कोरोना वायरस के खिलाफ जर्मनी के बहुत हद तक सफल संघर्ष का श्रेय क्रिस्टियान ड्रोस्टेन को ही दिया जाता है। महामारी से पैदा स्थिति में हमारे सामने क्या नई चुनौतियां हैं और उनसे कैसे निपटा जा सकता है, इस बारे में उनसे खास बातचीत हुई।
अभी हमें कितने दिन और इस महामारी के साथ जीना होगा?
क्रिस्टियान ड्रोस्टेन: यह कहना मुश्किल है। यूरोप में ही अलग अलग देशों में अलग अलग स्थिति है। लेकिन आने वाली सर्दियों का मौसम आसान नहीं होगा। चूंकि कोरोना वायरस का कोई टीका अगले साल तक ही आएगा, तो एक बड़ी आबादी तक टीके को मुहैया कराने में अगला पूरा साल लग सकता है।
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
मास्क से हमें जल्दी छुटकारा मिलने वाला नहीं है। भले ही हम टीकाकरण शुरू कर दें, लेकिन जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को भी फिर भी मास्क पहनना होगा। जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों में जहां सक्रमण की दर कम है, वहां भी आप यह नहीं कह सकते कि पूरी आबादी सुरक्षित है।
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
दुनिया के दूसरे हिस्सों में मौजूदा स्थिति के बारे में तो कुछ कहना और भी मुश्किल है। अफ्रीका में इसका प्रकोप कम है। शायद इसकी वजह वहां की आबादी की औसत उम्र कम होना हो। और जो भी डाटा हमारे पास है, वह शहरों का है। हमें नहीं पता है कि देहातों में इस वायरस का क्या असर हो रहा है।
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
भारत को लेकर इस समय सबसे बड़ी चिंता है। वहां आबादी बहुत ज्यादा है। इसीलिए वहां वायरस लगभग अनियंत्रित तरीके से फैल रहा है। इसके बाद बेशक दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका को लेकर सबसे ज्यादा चिंता है।
उत्तरी गोलार्ध में सर्दियां आने वाली हैं। कई देशों में पतझड़ आ भी गया है और स्वास्थ्य ढांचे पर लोगों का विश्वास कम हो रहा है। कई यूरोपीय देशों समेत दुनिया में ऐसे देश हैं जिन्हें बहुत जल्दी कड़े उपाय लागू करने होंगे।
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
यह कई स्तरों पर किया गया। शायद सबसे निर्णायक बात यह है कि जर्मनी इस बारे में बहुत जल्दी हरकत में आ गया। तेजी से सामाजिक दूरी के नियमों को लागू कर दिया गया। व्यापक पैमाने पर लेबोरेट्री टेस्टिंग ने भी इस मामले में जर्मनी को बाकी देशों से अलग किया। हमने प्रयोगशालाओं के लेवल बढ़ाने में फुर्ती से कदम उठाए।
एक वजह यह भी है कि हमारे यहां महामारी देर से शुरू हुई। बाहर से वायरस के जो भी मामले आए, वे फरवरी के अंत तक महामारी नहीं बने थे। इससे पता चलता है कि जो भी लोग बाहर से इस वायरस के साथ आए उन्हें नियंत्रित कर लिया गया और संक्रमण को आगे तेजी से नहीं फैलने दिया गया।
ये कुछ कारण हैं जो बताते हैं कि हमारी कोशिशें कैसे कारगर रहीं। और लॉकडाउन के बाद तो जर्मनी में मामले बहुत कम हो गए और अभी तक ऐसा ही है। हालांकि अब हमें संक्रमण में कुछ बढ़त दिख रही है।
सबसे पहले मास्क पहने रहिए। इस बात के वैज्ञानिक सबूत भी मिल गए हैं कि इससे संक्रमण रोकने में मदद मिलती है। दूसरा, लोगों से बात करिए। हर किसी को पता होना चाहिए कि यह वायरस किस तरह से फैलता है। ऐसे नियमों को लागू करना ही पर्याप्त नहीं है जो लोगों को समझ में ना आएं। लोगों के बीच सहयोग बहुत जरूरी है, खासकर आने वाले हफ्तों और महीनों में जब सर्दियों होंगी।
मुझे हैरानी नहीं होगी अगर दुनिया के कुछ हिस्सों में आबादी अगले साल इससे सुरक्षित हो जाए। लोग महामारी के उस चरण में दाखिल हो चुके होंगे जहां कम उम्र के मद्देनजर इससे ज्यादा घबराने की बात नहीं होगी, खासकर अफ्रीकी देशों में।
दूसरी तरफ, जिन हिस्सों में व्यापक संक्रमण फैल रहा है और वैक्सीन का इंतजार हो रहा है, वहां हम समझते हैं कि 2021 के अंत तक मास्क पहनना ही होगा। अभी और कुछ कह पाना मुश्किल है लेकिन अगले साल भी हम मास्क पहनेंगे।
Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST
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Published: 19 Sep 2020, 8:45 AM IST