जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे संगठन इंटरगवरमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का दावा है कि दुनिया में हर किसी के लिए खाना उपलब्ध करवाने की वजह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ सकती है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि खाने की चीजें के उत्पादन यानि खेती से होने वाला ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन दुनिया के कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का एक चौथाई होगा। इस रिपोर्ट का अनुमान है कि इस साल 49 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होगा।
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रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते फूड चेन भी प्रभावित हुई है। इसकी वजह बढ़ रहा तापमान, तेजी से बदल रहे मौसम के स्वरूप और बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक खाने की बर्बादी को कम कर, सतत खेती की तकनीकें अपना कर और मांसाहारी खाने की जगह शाकाहारी खाना अपनाकर इसमें कुछ कमी लाई जा सकती है। इन तरीकों से सभी के लिए खाना उपलब्ध करवाने के साथ जलवायु परिवर्तन पर काबू किया जा सकता है।
8 अगस्त को ‘जलवायु परिवर्तन और जमीन’ के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जमीन पर हो रहे बदलावों से किस तरह जलवायु परिवर्तन पर असर पड़ता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन से जमीन पर हो रहे असर के बारे में भी इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में जमीन पर होने वाली गतिविधियों में खेती, जंगलों का उगना और कटना, पशुपालन और शहरीकरण के पहलू शामिल हैं। इन सबका प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर पड़ रहा है।
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इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में खाना उगाने के चलते 16 से 27 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। अगर इसके साथ खाना उगाने के बाद होने वाले दूसरे कामों जैसे ट्रांसपोर्ट और फूड प्रोसेसिंग उद्योग को भी जोड़ लिया जाए तो यह कुल ग्रीनहाउस गैस उत्पादन का लगभग 37 प्रतिशत हिस्सा हो जाता है। अगर इसमें खाना उगाने से पकाने तक की गतिविधियों को शामिल कर लिया जाए तो यह कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन का 21 से 37 प्रतिशत हिस्सा होगा।
इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में खाने के उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा बेकार फेंक दिया जाता है। इसके विघटित होने में भी ग्रीन हाउस गैस निकलती है। 2010 से 2016 के बीच में बेकार फेंके गए खाने से करीब 8 से 10 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन हुआ। साथ ही रिपोर्ट का कहना है कि धरती का तापमान ज्यादा बढ़ा है। 2006 से 2015 के बीच में धरती पर तापमान 1850 से 1900 के औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ा है। उस समय जमीन और समुद्र का तापमान मिलाकर 0.87 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ा था। तापमान में इस अतिरिक्त बढ़ोत्तरी के चलते दुनियाभर में लू जैसी आपदाएं आम हो गई हैं।
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जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण जमीन का इस्तेमाल बदल जाना है। जमीन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन और सोखने दोनों का काम करती है। खेती से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। वहीं मिट्टी, पेड़ और वनस्पति कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखते हैं। यही वजह है कि जंगलों को काटने, शहरीकरण और यहां तक की फसल चक्र में बदलाव का भी जलवायु परिवर्तन पर सीधा असर पड़ता है।
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