मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से मंडला की ओर जाने वाले मार्ग पर एक आदिवासी बहुल गांव सिंघपुर स्थित है। सड़क किनारे एक छोटी सी परचून की दुकान चलाने के साथ सिलाई का काम करने वाली गोमती को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर और चूल्हा तो मिल गया है, मगर सिलेंडर को दोबारा भरवाने के लिए उसके पास पैसे ही नहीं हैं। लिहाजा, वह फिर से लकड़ी की आंच पर खाना बनाने को मजबूर है।
खुलकर अपनी व्यथा बताते हुए गोमती कहती हैं कि सरकार की योजना अच्छी है, 100 रुपये देने पर गैस सिलेंडर और चूल्हा तो मिल गया, मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए 800 रुपये कहां से लाएं? सब्सिडी का पैसा तो बाद में आएगा। गोमती के लिए हर महीने 800 रुपये ईंधन पर खर्च करना आसान नहीं है। वह मुश्किल से दिन में 100 रुपये कमा पाती है, जिसमें तीन बच्चों का खर्च उसके सिर पर है। पति खेती जरूर करता है, लेकिन खेती का बुरा हाल है। गोमती का कहना है कि अगर वास्तव में सरकार चाहती है कि आदिवासी और गरीब महिलाओं की आंखें सुरक्षित रहें, वे स्वस्थ्य रहें तो उसे मुफ्त में गैस सिलेंडर देना होगा, तभी गरीब लोग उसका उपयोग कर पाएंगे, नहीं तो चूल्हा और सिलेंडर सिर्फ घर की शोभा बढ़ाएंगे।
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सिंघपुर की नजदीकी ग्राम पंचायत सिरसवाही की सुदामा बाई तो सरकारी अमले के रवैये से बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि गैस सिलेंडर के लिए उनसे कई बार आवेदन लिए जा चुके हैं, कभी कहते हैं कि आधार कार्ड की कॉपी दो, तो कभी राशनकार्ड की कॉपी मांगते हैं। कई बार दे चुके हैं, मगर सिलेंडर अब तक नहीं मिला है। यहीं रहने वाली मुन्नी बाई भी उन महिलाओं में हैं, जो रसोई गैस सिलेंडर के लिए लंबे समय से इंतजार कर रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की गरीबों के हित में दो बड़े डीम प्रोजेक्ट हैं, जिनमें एक हर घर में शौचालय और दूसरा, गरीबों को सस्ती दर पर गैस सिलेंडर मुहैया कराना। लेकिन शहरों से बाहर गांव खासकर आदिवासी इलाकों में जाकर तो यही लगता है कि ये दोनों योजनाएं सिर्फ कुछ जगहों और कागजों पर ही कारगर हैं, क्योंकि मध्य प्रदेश के निपट आदिवासी इलाके में लोगों को अब तक इस योजना का लाभ ही नहीं मिल पाया है।
प्रधानमंत्री मोदी लगातार इस बात का हवाला देते हुए नहीं थकते हैं कि लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिला के शरीर में हर रोज कई सौ सिगरेट के धुएं के बराबर धुआं जाता है। इससे उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। महिला स्वस्थ्य रहे, इसलिए उसे चूल्हे के धुएं से दूर रखना होगा, लिहाजा उसे सस्ती दर पर गैस सिलेंडर दिया जा रहा है। इसके बावजूद जो जमीनी हकीकत है, वह गांव और आदिवासी अंचलों में पहुंचने पर सामने आती है, भले ही सरकारी आंकड़े कुछ भी दावा करते रहें।
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