पिछले दिनों यूपी की योगी सरकार ने प्रदेश के करीब 20 हजार लोगों पर दर्ज राजनीतिक मुकदमे को वापस लेने का ऐलान किया था। अब इसी कड़ी में योगी सरकार ने 22 साल पहले वर्तमान सीएम योगी और बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ दर्ज केस को वापस लेने का फैसला लिया है। राज्यपाल राम नाइक ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है और जल्द ही कोर्ट में इस मामले को लेकर प्रार्थना पत्र पेश किया जाएगा।
गोरखपुर के डीएम ने 27 अक्टूबर 2017 को पत्र लिखकर शासन को इस मुकदमे को वापस लेने का अनुरोध किया था। उन्होंने पीपीगंज थाने में दर्ज इस मुकदमे को राजनीतिक बताया है और प्रशासन की तरफ से कहा गया कि उस समय की समाजवादी पार्टी सरकार ने योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी नेताओं पर जानबूझकर मुकदमा दर्ज करावाया था। जब मुकदमा दर्ज हुआ था, तब योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी थे और बाद में सांसद बने।
सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिवप्रताप शुक्ल, बीजेपी खेलकूद प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक राकेश सिंह पहलवान, कुंवर नरेंद्र सिंह, समीर कुमार सिंह, विश्वकर्मा द्विवेदी, सहजनवां के वर्तमान विधायक शीतल पांडेय, विभ्राट चन्द कौशिक, बीजेपी के वर्तमान क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ल, शम्भू शरण सिंह, भानुप्रताप सिंह, ज्ञान प्रताप शाही, रमापति त्रिपाठी सहित कई लोगों पर मुकदमा दर्ज है।
शासन के अनुसचिव अरुण कुमार राय ने 20 दिसंबर 2017 को शासन के निर्णय और आदेश की जानकारी डीएम को दे दी है। अब लोक अभियोजक, कोर्ट में शासन के निर्णय की जानकारी देते हुए मुकदमा वापस लेने की अर्जी देंगे।
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पूरा मामला 1995 में ब्लॉक प्रमुख पद का चुनाव के दौरान का है। उस समय मानीराम से समाजवादी पार्टी के तत्कालीन विधायक ओम प्रकाश पासवान के करीबी विकास चौबे जंगल कौड़िया से उम्मीदवार थे और बीजेपी की तरफ से रामपत यादव को उम्मीदवार बनाया गया था। इसका समर्थन गोरक्षपीठ के तत्कालीन उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने भी किया था। चुनाव के दौरान किसी बात को लेकर विवाद हुआ और उस समय धारा 144 लागू की गई थी। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया था कि धारा 144 का उल्लंघन करते हुए यात्रा निकाली गई और जनसभा करके वोट मांगे गए थे। इसी आधार पर धारा 188 के तहत पीपीगंज थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था।
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