2002 से 2005 तक दक्षिण पूर्व एशियाई देश म्यांमार में भारत के राजदूत रहे राजीव भाटिया ने नवजीवन से कहा, ‘रोहिंग्या शरणार्थियों पर गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने जो कहा है हमें उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। रिजिजू बुनियादी रूप से गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को भेजे गए निर्देशों के बारे में बोल रहे थे।’
उन्होंने आगे कहा, ‘रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भारत की नीति को विदेश मंत्रालय ने बेहतर तरीके से सामने रखा है। बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए 50 मिट्रीक टन राहत सहायता पैकेज देना भी एक स्वागत योग्य कदम है।’
भाटिया ने 9 सितंबर को जारी विदेश मंत्रालय के उस बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उसने म्यांमार को संयम और परिपक्वता का प्रदर्शन करने के लिए कहा था।
एमनेस्टी इंटरनेशलन सहित कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने म्यांमार में सेना और सरकार समर्थित बौद्ध रक्षक समूहों पर रोहिंग्या मुसलमानों को पूरी तरह खत्म कर देने की नीति के तहत, जान बचाकर भागने की कोशिश करने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को गोली मारने और उनके गांव के गांव जला देने का आरोप लगाया है।
किरण रिजिजू और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह दोनों ने भारत में रह रहे 40,000 रोहिंग्या मुसलमानों के इस्लामिक स्टेट, पाकिस्तान-आधारित आतंकवादी संगठनों समेत अन्य इस्लामिक आतंकवादी समूहों द्वारा कट्टरपंथी बना दिए जाने की संभावना जताते हुए इन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खतरा बताया था।
भारत में अब तक किसी भी रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी पर आतंकवाद फैलाने का आरोप है।
1991 से 1994 तक विदेश मंत्रालय की म्यांमार शाखा में भी काम कर चुके भाटिया ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों पर गृह मंत्रालय के रवैये को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसे लेकर नीति अभी भी विकसित हो रही है।
उन्होंने बताया कि 5 से 7 सितंबर के बीच म्यांमार यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वहां की नेता के संयुक्त बयान में भी राखीन राज्य में विकास के लिए सहायता उपलब्ध कराने के भारत के प्रस्ताव का उल्लेख हुआ था।
हालांकि, भाटिया ने चेतावनी दी है कि रोहिंग्या मुद्दे पर भारत सरकार को बहुत सावधानीपूर्वक अपना पक्ष तय करना चाहिए ताकि वहां की राष्ट्रवादी बौद्ध सरकार और सेना से दुश्मनी की स्थिति न पैदा हो जाए।
उन्होंने कहा कि भारत के लिए म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण रहा है और रणनीतिक तौर पर स्थित इस देश में चीन द्वारा अपना प्रभाव बढ़ाए जाने को देखते हुए नई दिल्ली के पास म्यांमार से अपनी दोस्ती मजबूत करने की कई वजहें हैं। जब मैं वहां राजदूत था, उस वक्त और आज के हालात में काफी फर्क है।
भाटिया ने कहा कि 2011 में म्यांमार में लोकतंत्र की शुरुआत के बाद से पारदर्शिता बढ़ी है जिसके कारण रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों के हनन की घटनाएं पहले के मुकाबले कहीं अधिक संख्या में लोगों का पता चल पा रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘म्यांमार में बौद्ध-राखिन संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। अतीत में रोहिंग्या मुसलमानों के कई बार पलायन हो चुके हैं। पहला 1970 के दशक में और दूसरा 1990 में। हालांकि, इस बार हम देख रहे हैं कि स्थिति पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।"
भाटिया ने कहा कि सेना अब सूचना और लोगों की आवाजाही को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं करती, जैसे वह अतीत में करती थी।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह सभी जानते हैं कि अभी भी म्यांमार में सेना का ही वर्चस्व पूरी तरह से कायम है।’
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined