8 नवंबर को नोटबंदी के दो साल पूरे हो रहे हैं। इसके विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करने के लिए हमने आज से लेखों की एक श्रृंखला शुरू की है, उसी के तहत हम यह तीसरा लेख प्रकाशित कर रहे हैं। -नवजीवन
लगभग 2 साल पहले 8 नवंबर को पीएम मोदी की एक घोषणा ने पल भर में देश के लाखों लोगों की जिंदगी पलट दी। नोटबंदी ने छोटी-मोटी नौकरियां और कारोबार कर अपनी जिंदगी गुजार रहे देश के लाखों लोगों की जिंदगी में अंतहीन मातम ला दिया, जिसकी गूंज उनको आज भी सुनाई देती है। ऐसे ही कुछ लोगों की नोटबंदी की वजह से त्रासदी में बदली जिंदगी की आपबीती से साफ पता चलता है कि उस फैसले ने कैसे हजारों घरों को तबाह कर दिया। पेश है देश के अलग-अलग हिस्सों से कुछ लोगों की आपबीती।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के गगहा थाना क्षेत्र के रियावं गांव निवासी 58 साल के छेदी प्रसाद 1200 मुर्गियों का फार्म चलाते थे। तीन बेटे और तीन बेटियों के पिता छेदी प्रसाद के परिवार का इसी मुर्गी फार्म से गुजारा चलता था। दो बेटे मजदूरी करते थे, जबकि छोटा बेटा पढ़ाई। नोटबंदी के ऐलान के वक्त उनके पास 50000 हजार रुपये के पुराने नोट थे। वह 11 नवंबर को उसे जमा करने रकहट एसबीआई शाखा पर गए। दिन भर कतार में लगे रहे पर नंबर नहीं आया। शाम को घर लौटे तो चिंतित थे क्योंकि पैसे डूबने का भय सताने लगा था। इसका उन्हें गहरा सदमा लगा और हार्टअटैक आ गया। परिवार के लोग उन्हें लेकर बड़हलगंज कस्बा भागे पर उनकी मौत हो गई। छेदी प्रसाद के छोटे पुत्र अमरनाथ बताते हैं कि परिवार सदमे में है। 10 सदस्यों की जिम्मेदारी उनके कंधे पर ही है।
नोटबंदी के दौरान मुंबई से सटे उपनगर भायंदर (प) में दीपक भाई शाह नामक 60 साल के जिस बुजुर्ग की मौत हो गई थी, उनके परिवार में आज भी गुस्सा है। यह गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनकी किसी ने सुध नहीं ली। शाह के परिवार की एक महिला ने कहा कि दो साल होने को हैं और उन्हें सरकार की तरफ से सांत्वना तक नहीं मिली तो अब मीडिया में भी बात करके क्या फायदा? न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं। स्टेशन रोड स्थित बेसिन कैथलिक को-ऑपरेटिव बैंक की बिल्डिंग के नीचे धूप में लाइन में खड़े-खड़े शाह गिर पड़े थे। उन्हें परिवार के लोग सबसे पहले एक स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए थे, लेकिन शाह को मौत ने अपने पास बुला लिया। शाह दिल के मरीज थे। नोटबंदी की वजह से वह 500 और 1000 के नोट बदलने लाइन में खड़े थे। उनका नंबर नहीं आ रहा था, तो वह तीसरे दिन भी लाइन में खड़े हो गए थे। भायंदर (प) पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। अब उस घटना को याद करने वाला कोई नहीं।
71 साल के बाबूलाल वाल्मिकी भिंड जिले के फूफ कस्बे से लगे गढ़ा चांचड़ में रहते थे। वह फौज से रिटायर थे। 17 नवंबर 2016 को वह भी नोट बदलवाने बैंक की कतार में लगे थे। घंटों खड़े रहने के बाद उन्हें वहीं हार्ट अटैक हुआ और जान चली गई। उनके पोते रोहताश कहते हैं, “बाबा के जाने के बाद घर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। उनकी तेरहवीं के लिए लोगों से पैसे लेने पड़े। चार माह तक परिवार दाने-दाने को मोहताज रहा।” नोटबंदी के दिनों को याद कर रिटायर फौजी का परिवार आज भी सिहर जाता है। नोटबंदी की सुनकर बाबा ने एक ही बात कही थी कि यह तो सरकारी नोट हैं, कैसे बेकार हो जाएंगे? नोट बदलने के लिए बैंकों के बाहर भीड़ और मारामारी की खबरें सुनकर उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वे अपनी पेंशन के 12 हजार रुपए बदलवा लाएं। रोहताश कहते हैं, “इसीलिए बाबा 17 नवंबर को मुझे साथ लेकर 12 हजार रुपए बदलवाने भिंड गए थे। बैंक के बाहर कतार में सुबह ही लग गए थे। 9 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
21 नवम्बर 2016 को देवरिया जिले के गुलहरिया ग्राम सभा कनकपुरा निवासी रामनाथ कुशवाहा तरकुलवा एसबीआई से रुपये निकालने गए थे। एक दिन पहले ही उनकी बड़ी बहू की डिलेवरी हुई थी। रामनाथ के बैंक में 40 हजार रुपये थे। उन्होंने सोचा कि 30 हजार बेटे को दे दें। बैंक में लंबी कतार में खड़े थे कि अचानक भगदड़ मच गई। कुचलकर रामनाथ की मौत हो गई। इस तरह रामनाथ के तीन बेटे और तीन बेटियों का भरा-पूरा परिवार अनाथ हो गया। रामनाथ कुशवाहा के छोटे बेटे धर्मवीर कुशवाहा कहते हैं, “बाबू जी के निधन के बाद से हम पर ऐसा संकट आया कि आज तक परिवार परेशान है।”
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उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रमोद टेकड़ीवाल पूर्वांचल के ऐसे व्यापारियों में शुमार किये जाते हैं जिन्होंने गोरखपुर को पहला सिटी मॉल देकर नई पहचान दी। प्रमोद टेकड़ीवाल व्यापारी नेता भी हैं। इसलिए व्यापारियों के लिए बेबाकी से बोलना भी उन्हें आता है। वह कहते हैं, “नोटबंदी असफल रही। करेंसी वापस करने की कवायद हड़बड़ी में और बिना तैयारी के हुई। नतीजा यह हुआ कि लघु उद्योग बंद हो गए। तमाम बर्तन और कालीन उद्योगों पर ताला लग गया। कितने ही लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारी बढ़ी है। कितने दिनों तक मंदी की मार रहेगी, कहा नहीं जा सकता।” वह कहते हैं कि “जितनी करेंसी थी, सब वापस आ गई। कहा गया था कि नोटबंदी से कालाधन वापस आएगा। पर, अब जबकि करेंसी वापस आ गई तो कहां गया कालाधन?” वह साफ तौर पर कहते हैं कि कालाधन तो सिस्टम में आ गया। प्रमोद का यह भी कहना है कि नोटबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ, करेंसी के मुद्रण में जितना धन लगा वह बेजा गया।
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