झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजेपी के बीच जुबानी जंग तेज होने को है क्योंकि बीजेपी दिसंबर से महिलाओं के लिए मासिक कैश ट्रांसफर 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये करने वाले फैसले को चुनौती देने की तैयारी में है। जेएमएम के नेतृत्व वाली सरकार ने अक्तूबर के दूसरे सप्ताह अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में हर महीने 2,100 रुपये खाते में भेजने के बीजेपी के वादे के बरक्स यह राशि बढ़ाने का फैसला किया है। झारखंड सरकार वादे के अनुसार 1,000 रुपये की तीन किस्तें दे चुकी है और चौथी का भुगतान नवंबर में होना है। माना जाता है कि योजना का लाभ राज्य की 53 लाख महिलाओं को मिला है।
बीजेपी ने ‘मैय्या सम्मान निधि’ को इस दलील के साथ अदालत में चुनौती दी थी कि यह चुनाव से बमुश्किल चार महीने पहले एक ‘घूस’ के तौर पर लागू की जा रही थी। चुनौती इसलिए नहीं चली क्योंकि बीजेपी खुद मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में ऐसी ही योजनाएं चुनाव घोषणा से ठीक पहले लागू कर चुकी थी।
बीजेपी की गोगो-दीदी योजना (संथाली में गोगो का अर्थ ‘मां’ है) जेएमएम के मुखर विरोध के कारण अनजाने में ही ज्यादा समर्थन पा गई। जेएमएम के अंदर चर्चा है कि सरकार कह देती कि वह राशि बढ़ाने पर पहले से ही सोच रही थी और बिना शोर किए ऐसा कर देती, तो शायद इतना ही काफी होता। लेकिन जेएमएम ने बीजेपी के असफल वादे और मोदी की अधूरी गारंटी याद दिलाकर योजना का मजाक उड़ाना चुना। जेएमएम महासचिव विनोद पांडे बीजेपी पर महिलाओं को धोखा देने का आरोप लगाते हैं कि उसने उन्हें 500 रुपये में गोगो-दीदी फॉर्म खरीदने को बुलाया लेकिन ब्योरा लेते समय बैंक खाता या आधार नंबर नहीं पूछे। गठबंधन के कई नेताओं ने इसे बीजेपी की धोखाधड़ी कहा। बीजेपी द्वारा 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर बेचने जैसे झांसों की याद भी दिलाई। पांडेय पूछते हैं कि “बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान में वादे नहीं निभा सकी, तो यहां की महिलाएं उस पर क्यों भरोसा करें।” हालांकि विश्लेषक एक राय नहीं हैं कि प्रचार ने वास्तव में बीजेपी को मदद की या नुकसान पहुंचाया।
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जेएमएम ने एक कदम आगे बढ़कर लोगों को याद दिलाया कि इस साल मई में चुनाव आयोग ने कांग्रेस द्वारा लोगों से अपने न्याय गारंटी फॉर्म भरवाने पर आपत्ति जताई थी। आयोग ने तब माना था कि किसी भी राजनीतिक दल को ऐसे ब्योरे एकत्र करने और संदिग्ध मुफ्त उपहारों का वादा करने का अधिकार नहीं है। आयोग ने यह सुनिश्चित करने की भी व्यर्थ की कोशिश की कि राजनीतिक दल बताएं कि उनके द्वारा प्रस्तावित कल्याणकारी योजनाएं और मुफ्त सुविधाएं किस तरह लागू होंगी और उन्हें वित्त पोषित किया जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उपायुक्तों से यह सुनिश्चित कराया कि राज्य में कोई भी राजनीतिक दल आयोग द्वारा तय नियमों का उल्लंघन न करने पाए। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कई उपायुक्तों ने आगे बढ़कर एक्शन लिया और ऐसे स्थानीय बीजेपी नेताओं पर मामला दर्ज हुए जो फॉर्म भरने के लिए महिलाओं की बैठकें कर रहे थे।
राज्य में बीजेपी के अभियान के संयुक्त रूप से प्रभारी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हालांकि इस दावे के साथ प्रतिवाद किया कि यह नियम बीजेपी पर लागू नहीं होता क्योंकि चुनाव की घोषणा होनी बाकी है। उनका तर्क था कि चुनाव अधिसूचना के साथ आदर्श आचार संहिता लागू होने तक बीजेपी मतदाताओं तक पहुंचने और उनका विवरण एकत्र करने के लिए स्वतंत्र थी।
महिला मतदाता उलझन में भले हों, खुश भी हैं। कुछ का कहना था कि जंगल में छुपे दो पक्षियों पर उम्मीद जताने के बजाय वे हाथ लगे पक्षी पर भरोसा करना पसंद करेंगी लेकिन कुछ का कहना था कि उन्हें ज्यादा राशि पसंद आएगी। पर्यवेक्षक मानते हैं कि अंतत: जिस योजना को महिलाओं का साथ मिला, नतीजे तय करने में वही निर्णायक रहेगी।
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वह पीएच.डी. हैं, विद्वान, अंग्रेजी साहित्य के छात्र और राज्य में सबसे युवा राजनीतिक दल के संस्थापक हैं। पिछले साल जून में एक आम सभा में जयराम महतो (30) को झारखंड भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) का अध्यक्ष चुना गया जिसे स्थानीय समाचारपत्रों ने ‘ऐतिहासिक’ बताया था। भारी उपस्थित के बीच बैठक में एक राजनीतिक पार्टी बनाने के संकल्प कि साथ ‘बाघ’ इसका प्रतीक चिह्न तय हुआ। तीखे और आक्रामक भाषणों और व्यक्तित्व के कारण महतो ‘टाइगर’ नाम से प्रसिद्ध हैं। महतो ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी विधानसभा की 81 में से कम से कम 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
जैसा कि पार्टी के नाम से ही संकेत मिलता है, इसका प्राथमिक उद्देश्य 1932 के खतियान (भूमि रिकॉर्ड) के आधार पर स्थानीय भूमि पुत्रों के लिए भू-अधिकार और नौकरियां सुनिश्चित करना है। उनका कहना है कि झारखंड और इसके निवासियों को ऐतिहासिक रूप से उनकी भूमि और अधिकारों से वंचित किया गया है और वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद भी ‘बाहरी लोग’ ही उन पर शासन कर रहे हैं। आदिवासी, कुर्मी और सदान लोग बात बार-बार ऐसा कहते रहे हैं और शिकायत करते हैं कि उनकी भाषा, संस्कृति, नौकरियां और प्रतिनिधित्व बाहरी लोगों और यहां बसने वालों ने लूट लिया है, जिनका क्षेत्र की भूमि, जंगलों और खनिजों पर नियंत्रण है।
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यह भावना इतनी मजबूत है कि जेएमएम के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां ऐसे लोगों के लिए आरक्षित करने के लिए दो बार विधेयक पारित किया, जिनके वंश का पता 1932 के भूमि रिकॉर्ड से लग सकता है। विधेयक दो बार राजभवन ने लौटा दिया। दूसरी बार, दिसंबर 2023 में इसे भारत के अटॉर्नी जनरल की राय के साथ लौटाया गया। एजी की राय में यह समानता की गारंटी वाले संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर सकता है। उनका सुझाव था कि चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों को ‘स्थानीय लोगों’ के लिए और अन्य नौकरियों को ‘जहां तक संभव हो’ स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने के वास्ते विधेयक में संशोधन करना चाहिए और अन्य चीजें समान रहनी चाहिए। हालांकि, हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने यह बताते हुए विधेयक बिना किसी संशोधन के पारित कर दिया कि एजी की चिंताएं इसमें समाहित हैं।
बीजेपी ने विधानसभा में विधेयक का विरोध नहीं किया लेकिन कहा कि सरकार कार्यकारी आदेश के जरिये स्थानीय लोगों के लिए नौकरियां सुनिश्चित कर सकती है। झामुमो का जवाब था कि विधेयक को भविष्य में किसी भी न्यायिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए यह सुनिश्चित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। अब जयराम महतो के मैदान में कूदने से, राज्य की अधिवास नीति जहां लगभग 28 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है, एक बड़ा मुद्दा बनने की संभावना है।
एक कार्यक्रम में यह पूछने पर कि वह हिंसा के पैरोकार क्यों दिखते हैं और हमेशा आक्रामक क्यों रहते हैं, महतो ने कथित अन्याय वाले उदाहरण खारिज कर दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि कोल इंडिया लिमिटेड की धनबाद स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की सहायक कंपनी- भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) ने कई काम आउटसोर्स कर दिए हैं। उन्होंने दो निजी कंपनियों का नाम भी लिए जो ऐसे लोगों को छह हजार रुपये प्रति माह दे रही थीं जिन्हें बीसीसीएल नौकरी देता तो 32,000 रुपये मिलते। उनके विश्वविद्यालय में एक निजी कंपनी नियुक्ति पत्र बांट रही थी लेकिन साथ ही त्यागपत्र भी ले रही थी। आरोप लगाया कि गोमिया की विस्फोटक फैक्ट्री में निजी कंपनियां कागज पर 20 हजार रुपये वेतन पर नौकरी दे रही हैं लेकिन इस शर्त पर कि आठ हजार रुपये सुपरवाइजर को देने होंगे।
उन्होंने कहा- “हां, मेरा खून खौलता है...सही है कि मैं आक्रामक हो जाता हूं... कौन नहीं करेगा? ये अन्याय खत्म कर दो, देखना मैं भी प्रेम पर कविताएं लिखने लगूंगा …”। यह गुस्सैल युवा शायद ही कभी मुस्कुराता है। राजनेता और राजनीतिक विश्लेषक इसी आधार पर एक राजनेता के रूप में उनकी क्षमता को कमतर आंकते हैं, और लचीलेपन की कमी को उनकी कमजोरी बताते हैं। हालांकि जैसा महतो खुद भी मानते हैं, शायद यही उनकी ताकत है। इस साल की शुरुआत में गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में उन्हें मिले 3.27 लाख वोटों की और भला क्या व्याख्या हो सकती है?
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पांच साल पहले झारखंड में 81 सीटों के विधानसभा चुनाव पांच चरणों में हुए थे। इस पर निर्वाचन आयोग की काफी आलोचना हुई थी। इसके ही मद्देनजर आयोग ने इस बार इसे दो चरणों में सीमित कर दिया है। लेकिन इस बात पर अब भी नाराजगी है कि महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए सिर्फ एक ही दिन में चुनाव क्यों हो रहा? महाराष्ट्र में भी 2019 के चुनाव पांच चरणों में हुए थे।
अब इसका कोई राजनीतिक या चुनावी महत्व है या नहीं, कहना मुश्किल है लेकिन आयोग की घोषणा से राज्य में अटकलें तेज हो गई हैं। आम धारणा यह है कि 2019 में 30 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच मतदान की लंबी अवधि ने विपक्षी गठबंधन को ज्यादा मजबूती से लड़ने और अपने सीमित संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल का अवसर दिया था। इस बार भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन को वैसा लाभ नहीं लेने देगी। हालांकि महाराष्ट्र में इसके विपरीत तर्क काम कर रहा है क्योंकि राज्य में लोकसभा की 48 सीटों के लिए पांच चरणों में मतदान हुआ लेकिन विधानसभा की 288 सीटों के लिए मतदान एक ही दिन में समाप्त हो जाएगा!
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