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उत्तराखंड: देवभूमि में तेजी से चढ़ रहा सांप्रदायिक रंग

छोटी-छोटी घटनाएं अचानक इतनी बड़ी कैसे हो जाती हैं? दंगा भड़काने वाले कहां से आते हैं? अचानक इन घटनाओं में तेजी क्यों आ जाती है? जिन जगहों पर कभी दंगे नहीं हुए, वहां आपसी सौहार्द कैसे बिगड़ जाता है? क्या ये सब व्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया जा रहा है? क्योंकि देवभूमि में ये परंपरा तो कभी नहीं रही।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया हाल में उत्तराखंड में हुईं सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं

हाल के समय में देवभूमि माने जाने वाले उत्तराखंड में जिस तरह से सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं सामने आ रही हैं, वो न सिर्फ परेशान करने वाली हैं, बल्कि ये भी सोचने पर मजबूर करती हैं कि जिस राज्य में इस तरह की घटनाएं न के बराबर होती थीं, वहां इनमें अचानक तेजी क्यों आ गई?

घनसाली में सांप्रदायिक तनाव

30 जुलाई को टिहरी के घनसाली में हिंदू-मुस्लिम जोड़े को होटल के कमरे से पकड़ा गया। ये दो परिवारों के बीच का मामला हो सकता था, लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। अचानक से गुस्साई भीड़ प्रकट हुई। लड़के को पकड़ लिया गया और उसके गले में जूतों की माला टांग कर पूरे बाजार में घुमाया गया। भीड़ का उन्माद मॉब लिंचिंग में तब्दील हो सकता था, लेकिन पुलिस हरकत में आ गई। घनसाली के मुख्य बाजार में जमकर तोड़-फोड़ हुई। स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने बाजार बंद करा दिया, ताकि गुस्से और नफरत की ये आग और न फैले। टिहरी के एसएसपी योगेंद्र सिंह रावत ने बाजार में फ्लैग मार्च किया। भारी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई।

कांग्रेस नेता मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि घनसाली जैसे इलाके में गिनी-चुनी मुस्लिम आबादी है। जो मुसलमान वहां रह रहे हैं वे सालों से वहां के निवासी हैं। वे पहाड़ी बोलते हैं। उनके रीति रिवाज सब पहाड़ी हैं। वहां ऐसी घटनाएं होना सामान्य नहीं कहा जा सकता। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड में 13.95 फीसदी मुस्लिम आबादी है जो देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में रहते हैं। वहां ऐसी घटनाएं हुई हैं, लेकिन उत्तराखंड के भीतरी पहाड़ी इलाकों में इस तरह की घटनाएं नहीं होती थीं।

प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि बीजेपी सरकार के समय से इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। बीजेपी के जो अन्य सहयोगी संगठन हैं, वे सक्रिय हो जाते हैं। प्रशासन भी सरकार के दबाव में आ जाता है। एलआईयू या लोकल इंटेलिजेंस यूनिट पूरी तरह फेल हो जाती हैं।

पिछले वर्ष चंपावत ज़िले के लोहाघाट में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की गई थी, जहां मुस्लिम आबादी नगण्य है। उनका कहना है कि स्पष्ट तौर पर बीजेपी के कार्यकाल में इस तरह की घटनाओं में इजाफा होता है।

अगस्त्यमुनि का माहौल किसने बिगाड़ा

इसी वर्ष अप्रैल में रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में सोशल मीडिया पर फैलाई गई एक झूठी खबर के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल गया। मुसलमानों की दुकानों को निशाना बनाया गया। करीब दो हजार प्रदर्शनकारी अचानक से जुट गये। बाजारों में तोड़-फोड़ शुरू कर दी गई। ज्यादातर प्रदर्शनकारी छात्र थे। अगस्त्यमुनि एक छोटा सा कस्बा है। यहां तीर्थयात्री आते हैं। मुसलमान आबादी यहां बहुत कम है। वे फल-सब्जी के ठेले लगाने जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं।

सीपीआई (एमएल) नेता इंद्रेश मैखुरी का कहना है कि उनकी पार्टी अपनी जांच टीम लेकर अगस्त्यमुनि गई थी। लोगों का कहना था कि जो लोग दुकानें तोड़ रहे थे, जला रहे थे, वे शहर के लोग ही नहीं थे। बाहर से लोग आए थे और सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। पहले अफवाह फैलाई गई, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ा गया और फिर वे सभी निकल गए।

इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि अगर प्रशासन सतर्क होता तो अगस्त्यमुनि की घटना रोकी जा सकती थी। लेकिन वहां के ज़िलाधिकारी को सुबह साढ़े दस बजे तक पता ही नहीं चला कि वहां दंगा फैला था। दुकानें जलाई गई थीं। मैखुरी का कहना है कि दंगाइयों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की जाती, बल्कि ऐसे असमाजिक तत्वों को बढ़ावा दिया जाता है। प्रशासन भी सरकार के सामने सरेंडर कर देता है।

मैखुरी कहते हैं कि पिछले दस सालों में जब-जब बीजेपी सरकार आई है, इस तरह की घटनाएं होती हैं, ये ट्रेंड बन गया है। अगस्त्यमुनि की इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में पछतावा था कि जो हुआ, नहीं होना चाहिए था।

जनता उकसावे में न आए

पिछल वर्ष अक्टूबर में देहरादून के रायवाला क्षेत्र मे एक युवक की हत्या के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल गया। बाजारों में आगजनी और तोड़फोड़ की गई। रायवाला से फैली नफरत की आग ऋषिकेश तक पहुंच गई। पुलिस, नेता, अधिकारी सबको हालात को शांत कराने के लिए मैदान में आना पड़ा।

उस समय अल्पसंख्यक कल्याण आयोग के अध्यक्ष रहे नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा का कहना है कि पहले लोग बहुत संयम से इस तरह की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते थे। रायवाला की हिंसा में एक खास दल के लोग लोगों की संवेदनाओं को उकसा कर दंगे भड़का रहे थे। पुलिस ने कार्रवाई की, इसके बावजूद वे इकट्ठा होकर मामले को तूल दे रहे थे। वे भी मानते हैं कि केंद्र या राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद इन घटनाओं को बहुत तूल दी जाने लगती है। लोगों को कोशिश करना होगी कि देवभूमि की छवि और सांप्रदायिक सद्भावना न बिगड़े। उन्हें किसी के उकसावे में न आ कर खुद प्रो-एक्टिव होकर प्रयास करना होगा।

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पिछले वर्ष पौड़ी जिले के सतपुली में भी एक फेसबुक पोस्ट को लेकर सांप्रदायिक तनाव फैल गया। दक्षिणपंथी संगठन के कार्यकर्ताओं ने सब्जी की दुकान में तोड़-फोड़ की और मुस्लिम समुदाय के नाबालिग लड़के को लेकर हंगामा किया, जिसके बाद इलाके में तनाव फैल गया और अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी।

रामनगर में सब इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह ने एक मुस्लिम लड़के को मॉब लिंचिंग का शिकार होने से बचाया।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के इंद्रेश कुमार ये कह चुके हैं कि उत्तराखंड को 'सांस्कृतिक खतरा है' और 'बाहरियों' के कारण जनता 'आजीविका के अवसर' खो रही है। वे जिन बाहरियों की ओर इशारा कर रहे हैं वे दरअसल पश्चिम उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड में आकर बसे मुसलमान हैं जो सब्जी बेचने, कारपेंटर, नाई जैसे पेशे से जुड़े हुए हैं।

छोटी-छोटी घटनाएं अचानक इतनी बड़ी कैसे हो जाती हैं? दंगा भड़काने वाले कहां से आते हैं? अचानक इन घटनाओं में तेजी क्यों आ जाती है? जिन जगहों पर कभी दंगे नहीं हुए, वहां आपसी सौहार्द कैसे बिगड़ जाता है? क्या ये सब व्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया जा रहा है? क्योंकि देवभूमि में ये परंपरा तो कभी नहीं रही।

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