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झारखंड में किसके सर होगा ताज, सोमवार को होगी वोटों की गिनती, एक्जिट पोल ने लगाया है बीजेपी की हार का अनुमान

23 दिसंबर को क्या होगा, इसका फैसला जनता पहले ही कर चुकी है। बस देखना यह कि रिजल्ट किसके पक्ष में आता है। जनता किसको ताज पहनाती है और किसके लिए सियासी निर्वासन की पटकथा लिखती है।

फोटो: सोशल मीडिया
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पूरे डेढ़ महीने तक चली चुनावी प्रक्रिया के बाद अब फैसले की घड़ी है। 23 दिसंबर की शाम तक यह तय हो जाएगा कि झारखंड की जनता ने सत्ता की चाबी किस नेता के हाथों दे दी है। 30 नवंबर को पहले और 20 दिसंबर को पांचवें चरण की वोटिंग के दौरान यहां की जनता ने सियासत के हर रंग देखे। बड़े नेताओं की निष्ठा टूटते देखी, तो मर्यादाओं को भी तार-तार होते देखा।

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प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक के भाषणों के दौरान संविधान की प्रस्तावना में लिखी बातों से विलग माहौल बना और जनता ने लंबी चुनावी प्रक्रिया के कारण नेताओं की थकान भी देखी। टफ फाइट हई। मुख्यमंत्री रघुवर दास तक की सीट को लेकर कोई निश्चितंता नहीं रही। महज 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा के लिए इतना दिलचस्प चुनाव पहले कभी नहीं हुआ था। अब सबकी नजरें मतगणना केंद्रों पर टिक गई हैं। एक दिन बाद यह तय हो जाएगा कि झारखंड में बीजेपी दोबारा अपनी सरकार बनाएगी या फिर विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन के नेता हेमंत सोरेन इस राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे।

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अगर यह क्रिकेट होता, तो शायद सटोरियों की चांदी हो गई होती लेकिन यह सियासत है, सो सटोरियों की जगह सूटकेसों का इंतजाम होने की चर्चाएं लोगों की जुबान पर हैं। इस बीच विभिन्न एजेंसियों के एग्जिट पोल में झारखंड की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी की वापसी की राह में रोड़े की बात बताई गई है। अगर एग्जैक्ट पोल (वास्तविक नतीजे) भी एग्जिट पोल की तरह रहे, तो बीजेपी नंबर के खेल में पीछे चली जाएगी। जाहिर है, तब कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के महागठबंधन के लिए सत्ता का दरवाजा खुल जाएगा।

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झारखंड की सियासी कहानियां

झारखंड में यूं तो सियासत की कई अनोखी कहानियां हैं। निर्दलीय विधायक के मुख्यमंत्री बनने से लेकर उपचुनाव में मुख्यमंत्री तक के हार जाने की गवाही यहां के लोगों ने दी है। हवाई जहाज रोके जाने, मंत्रिमंडल में रहते हुए मुख्यमंत्री के तख्तापलट की साजिश रचने से लेकर रिश्वत के पैसों को बैंक में जमा कराए जाने तक की सियासी कहानियां यहां के लोग सुनते-सुनाते रहे हैं। लेकिन, अब नया जमाना है। प्रधानमंत्री इसे डिजिटल इंडिया कहते हैं। अपनी 11 साल की बेटी संतोषी की भूख से मौत के बाद अचानक चर्चा में आई कोयली देवी आज भी उसी झोपड़ी में रहती हैं। इधर अयोध्या में भव्य राममंदिर बनाने की बात चुनावों के दौरान गृह मंत्री अमित शाह कह गए हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झारखंड में हुई सभाओं में भी जय श्री राम के नारे लगते रहे। यह अलग बात है कि झारखंड में मॉब लिंचिंग के सर्वाधिक मामले अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए। अव्वल तो यह कि इसके अभियुक्तों को जमानत मिलने पर कभी मोदी सरकार के ही मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर खुशी जाहिर की और उन अभियुक्तों का माला पहनाकर स्वागत भी किया है। चुनाव के दौरान भाजपा की सभाओं में बड़े से बड़े नेता राम मंदिर और धारा-370 से आगे नहीं निकल पाए और इधर साझा विपक्ष के मुख्यमंत्री प्रत्याशी हेमंत सोरन के सभी भाषण स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रहे। लोग अब नफा-नुकसान के आकलन के साथ यह चर्चाएं भी कर रहे हैं। इसलिए लोगों को मतगणना की प्रतीक्षा है।

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रघुवर दास का हाल

वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क कहते हैं कि इस चुनाव में कुछ भी भविष्यवाणी कर पाना मुश्किल है। सियासत ने यहां अपने शो का सारा पैसा वसूला है और हर सीट पर नजदीकी लड़ाईयां हुई हैं। इन 81 सीटों में से कहीं पर भी बड़े मार्जिन की जीत नहीं होने वाली है। हार-जीत का फैसला छोटे अंतरों से होगा। लोगों ने स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट दिया है। वोटरों ने रोटी, रोजगार और अधिकार की बात कही है। इसलिए हमें परिणामों की प्रतीक्षा करनी होगी।

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बकौल अश्क, अगर यहां खंडित जनादेश आया, तब सियासी चाल-चलन की सभी मर्यादाएं टूटेंगी। यह तय है। डर है कि कहीं यहां महाराष्ट्र पार्ट-टू न हो जाए। उन्होंने कहा कि रघुवर दास न केवल टफ चुनाव लड़े बल्कि उन्होंने अपना सियासी भविष्य भी दांव पर लगा दिया है। यह देखना होगा कि पिछले चुनाव में 70 हजार से भी अधिक अंतर से जीत हासिल करने और खुद की सरकार को झारखंड की सर्वश्रेष्ठ सरकार होने का दावा करने वाले रघुवर दास का राजनीतिक भविष्य क्या तय होता है। वे अगर इस लड़ाई में जीतते हैं, तो उनका सियासी आसमान और खुल जाएगा लेकिन अगर उनकी हार हुई, तो फिर वे ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाएंगे, जहां से निकल पाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगी।

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हेमंत सोरेन कितने कॉन्फिडेंट

वहीं विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हेमंत सोरेन आत्मविश्वास से लबरेज हैं। उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनावी प्रचार करते हुए कहा कि लोग यह सोचें कि वे विधायक नहीं मुख्यमंत्री का चुनाव कर रहे हैं। उन्होंने पूरे प्रदेश में कई दर्जन सभाएं की और रघुवर दास सरकार की कथित नाकामियों का उल्लेख करते हुए लोगों से वोट मांगे। पांचवे चरण के चुनाव से पहले उन्होंने इस संवाददाता से कहा कि पूरे प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर है। लोग रघुवर दास से नाराज हैं और इस बार बीजेपी का सूपड़ा साफ होने वाला है। उनके राज में हुए घोटालों की जांच कराई जाए, तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा कि मुझे जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिला है और सरकार हम ही बनाएंगे। बकौल हेमंत, मेरे नेतृत्व में कांग्रेस और आरजेडी की सरकार बनेगी। बाकी लोग भी हमारे समर्थन में आ जाएंगे।

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पांचवे चरण के चुनाव की समाप्ति के बाद उनका कॉन्फिडेंस लेवल और ऊपर था। शाम होते ही वे विभिन्न न्यूज चैनलों पर एक-एक कर लाइव होते रहे। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मीडिया से दूरी बना ली। शनिवार की देर रात तक रघुवर दास मुख्यमंत्री आवास में बैठकर पार्टी नेताओं से फीडबैक लेते रहे।

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अब क्या होगा

अब 23 दिसंबर को क्या होगा, इसका फैसला जनता पहले ही कर चुकी है। बस देखना यह कि रिजल्ट किसके पक्ष में आता है। जनता किसको ताज पहनाती है और किसके लिए सियासी निर्वासन की पटकथा लिखती है।

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