केंद्र की मोदी सरकार में शामिल रामविलास पासवान और उनकी पार्टी एलजेपी ने दलितों के मुद्दे पर अपनी ही सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। केंद्रीय मंत्री के बेटे और बिहार के जमुई से एलजेपी सांसद चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस ए के गोयल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की है। चिराग पासवान ने अपने पत्र में लिखा है कि आगामी 9 अगस्त को दलित संगठनों के प्रस्तावित विरोध प्रदर्शन में 2 अप्रैल की घटना की पुनरावृति न हो जाए, इसके लिए सरकार को तुरंत जस्टिस ए के गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटा देना चाहिए। इस साल मार्च में जस्टिस गोयल की पीठ ने ही एससी-एसटी एक्ट पर फैसला दिया था।
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चिराग पासवान ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि आगामी 9 अगस्त को दलित संगठन देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन करने वाले हैं। ऐसे में उस दिन 2 अप्रैल की घटना की पुनरावृति न हो, इसके लिए सरकार को तुरंत जस्टिस ए के गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटा देना चाहिए। पत्र में पासवान ने लिखा है कि सरकार के इस कदम से दलित समुदाय में यह संदेश गया है कि एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने वाले जस्टिस गोयल को एनजीटी का अध्यक्ष बनाकर मोदी सरकार ने तोहफा दिया है।
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इससे पहले 23 जुलाई को केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के आवास पर एनडीए के करीब 25 दलित सांसदों की बैठक हुई थी, जिसमें सभी ने एक सुर में जस्टिस गोयल को एनजीटी का अध्यक्ष बनाने के मोदी सरकार के फैसले की आलोचना की थी। बैठक में सभी सांसदों ने एक सुर में जस्टिस गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की। जिसके बाद रामविलास पासवान ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह लिखे पत्र में दलित अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा (एआईएएम) की मांगों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एससी-एसटी वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को मौजूदा मानसून सत्र में ही अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून को संरक्षित करने वाला विधेयक लाना चाहिए।
बता दें कि जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू दलित की खंडपीठ ने 20 मार्च को एससी-एसटी (प्रेवेंशन ऑफ एट्रोसिटी) एक्ट के तहत दर्ज मामलों में फौरन आपराधिक मामला दर्ज करने और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने इसे लेकर नए दिशानिर्देश भी जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को दलितों के अधिकार में कटौती बताते हुए दलित समुदाय ने देश भर में इसके खिलाफ अपना आक्रोश जाहिर किया था। इस फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल को देशभर के दलित संगठनों ने राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया था। जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी।
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