विधान परिषद की पहले मंजूरी हासिल करने में विफल रहने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने संगठित अपराध के खिलाफ प्रस्तावित कानून को फिर से विधानसभा में पेश किया, जो बाद में पारित हो गया। उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण कानून विधेयक (यूपीकोका) को पेश करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में कहा कि उनकी सरकार कानून का शासन सुनिश्चित करने और राज्य के 22 करोड़ लोगों की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है। सीएम योगी आदित्यनाथ के पास गृह विभाग भी है।
उन्होंने कहा, “संगठित अपराध और राष्ट्र विरोधी तत्वों को राज्य से बाहर निकालना जरूरी है। शांति बाधित करने, आतंकवाद और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा और विधेयक इस दिशा में एक प्रमुख कदम है।"
नेता प्रतिपक्ष राम गोविद चौधरी ने कहा कि समाजवादी पार्टी प्रस्तावित कानून का विरोध जारी रखेगी। उन्होंने बिल पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के लिए आज का दिन काला दिवस है।
उन्होंने योगी सरकार के कानून-व्यवस्था में सुधार के दावे का विरोध करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के शासन में अपराध 20.37 फीसदी बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक के कानून बन जाने से इसका इस्तेमाल निर्दोष लोगों के खिलाफ होगा।
उन्होंने कहा, “यह आम जनता, किसानों, गरीबों और पत्रकारों के लिए हानिकारक है। सरकार फेल हो चुकी है। उसने जनता से जो वादा किया था, उसमें से एक भी पूरा नहीं कर सकी है। अब इस काले कानून के माध्यम से राजनीतिक विरोधियों को और जो सरकार के खिलाफ पत्रकार लिखते हैं, उन पर भी लगाम कसने की अपनी गिरफ्त में लेने के लिए यह कोशिश कर रही है।”
सदन में कांग्रेस के नेता अजय कुमार लल्लू ने कहा, “सरकार ने काला कानून लाकर अंग्रेजों की हुकूमत याद दिलाने का काम किया है, यह काला कानून है, संविधान विरोधी है, लोकतंत्र विरोधी है।”
23 दिसंबर, 2017 को विधानसभा में इस विधेयक को पारित कर दिया गया था, लेकिन जब 13 मार्च को इसे विधान परिषद में पेश किया गया तो इसे झटका लगा, जहां सत्तारूढ़ बीजेपी बहुमत में नहीं है।
हालांकि, 27 मार्च को विधानसभा ने विधेयक को फिर बिना किसी संशोधन के पारित कर दिया, लेकिन ऊपरी सदन में संख्या की कमी होने से विधेयक फंस सकता है।
यूपीकोका से पहले कई राज्यों में इस तरह की कठोर कानून बनाए गए है। महाराष्ट्र और कर्नाटक भी शामिल है। वहीं गुजरात में इस तरह के कानून को लेकर अभी भी पेंच है। सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार ने 1999 में मुंबई में अंडरवर्ल्ड के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मकोका बिल बनाया था।
साल 1999 में मुंबई राज्य सरकार ने बढती माफिया शक्ति को नियंत्रित करने के लिए मकोका को पास किया था। इसके लिए पुलिस के पास अधिकार है कि वो आरोपी के पत्र, टेलीफोन और व्यक्तिगत रूप से किसी से मिलने पर भी रोक लगा दे। अगर किसी भी अपराधी पर मकोका लगता है तो उसकी जमानत मिलना मुश्किल है। मकोका लगाने से पहले पुलिस अधिकारियों को एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस से मंजूरी लेनी पड़ती है और मुकदमा तभी दाखिल किया जा सकता है जब ये साबित हो जाए कि वो बीते 10 सालों में कम से कम दो बार किसी तरह के संगठित जुर्म का हिस्सा रहा है।
कर्नाटक में यह कानून ककोका के नाम से साल 2000 में लागू किया गया। मकोका की तरह ही ककोका में कड़े कानून थे। लेकिन 2009 में इसमें कुछ बदलाव किए गए, जिनके तहत आंतकवादियों की हरकतों से जुड़े लोगों को उम्र कैद के साथ ही 10 लाख का जुर्माना देना पड़ेगा।
2003 में गुजकोका को गुजरात की विधान सभा में पास कर दिया गया था, लेकिन अभी तक इसे राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिल पाई है। 2002 के गुजरात दंगों के बाद प्रदेश में मकोका के आधार पर एक कानून बनाने की पेशकश की गई थी लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इसे सहमति नहीं दी थी। 2009 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने इसे फिर पेश किया गया लेकिन उन्होंने इसे तीन संशोधनों के लिए भेज दिया।
(आईएनएस की रिपोर्ट के साथ)
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