जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित का कहना है कि हमारे देवताओं में क्षत्रिय तो हैं, लेकिन कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं हैं। भगवान शिव को लेकर उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कोई ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकता है, इसलिए भगवान शिव एससी या एसटी समुदाय के होंगे। भगवान शिव ऊंची जाति के नहीं हैं, क्योंकि वह श्मशान में गले में सांप डालकर बैठते हैं, उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी बहुत कम हैं। सोमवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में अपनी बात रखते हुए कुलपति शांतिश्री ने जाति उन्मूलन पर जोर देते हुए कहा कि यदि हमें अपना समाज बेहतर बनाना है तो जाति उन्मूलन करना बहुत ही जरूरी है।
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उन्होंने कहा, "हमें अपने देवताओं की उत्पत्ति को मानवशास्त्र या वैज्ञानिक लिहाज से समझना चाहिए। लक्ष्मी, शक्ति या यहां तक कि भगवान जगन्नाथ भी मानवविज्ञान के लिहाज से अगड़ी जाति के नहीं हैं और भगवान जगन्नाथ आदिवासी समुदाय के हैं।"
शांतिश्री ने यह भी कहा कि मनुस्मृति के अनुसार महिलाएं शूद्र हैं। ऐसे में कोई महिला यह नहीं कह सकती कि वह ब्राह्मण या अन्य किसी ऊंचे वर्ग से है।"
उन्होंने व्याख्यान देते हुए कहा, "अधिकांश हिंदू भगवान ऊंची जाति से नहीं आते। हमारे देवताओं की उत्पत्ति को देखें तो कोई भी भगवान ब्राह्मण नहीं हैं, भगवानों में सबसे ऊंची जाति क्षत्रिय तक सीमित है।"
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महिलाओं को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने यह भी कहा, "शादी से ही आपको पिता की जाति मिलती है, और शादी के बाद पति की जाति मिलती है मुझे लगता है कि यह पीछे की ओर ले जाने वाला है।"
कुलपति ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनकी जाति जन्म पर आधारित नहीं थी, लेकिन आज ये जन्म पर आधारित हैं। अगर एक ब्राह्मण और कोई अन्य जाति मोची है तो क्या वो एकदम से दलित बन सकता है, वो नहीं हो सकता।
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उन्होंने जाति उन्मूलन पर जोर देते हुए कहा कि यदि हमें अपना समाज बेहतर बनाना है तो जाति उन्मूलन करना बहुत ही जरूरी है। कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने 'समान नागरिक संहिता' यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की वकालत की है। देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि स्वयं भीमराव अंबेडकर समान नागरिक संहिता लागू करना चाहते थे।
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उन्होंने कहा कि जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं है, हमारा राजनीतिक लोकतंत्र एक मृगतृष्णा है। लैंगिक न्याय के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना होगा। शांतिश्री ने कहा कि आज भी 54 विश्वविद्यालयों में से केवल छह में महिला कुलपति हैं, केवल एक आरक्षित वर्ग से है। लिंग आधारित भेदभाव के कारण बाबासाहेब आज और भी प्रासंगिक हैं।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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