उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रोहिंग्याओं को लेकर एक विवादित बयान दिया है। रावत ने कहा है कि उनकी सरकार किसी भी हाल में प्रदेश में रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को बर्दाश्त नहीं करेगी और उन्हें चुन-चुनकर निकाल बाहर फेकेंगी। यह नहीं, उन्होंने प्रदेश के लोगों को भी कहा कि अगर उन्हें ऐसे लोग कहीं भी दिखाई दें तो सरकार को सूचित करें। त्रिवेंद्र रावत ने कहा, “किसी भी घुसपैठिये को, चाहे वो बांग्लादेशी हो या वो रोहिंग्या हों, अगर वे यहां रहते पाए जाते हैं, तो उन्हें छांट-छांट कर सीमाओं से बाहर किया जाएगा।उनको हम किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। उत्तराखंड सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील है, यहां की संवेदनशीलता न केवल सरकार बल्कि जनता भी बहुत अच्छी तरह से समझती है, इसलिए मैं यहां की जनता से कहना चाहूंगा कि कहीं भी कोई संदिग्ध व्यक्ति आपको नजर आता है तो आप सरकार को सूचित करें, सीएम एप और ईमेल पर सूचित करें। हम एक-एक को उत्तराखंड से बाहर खदेड़ेंगे।”
बीजेपी विधायक प्रणब चैंपियन ने उठाया था मुद्दा
उत्तराखंड में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा अगस्त में बीजेपी विधायक कुंवर प्रणब सिंह चैंपियन ने उठाया था। तब मुख्यमंत्री समेत पुलिस अधिकारियों ने भी इस तरह की जानकारी से इंकार किया था। लेकिन उसके बाद इस मसले पर छानबीन शुरू हुई। राज्यभर में बाहर से आकर रह रहे लोगों के सत्यापन की मुहिम भी चलायी जा रही है। हरिद्वार के खानपुर क्षेत्र से विधायक प्रणब चैंपियन ने नवजीवन से कहा कि उस समय उन्होंने जो आशंका जतायी थी, अब उसका सच सामने आ रहा है। मुख्यमंत्री के बयान से स्पष्ट है कि राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी के इनपुट्स हैं। कुंवर चैंपियन का कहना है कि वो खुद हरिद्वार में रहते हैं। उनका लोगों से मिलना-जुलना होता है। क्षेत्र के लोगों ने उन्हें इस बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों में रोहिंग्याओं के रहने की बात कही। चैंपियन का कहना है कि उन्होंने खुद अपनी अवैध बस्तियां बना ली हैं। पूछने पर खुद को असम से आए हुए बताते हैं। लेकिन उनके खान-पान, रहन-सहन के तरीके अलग हैं।
रोहिंग्या की मौजूदगी से हरिद्वार पुलिस का इंकार
हालांकि, हरिद्वार के एसएसपी वीके कृष्ण कुमार क्षेत्र में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी से इंकार करते हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि हरिद्वार में अब तक एक भी रोहिंग्या मुसलमान की मौजूदगी की पुष्टि नहीं हुई है। हालांकि कुछ बांग्लादेशी जरूर पकड़ में आए हैं। सत्यापन की प्रक्रिया लगातार जारी है। हरिद्वार के अलावा राज्यभर में सरकार बाहर से आकर रह रहे लोगों का सत्यापन करा रही है।
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री से स्थिति से स्पष्ट करने की मांग की
कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा महरा दसौनी का कहना है पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि रोहिंग्या मुसलमान यहां पर हैं। ये एक गंभीर मामला है। उनका कहना है कि घुसपैठिये किसी भी देश के हों, उन्हें वापस भेजा जाए। लोगों की आंतरिक सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि जब प्रणब सिंह चैंपियन ने रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठाया था तो मुख्यमंत्री से लेकर उच्च अधिकारियों तक ने इससे इंकार किया था। लोकल इंटैलिजेंस यूनिट ने भी इंकार किया था। अब अगर इस तरह की कोई बात सामने आई है तो सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता कहती हैं कि भाजपा केवल डुगडुगी बचाने का कार्य कर रही है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 80 हजार शरणार्थियों को वापस भेजा गया था, लेकिन मोदी सरकार अपने कार्यकाल में 1400-1500 लोगों को भी वापस नहीं भेज पाई है।
हरिद्वार में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक
बता दें कि उत्तराखंड में 2001 में मुस्लिम आबादी 11.9 फीसद थी। 2001 से 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां मुस्लिमों की संख्या बढ़कर 13.9 फीसद हो गई है। हरिद्वार राज्य में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला शहर है। 2001 में भी हरिद्वार सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला शहर था। वर्ष 2011 की जनगणना और वर्ष 2018 के जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक हरिद्वार जिले की कुल आबादी 1,890,422 है, जिसमें 64.27% हिंदू और 34.28% मुसलमान हैं। वहीं उधमसिंह नगर दूसरे और देहरादून तीसरे स्थान पर मुस्लिम आबादी वाले शहर हैं। उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों से मुस्लिमों ने रोजगार के लिये पलायन किया है। ज्यादातर मुस्लिम बढ़ई, राज मिस्त्री, मजदूर, बैंड वादक, बगीचों-खेतों में काम करने वाले मजदूरों का कार्य कर रहे हैं।
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कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान?
म्यामांर में रह रहे मुसलमानों को अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। म्यांमार सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इंकार कर दिया है। म्यांमार के रखाइन प्रांत में वर्ष 2012 से सांप्रदायिक हिंसा चल रही है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था। बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है। रोहिंग्या और अन्य शरण चाहने वाले लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं। यानी रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है। उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है। पिछले साल भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। सरकार ने इन शरणार्थियों को देश के बाहर भेजने की बात कही थी। मानवाधिकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की काफी आलोचना की है। इसी साल जुलाई में असम में एनआरसी सूची जारी की गई। जिसके मुताबिक वहां 40 लाख लोग अवैध रूप से रह रहे हैं।
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