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वाराणसी में क्वारंटाइन केंद्रों की हकीकत: न सेनिटाइज़र, न मास्क, सोने के लिए बिस्तर तक का नहीं है इंतज़ाम

यूपी में क्वारंटाइन केंद्रों की स्थिति बदतर है। न तो यहां रह रहे लोगों की स्क्रीनिंग की गई है, और न ही क्वारंटाइन के नियम पर अमल किया जा रहा है। हैरानी की बात तो ये है उनमें से एक वाराणसी का क्वारंटाइन सेंटर भी है। 

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

एक ओर देश कोरोना जैसी भयानक बीमारी से जंग लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जनता सरकार के झूठे वादों की मार झेल रही है। आसान भाषा में इसे दोहरी मार कह सकते हैं। एक कोरोना और दूसरी सरकारी व्यवस्था की। कोरोना को रोकने के लिए भले ही सरकार हर संभव कोशिश कर रही हो, लेकिन जमीन पर उसका खासा असर देखने को नहीं मिल रहा है। आखिर दिखे भी कैसे ? क्योंकि कोशिश भी तो उसी रफ्तार से ही हो रही है जिस रफ्तार से सरकारी काम होते हैं। दरअसल, कोरोना मरीजों के लिए यूपी सरकार ने कई जगहों पर क्वारंटाइन सेंटर बनाए हैं, लेकिन उस चार दीवारी के अंदर की व्यवस्था अब सवालों के घेरे में है।

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वाराणसी के रोहनिया में क्वारंटाइन सेंटर की स्थिती

उत्तर प्रदेश के इन्हीं क्वारंटाइन सेंटर में से एक है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और भविष्य में टोक्यो जैसे शहर का सपना देखने वाले वाराणसी। यहां बने क्वारंटाइन में लोगों को ठहराया तो जा रहा है, लेकिन व्यवस्था ना के बराबर है। एक किस्म से ये मान सकते हैं कि ऐसा लग रहा है लोग यहां तड़ी पार की सजा काट रहे हैं। यहां दूसरे प्रदेशों के करीब 200 लोगों को ठहराया गया है। यहां की स्थिती का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां हर दिन किसी ना किसी कारण हंगामा हो ही जाता है। फिर चाहे वो लोगों के सोने की व्यवस्था हो या फिर नहाने आदि की। लोगों के लिए क्या व्यस्थाएं की गई है इसकी जीती जागती तस्वीर भी है। जिसमें साफ देखा जा सकता है कि सरकार ने जिस क्वारंटाइन सेंटर में संदिग्ध मरीजों की देखभाल का सपना देखा था वहां उनके साथ जेल से भी बुरा बर्ताव हो रहा है।

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वाराणसी के पिंडरा थाना क्षेत्र के गजोखर स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में बने क्वारंटाइन सेंटर में खाने की गुणवत्ता व घर जाने की मांग को लेकर हंगामा हो गया। सूचना पर पहुंचे एडीएम प्रशासन रणविजय सिंह व ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मनिकंडन, तहसीलदार रामनाथ व इंस्पेक्टर सनवर अली ने समझा-बुझाकर शांत कराया। ये स्थिती सिर्फ इस क्वारंटीन सेंटर की नहीं है, बल्कि ऐसी ही हालत रोहनिया स्थित एक पब्लिक स्कूल में बने क्वारंटाइन सेंटर की भी है। जहां लोगों को जमीन पर पतला गद्दा डालकर सोने की व्यवस्था की गई है। सरकार की ओर से यहां स्वच्छ बिस्तर व चारपाई तक का इंतजाम नहीं है।। सिर्फ सोने भर की बात नहीं है बल्कि या मौजूद तमाम लोगों को ना तो मास्क दिया गया है और ना ही सेनिटाइजर आदि की व्यवस्था की गई है। हालांकि डीएम कौशल राज शर्मा ने यहां निरीक्षण भी किया। मच्छरदानी की शिकायत के बाद कुछ लोगों तक मच्छर वाली अगरबत्ती मुहैया कराने का आश्वासन दिया गया। लेकिन ये आश्वासन सिर्फ आश्वासन ही रह गया। अबतक ये लोग कोरोना के साथ-साथ जरूरी चीजों के लिए जंग लग रहे हैं।

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वाराणसी के रोहनिया में क्वारंटाइन सेंटर पर जमीन पर लेटे लोग

आपको बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विभिन्न प्राथमिक स्कूलों में 14,500 से अधिक लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। रामेश्वर में बने क्वारंटाइन सेंटर में मुंबई से पहुंचे 28 साल के संदिग्ध को यहां भेजा गया, लेकिन लोग उसे देख भाग खड़े हुए। इसी तरह शिवपुर के क्वारंटाइन सेंटर में 50 बेड हैं, लेकिन यहां ठहरे लोग बिस्किट, समोसा लेने दुकानों पर पहुंच जा रहे हैं और जिसे इनकी देखभाल का जिम्मा सौंपा है वो कुंभकर्णीय नींद सो रहा है।

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ये हाल सिर्फ वाराणसी का नहीं है बल्कि योगी सरकार के इस राज्य में लगभग हर जगह यही स्थिती है। कई क्वारंटाइन सेंटर में पीने को पानी नहीं है, तो कई सेंटर पर सरकारी नौकर दावत का आनंद ले रहे हैं। लेकिन इन सबके बाद भी सरकार की आंखें नहीं खुल रही है। उधर, प्रदेश सरकार ने सभी तहसीलों को 70-70 लाख रुपये जारी करने की घोषणा की है, लेकिन यह मदद अफसरशाही में फंसी दिखती है।

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यूपी सरकार के दावों के उलट क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति है। राज्यों के क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति बदतर है। न तो यहां रह रहे लोगों की स्क्रीनिंग की गई है, और न ही कवारंटीन के नियम पर अमल किया जा रहा है। कई क्वारंटाइन सेंटर पर न तो कोई थाने का चौकीदार है और न ही स्वास्थ्य विभाग का कोई कर्मचारी। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए यहां न तो सेनिटाइजर दिया गया है और न ही स्क्रीनिंग की गई है। कई क्वारंटीन सेंटर में तो 50 लोगों के लिए सिर्फ तीन या चार वोशरूम है। कुल मिलाकर सब भगवान भरोसे है।

(पूर्णिमा श्रीवास्तव के इनपुट के साथ)

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