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हिंसा की यादों को भुलाकर दुर्गा पूजा की तैयारी में जुटा बशीरहाट

पश्चिम बंगाल के 24 उत्तरी परगना जिले का बशीरहाट इस साल जुलाई में हुए सांप्रदायिक तनाव की यादों से उबरने की कोशिश कर रहा है।

फाइल फोटोः Getty Images
फाइल फोटोः Getty Images 

बशीरहाट में हिंसा की यादों को भूलकर लोग दुर्गा पूजा की तैयारियों में जुटे हैं। दुर्गा पूजा के मौके पर बशीरहाट की सड़कों पर उत्सव का माहौल दिख रहा है। पंडाल तैयार हो रहे हैं, दुकानें सज गई हैं, सड़क के दोनों ओर बैनर लगे हैं जिनमें 26 सितंबर को मां दुर्गा के स्वागत की बात कही गई है। हालांकि स्थानीय लोगों का एक हिस्सा अभी भी हिंदू-मुस्लिम तनाव और भय की बात कर रहा है, लेकिन दुर्गा पूजा के आयोजकों को विश्वास है कि पर्व इस बार भी हमेशा की तरह साथ मिलकर मनाया जाएगा।

करीब दो महीने पहले बशीरहाट के बदुरिया इलाके में एक किशोर द्वारा फेसबुक पर की गई एक आपत्तिजनक पोस्ट के बाद हिंसा की घटना हुई थी। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन हिंसा तेजी से बशीरहाट, स्वरूप नगर और देगांगा तक फैल गई। दोनों पक्षों में मौजूद कट्टर और असामाजिक तत्वों ने हिंसा व तोड़फोड़ कर इलाके का माहौल खराब करने की कोशिशें की थीं।

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बशीरहाट में हिंसा का केंद्र रहे मोइलाखोला से एक किलोमीटर दूर स्थित प्रगति संघ पूजा समिति ने बताया कि दोनों समुदाय के लोगों में थोड़ी बेचैनी के बावजूद पूजा की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। समिति के सचिव मोंटू साहा ने कहा, ‘बशीरहाट में हिंदू और मुसलमान दशकों से साथ रह रहे हैं। हममें से कोई भी टकराव नहीं चाहता। यह एक हिंदू बहुल इलाका है, लेकिन यहां रहने वाले मुस्लिम परिवार दुर्गा पूजा समारोहों में हमेशा से भाग लेते रहे हैं। कुछ मुसलमान तो इस बार पूजा समिति के सदस्य भी हैं।‘

बशीरहाट का त्रिमोनी मिश्रित आबादी वाला इलाका है।यह हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ था। जले हुए टायरों के निशान, दुकानों की टूटी खिड़कियां आज भी इसकी गवाही दे रही हैं। लेकिन, यहीं पर 73 साल पुरानी प्रांतिक क्लब की पूजा एक अलग ही तस्वीर पेश कर रही है। यहां दंगों का कोई जख्म नहीं है। मजदूर पूजा पंडाल बना रहे हैं जो एक महल की तरह बनाया जाना है। अधिकांश मजदूर मुसलमान हैं।

इस पूजा समिति के सचिव भोलानाथ मैत्र ने कहा कि वे महिला सशक्तीकरण का उत्सव मना रहे हैं और उनकी योजना दुर्गा पूजा के बाद एक 'विजय सम्मालिनी' के आयोजन की है जिसमें सभी समुदायों के लोग हिस्सा लेंगे।

स्थानीय पूजा समिति के सदस्य अरशद अली मोल्ला का कहना है कि दुर्गा पूजा अब केवल हिंदुओं का नहीं रह गया है, बल्कि इसमें सभी समुदाय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि उनके जैसे कितने ही मुसलमान हैं जो न केवल जश्न मनाते हैं, बल्कि इसके आयोजन में सक्रिय भागीदारी भी करते हैं। मोल्ला ने कहा, ‘बशीरहाट की पूजा देखने के लिए बाहर से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। भीड़ में 30 से 35 फीसदी मुसलमान होते हैं। पूजा के आखिरी चार दिनों में, जब बहुत भीड़ होती है तो मुस्लिम समुदाय के स्वयंसेवक भीड़ को नियंत्रित करने में आयोजकों के साथ होते हैं। मैं खुद यह काम करता हूं।‘ मोल्ला ने बताया कि जो मल्लाह प्रतिमा विसर्जन के लिए नाव इच्छामति नदी (भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित) में ले जाते हैं, उनमें भी अधिकांश मुसलमान होते हैं। ये मल्लाह बेसब्री से दुर्गा पूजा का इंतजार करते हैं। क्योंकि इससे उनकी रोजी-रोटी जुड़ी हुई है।‘

बशीरहाट रिक्रिएशनल क्लब की पूजा के आयोजक बिश्वजीत हलदर ने कहा कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि दुर्गा पूजा और मुहर्रम के दौरान कोई अप्रिय स्थिति पैदा होगी, क्योंकि दोनों ही समुदाय शांति से साथ रहना चाहते हैं। स्थानीय विधायक तृणमल कांग्रेस के दिपेंदु बिस्वास एक पूजा आयोजन समिति के प्रमुख हैं। उनका कहना है कि इलाके में सांप्रदायिक तनाव भड़काना बाहरी लोगों का काम था। उन्होंने कहा कि यहां लोग एकजुट हैं और हिंसा को भूल चुके हैं। उन्होंने साथ ही चेताया भी कि अगर किसी ने गड़बड़ी फैलाने की कोशिश की तो प्रशासन उससे सख्ती से निपटेगा। यही बात पुलिस अधिकारियों ने भी कही।

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