॉर्ड गर्मी पड़ रही है।
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वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) के मुताबिक, उद्योग-धंधों की शुरुआत से पहले के मुकाबले दुनिया के औसत तापमानमें डेढ़ डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है। डब्ल्यूएमओ ने बताया कि पिछले आठ साल दुनिया के अब तक के सबसे गरम साल रहे हैं। ग्रीनहाऊस गैसों की लगातार बढ़ रही मात्रा और इससे जमा हो रही गरमी इसे उकसा रही है। इन आठ सालों में भी सबसे गरम 2016 रहा. इसके बाद 2019 और 2020 का नंबर है।
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यूएन एजेंसी ने बताया कि 2020 से ला नीन्या के बावजूद इतनी गरमी रही है। ला नीन्या, समुद्र और वातावरण से जुड़ी घटना है। इसमें अल नीन्यो का विपरीत असर होता है। अल नीन्यो के असर से जहां वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, वहीं ला नीन्या से वैश्विक तापमान में ठंडक आती है। डब्ल्यूएमओ ने बताया कि ला नीन्या का असर भी गरमी के इस ट्रेंड को पलट नहीं पाएगा। 1980 के बाद से ही हर अगला दशक, बीते दशक के मुकाबले ज्यादा गरम रहा है।
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अमेरिका के नेशनल ओशैनिक एंड एटमॉसफैरिक अडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नासा ने भी 12 जनवरी को 2022 के तापमान संबंधी ऐसे ही आंकड़े जारी किए। नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने स्थिति को बेहद चिंताजनक बताया। नेल्सन ने कहा, "जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। चक्रवात ज्यादा ताकतवर होते जा रहे हैं। सूखा कहर बरपा रहा है। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। मौसम के अतिरेक मिजाजसे जुड़ी घटनाओं के कारण पूरी धरती पर हमारे लिए खतरा मंडरा रहा है। हमें बेहद सख्त उपायों की जरूरत है।"
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2015 में हुए पेरिस समझौता में तय हुआ था ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जाए। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा होने पर जलवायु से जुड़े असर को संभाली जा सकने वाली स्थिति में रखा जा सकेगा। लेकिन अब डब्ल्यूएमओ ने चेतावनी दी है कि इस डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के टूटने की संभावना बढ़ती जा रही है। इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए डब्ल्यूएमओ ने छह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय डेटा सेट का इस्तेमाल किया। इनमें एनओएए और यूरोपियन यूनियन कोपरनिकस क्लाइमेट मॉनिटर (सीथ्रीएस) के आंकड़े भी शामिल हैं।
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एनओएए के प्रमुख रशेल वोस ने बताया कि 50-50 आशंका है कि 2020 के दशक में ही कोई साल हो सकता है, जिसमें तापमान इस डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को लांघ जाए। हालांकि मौजूदा अनुमान बताते हैं कि डेढ़ डिग्री की ये वृद्धि 2030 या 2040 के आखिर तक औसत तापमान नहीं बनेगी।
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2022 में गर्मी के प्रचंड असर से कुछ इलाके ज्यादा प्रभावित हुए. कोपरनिकस ने 10 जनवरी को जारी की गई अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया कि ध्रुवीय इलाकों में पिछले साल रेकॉर्ड गर्मी दर्ज की गई। मध्यपूर्व, चीन, मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका भी बेहद गरम रहे। मौसम से जुड़ी चरम आपदाओं में जहां एक तिहाई पाकिस्तान बाढ़ में डूब गया, वहीं हॉर्न ऑफ अफ्रीका के इलाके प्रचंड सूखे से जूझते रहे। यूरोप ने अपने दूसरे नंबर के सबसे गरम साल का सामना किया। फ्रांस, ब्रिटेन, स्पेन और इटली में औसत तापमान के नए रेकॉर्ड बने और यूरोप का बड़ा इलाका गरम थपेड़ों और भीषण सूखे से पीड़ित रहा।
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