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जी-7 के नेता जलवायु संकट, भूख और युद्ध से लड़ना चाहते हैं, लेकिन क्या यह सब उनके बस में है?

जी-7 के नेता जलवायु संकट, भूख और युद्ध से लड़ना चाहते हैं। लेकिन क्या यह सब उनके बस में है? कुछ लोग इससे इनकार करते हैं जबकि कुछ कहते हैं कि ज्यादा कदम उठाने होंगे।

फोटो: DW
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जर्मनी के बेवेरिया राज्य में जहां इस बार जी-7 शिखर सम्मेलन हो रहा है, उसी के पास इस बैठक के लगभग 900 विरोधी भी जुटे हैं। उनके हाथों में कई तरह के बोर्ड हैं जिन पर लिखे नारे कुछ इस तरह है: "हर कोई जी-7 के खिलाफ", "उनका सिस्टम युद्ध और संकट लेकर आता है" या फिर "यहां पर हमारी मुलाकात साम्राज्यवाद से होती है।"

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'स्टॉप जी-7 एलमाऊ' नाम का संगठन दुनिया के सात प्रभावशाली देशों के नेताओं का विरोध करने के लिए जुटा है, क्योंकि इन नेताओं के फैसले बहुत व्यापक प्रभाव वाले होते हैं। इन सात अमीर और औद्योगिकृत देशों में दुनिया की सिर्फ 10 फीसदी आबादी रहती है। लेकिन उनके फैसले 90 फीसदी आबादी को प्रभावित करते हैं, हालांकि ये फैसले कानूनी रूप से बाध्य नहीं होते।

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विरोध की वजह

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प्रदर्शनकारी क्रिस्टोफर ओल्क कहते हैं कि इस सम्मेलन में पृथ्वी के निचले दक्षिणी हिस्से से कोई नहीं है। भारत, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका के नेताओं को सम्मेलन के दूसरे दिन आमंत्रित किया गया। ओल्क मानते हैं कि इन नेताओं को सिर्फ इसलिए बुलाया गया है क्योंकि उनके देशों में ऐसे कच्चे माल हैं जो ऊर्जा के भूखे इन अमीर देशों के काम आ सकते हैं।

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यहां विरोध जताने वाले यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन की बात भी करते हैं। एक प्रदर्शनकारी का कहना है, "हम उन्हें अपनी पृथ्वी और हमारा भविष्य तबाह नहीं करने देंगे।" बाद में सब प्रदर्शनकारी मिलकर जुलूस निकालते हैं. सुरक्षाकर्मियों के घेरे में वह नारे लगाते हुए सिटी सेंटर तक जाते हैं।

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यह सब गार्मिष पार्टेनकिर्शेन में हो रहा है जो जी-7 शिखर भेंट के आयोजन स्थल से करीब 20 किलोमीटर दूर है। सम्मेलन की शुरुआत में जी-7 नेताओं ने विश्व अर्थव्यवस्था और वैश्विक इंफ्रास्ट्रक्चर का मुद्दा उठाया। इसके लिए 600 अरब डॉलर की राशि जुटाने की बात हो रही है जिससे जलवायु संरक्षण, ऊर्जा सुरक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कदम उठाए जाने की बात हो रही है।

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एकजुटता के प्रदर्शन की कीमत

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इस मौके पर जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा, "इससे जी-7 देशों की एकता पता चलती है।" यूक्रेन युद्ध के बीच जी-7 देश एकजुटता का संदेश देना चाहते हैं। लेकिन सम्मेलन के पहले ही दिन खबर आई कि रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव में मिसाइल दागी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, "हमें एकजुट रहना होगा।" साफ तौर पर अपने इस कथन के जरिए वह मॉस्को में बैठे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सख्त संदेश देना चाहते हैं।

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लेकिन इस तरह का संदेश देने के लिए क्या वाकई एलमाऊ में इस तरह का भव्य आयोजन करने की जरूरत थी? सिर्फ 48 घंटों के लिए, दुनिया के बड़े राजनेता यहां पहुंचे, जिनके साथ उनका बड़ा अमला होता है। पहले वे विमान से म्यूनिख आए, फिर हेलीकॉप्टर से उड़कर श्लोस एलमाऊ होटल पहुंचे, जहां वे दुनिया की चहल पहल से बहुत दूर हैं। इस पूरे आयोजन की सुरक्षा में 18 हजार पुलिसकर्मी तैयात किए गए और पूरे आयोजन का खर्च लगभग 18 करोड़ यूरो है।

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वादे पूरे हों

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'वन जर्मनी' नाम की संस्था के साथ काम करने वाले शेरविन सईदी कहते हैं, "अच्छी बात है कि राष्ट्र और सरकारों के प्रमुख एक दूसरे से बात करें, लेकिन उन्हें अपने वादे भी पूरे करने चाहिए।" वह बताते हैं कि जर्मनी की जी-7 अध्यक्षता के दौरान 2015 में हुए शिखर सम्मेलन में वादा किया गया था कि 2030 तक 50 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला जाएगा। लेकिन सईदी कहते हैं कि गरीबी में फंसे लोगों का आंकड़ा 2017 से बढ़ता ही जा रहा है। उनके मुताबिक, "2022 में हमारे पास पहले से 15 करोड़ ज्यादा लोग हैं जो कुपोषण का शिकार हैं।"

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युद्ध, भूख, जलवायु और कोविड- इससे पहले कभी एक साथ जी-7 सम्मेलन के सामने इतनी चुनौतियां नहीं थीं, जितनी इस बार हैं. यूक्रेन युद्ध की वजह से ऊर्जा के दाम बढ़ रहे हैं जिससे दुनिया भर में महंगाई और भुखमरी बढ़ रही है। इसकी वजह से जलवायु संकट से लोगों का ध्यान हट रहा है, हालांकि सूखे और तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि के दुष्परिणाम सब जगह पहले से कहीं स्पष्ट दिख रहे हैं।

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