इन दिनों नदियों को लेकर काफी चर्चा चल रही है, पर उनकी हालत पहले जैसी ही बदतर है। ‘नमामि गंगे’ की बात लगातार कही जा रही है, साथ ही गंगा सफाई की सफलता और असफलता की भी चर्चा होती रहती है। इस सारे तामझाम के बीच नर्मदा यात्रा भी संपन्न हुई। सद्गुरु की रैली ‘फॉर द रिवर’ भी चर्चा में है। श्री श्री रविशंकर भी यमुना प्रदूषण पर राष्ट्रीय हरित न्यायालय से उलझते रहते हैं। कोर्ट गंगा और यमुना के प्रदूषण पर कई बार सरकारी महकमों को फटकार लगा चुकी है, पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला।
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समस्या कहां है? क्यों नदियां उपेक्षित हैं? इन सवालों का जवाब खोजने का कभी प्रयास नहीं किया जाता और नदियों के लिए जो किया जाता है उसका कोई असर नहीं होता। समस्या तब होती है जब हम वास्तविकता को नकार कर पौराणिक और आध्यात्मिक होने लगते हैं। गंगा और लगभग दूसरी अन्य नदियों की अपनी-अपनी पौराणिक कहानियां हैं, अधिकतर नदियां देवी मानी जाती हैं। इसमें कुछ अलग नहीं है, दुनिया के लगभग सभी देशों में नदियों की कहानियां प्रचलित हैं। अंतर यह है कि हम नदियों को देवी मानकर भी लगातार अपमानित करते हैं और दूसरे देशों में नदियों को कहानियों के साथ एक भौगोलिक संरचना माना जाता है और साफ पानी का स्त्रोत भी? इसलिए दूसरे देशों में नदियों में प्रदूषण को लगातार नियंत्रित किया जाता है, जबकि हमारे देश में संभवतः माना जाता है कि देवी के पूजा-पाठ, धार्मिक आयोजन इत्यादि के बाद हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। देवी है, कितना भी गंदा पानी इसमें मिला दें, पवित्र ही रहेगी।
पुरानी पीढ़ी के लोग तो फिर भी नदियों के बारे में जानते हैं, समझते हैं, पर नई पीढ़ी तो अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तरह नदियों से भी दूर है। नदियां पर्यटन हैं, नदियों में राफ्टिंग होती है यह सब तो पता है पर नदियां समग्र रूप में क्या हैं, यह आज के अधिकतर युवा को पता ही नहीं है।
लोगों को नदी से जोड़ने के लिए बनारस, हरिद्वार और ऋषिकेश जैसी जगहों पर गंगा की आरती शुरू की गई। जैसे-जैसे पर्यटक इससे जुड़ते गये इसका पैमाना बढ़ने लगा। आरती में लोग भीड़ का हिस्सा बनकर आरती करने वालों की भाव-भंगिमा पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और नदियों को देखते भी नहीं। गंगा तक आरती की परम्परा चल रही थी, पर दिल्ली की वर्तमान सरकार ने यमुना की आरती भी करवा डाली और कारण फिर वही बताया, लोगों को यमुना से जोड़ना। वैसे भी दिल्ली सरकार यहां की यमुना के लिये कितनी सजग है यह तो तभी पता चल गया था जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत लगभग सभी मंत्री श्री रविशंकर के उस कार्यक्रम को प्रचारित कर रहे थे जिसके बारे में सबको पता था कि इससे यमुना और प्रदूषित होगी।
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लोगों को नदियों से जोड़ना के लिए नदियों से लोगों को जोड़ना पड़ेगा। नदियों के ऐसे दृश्य दिखाइये, जिससे नदियों के प्रति लोगों का लगाव बढ़े। नदियों से लगाव होगा तो नदियों के प्रति जिम्मेदारी अपने आप समझ में आने लगेगी। दिल्ली की यमुना का पानी नाले जैसा है, इसके नजदीक जायेंगे तो बदबू भी आती है।
यमुना नदी को शाम के समय किसी ऊंची जगह से देखें तब नदी का रंग सुनहरा हो जाता है और सूर्य का प्रतिबिंब धीरे-धीरे एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाता है। यदि पानी में हल्की सी लहर हो तब सूर्य की किरणें झिलमिलाती सी लगती हैं। यह सब बनावटी नहीं है जैसा तामझाम से आरती में किया जाता है। यह दृश्य यमुना के पटल पर रोज उभरता है बिना किसी खर्च के, लेकिन इस दृश्य को कोई नहीं देखता। इस दृश्य को गीता काॅलोनी की तरफ खड़े होकर यमुना के पानी पर देखा जा सकता है। इस समय तरह-तरह के पक्षी भी पानी के ऊपर उड़ते हुए एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस दृश्य को यदि बच्चों को दिखाया जाये तो वे निश्चित तौर पर नदी के प्रति थोड़े संवेदनशील बन सकेंगे।
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इस नजारे को देखना एक सुखद अनुभव है और परम्परा के अनुरूप यदि आप पौराणिक कथाओं का समावेश करना चाहें तो कर सकते हैं, पर थोड़े आधुनिक संदर्भ में। यमुना को सूर्य की पुत्री माना जाता है। आप इसे आधुनिक परिवेश में देखें- यमुना की हालत देखकर सूर्य दुःखी होते हैं और हरेक शाम उसे सुनहरी किरणों से भर देते हैं और स्वयं लाॅकेट की तरह इसके पानी में उतर जाते हैं।
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ऐसे दृश्य पानी वाले हरेक संसाधनों पर उभरते हैं और इनके माध्यम से लोगों को अपनी नदियों से जोड़ने का एक प्रयास तो किया ही जाना चाहिए।
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