उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी ने शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हालत को मुद्दा बनाकर तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार पर जोरदार हमला बोला था। अखिलेश सरकार पर शिक्षा माफिया को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे। लेकिन आज राज्य में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है। प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए बीजेपी को लगभग एक साल पूरे होने जा रहे हैं। लेकिन अभी भी प्रदेश में शिक्षा माफिया वैसे ही सक्रिय हैं, जैसे पिछली सरकार में हुआ करते थे। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद का ताजा फैसला इसी ओर इशारा कर रहा है। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने फरवरी, 2018 में होने वाली 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के लिए पंजीकरण करा चुके करीब 50,000 विद्यार्थियों का पंजीकरण रद्द कर दिया है। जांच के दौरान प्राइवेट विद्यार्थियों के तौर पर पंजीकरण कराने वाले छात्र-छात्राओं के दस्तावेज फर्जी पाए गए हैं। जिन विद्यार्थियों का पंजीकरण रद्द किया किया गया है, उनमें से करीब 18,000 विद्यार्थी मेरठ जनपद के रहने वाले हैं। इनमें वाराणसी जनपद से लगभग 12,000, इलाहाबाद से करीब 11,000 और गोरखपुर से करीब 10,000 विद्यार्थी शामिल हैं।
सख्त प्रशासन को लेकर खुद को सभी सरकारों से ज्यादा सजग बताने वाली बीजेपी की सरकार में इतने बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा होता रहा और सरकार को खबर भी नहीं लगी। और अब जब फरवरी 2018 में बोर्ड की परीक्षाएं होने वाली हैं, तब माध्यमिक शिक्षा परिषद की नींद खुली और आनन-फानन में इतनी बड़ी कार्रवाई की गई है। इस बार होने वाली परीक्षओं के लिए प्राइवेट विद्यार्थियों के तौर पर करीब ढाई लाख छात्र-छात्राओं ने पंजीकरण कराया है। यूपी माध्यमिक शिक्षा परिषद, 5 क्षेत्रीय कार्यालयों - इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, मेरठ और बरेली के जरिए 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए पंजीकरण करता है।
जाहिर है इन कार्यालयों में बड़े ओहदों पर बैठे अधिकारियों की जानकारी के बगैर इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा करना बहुत मुश्किल है। इस फर्जीवाड़े के लिए बड़े स्तर पर पैसे की लेनदेन भी हुई होगी। लेकिन अब जब यह फर्जीवाड़ा सबके समाने आ गया है, तो माध्यमिक शिक्षा परिषद इसके लिए स्कूल के प्रधानाचार्यों को जिम्मेदार ठहरा रहा है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव नीना श्रीवास्तव ने कहा कि स्कूलों के उन प्रधानाचार्यों के खिलाफ कार्रवाई होगी, जिन्होंने दस्तावेज अपलोड करने के दौरान लापरवाही बरती है। उन्होंने यह भी कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षकों से भी जवाब-तलब किया जाएगा। श्रीवास्तव के इस बयान से साफ है कि प्रधानाचार्यों पर कार्रवाई कर माध्यमिक शिक्षा परिषद इतने बड़े फर्जीवाड़े को रफा-दफा करने की तैयारी में है।
जांच में पता चला है कि 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के लिए प्राइवेट विद्यार्थियों के तौर पर पंजीकरण कराने वाले छात्र-छात्राओं ने पिछली कक्षा के फर्जी दस्तावेज अपलोड किए थे। इस बात से यह साफ होता है कि यह फर्जीवाड़ा रातों-रात तो नहीं हुआ। जिन विद्यार्थियों ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा के लिए फार्म भरे होंगे, उन्होंने अपने 9वीं और 11वीं कक्षा के फर्जी दस्तावेज बनवाए होंगे, और यह पूरी प्रक्रिया एक साल पहले हुई होगी। इस फर्जीवाड़े में कई बड़े शिक्षा माफियाओं के शामिल होने का अंदाजा है, तभी फर्जी दस्तावेज के आधार पर विद्यार्थी यहां तक पहुंचे हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि प्रदेश सरकार उन अधिकारियों और शिक्षा माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे, जो इस रैकेट से जुड़े हुए हैं। सिर्फ प्रधानाचार्यों पर कार्रवाई करने से इतने बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा करने वालों को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता।
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