अटल बिहारी वाजपेयी ने कई दफे अभिव्यक्ति के लिए कविता को माध्यम बनाया। 1988 में जब वह किडनी के इलाज के लिए अमेरिका गए तो प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती को पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने मौत की आंखों में झांककर 'मौत से ठन गई..' कविता के जरिये अपनी अभिव्यक्ति लिखी थी।
वाजपेयी जी लंबे समय से बीमारी की वजह से खामोश थे। अगर उनके पास आवाज होती तो शायद आखिरी दिनों में ‘मौत से ठन गई’ सरीखी कविता के जरिये ही अभिव्यक्ति करते.. कविता का अंश कुछ यूं है..
धर्मवीर भारती को लिखे पत्र में वाजपेयी ने बताया था कि डाक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी है। सर्जरी के नाम से उनके मन में एक प्रकार का ऊथल-पुथल मचा हुआ था और इस मनोदशा के बीच उन्होंने यह कविता लिखी थी।
दिलचस्प पहलू यह भी है कि वाजपेयी को अमेरिका भेजने के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। राजीव ने संयुक्त राष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में वाजपेयी का नाम शामिल किया था, ताकि वे वहां अपना इलाज करा सकें। वाजपेयी इस बात के लिए राजीव गांधी की सराहना किया करते थे और कुछेक बार तो उन्होंने कहा भी था कि वे राजीव गांधी की वजह से जिंदा हैं।
वाजपेयी की कविताएं जीवन का नजरिया भी हैं..
उनकी कविताएं समाज के ताने-बाने के बीच साथ मिलकर चलने की ओर इशारा भी करती हैं..
वाजपेयी ने अपनी कविता के जरिये बापू से क्षमा भी मांगी और जयप्रकाश को राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरोसा भी दिया..
वाजपेयी ने कौरव और पांडव की उपमाओं के जरिये आज की सत्ता और जनता के बीच के संबंधों को व्याख्यायित करने की कोशिश की है जो आज के दौर में भी सटीक बैठती है..
और आज के सच को वाजपेयी ने कुछ इस तरह व्यक्त किया, जिन्होंने कभी लिखा था 'गीत नया गाता हूं' उन्होंने ही लिखा गीत नहीं गाता हूं..
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एक कवि के रूप में भी वाजपेयी ने 'क्रांति और शांति' दोनों ही राग को धार दी। उनकी कविताएं उन्हीं के शब्दों में जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। उनकी कविता हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।
'हार नहीं मानूंगा', 'गीत नया गाता हूं', 'ठन गई मौत से' जैसी कविताओं से उनका परिचय परिभाषित होता है और यह भी कि उनकी सोच कितनी व्यापक थी। 'मेरी इक्यावन कविताएं' उनके प्रखर लेखन का अद्भुत परिचय है। कभी कुछ मांगा भी तो बस इतना..
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