पंचकूला। अयोध्या के रथ पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव करवा कर अपनी नैया पार लगाना चाह रही है। ऐसा इसलिए है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में 75 पार का नारा देकर 40 पर अटकी बीजेपी को 2024 में 10 साल की एंटी-इन्कमबेंसी का खौफ सता रहा है। बीजेपी को लग रहा है कि हरियाणा के मतदाताओं ने तो उसे पांच साल बाद 2019 में ही झटका दे दिया था लेकिन उसके 75 पार के बिछाए गए मेंटल ट्रैप में फंसे विपक्ष ने अपने कमजोर कैंपेन से सत्ता की दहलीज तक उसे पहुंचा दिया। लेकिन इस बार लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव नहीं हुए, तो सत्ता उसके लिए दूर की कौड़ी हो सकती है।
6 जनवरी को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने पंचकूला में फ्लॉप रोड शो के जरिये चुनावी आगाज तो कर दिया है लेकिन दो-तीन हजार की बमुश्किल जुटाई गई भीड़ और 7 किलोमीटर का घोषित रोड शो तकरीबन आधा किलोमीटर में ही खत्म होने के बाद चर्चाओं-कयासों का बाजार गर्म है। नड्डा के मंथन और बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद बाहर आई खबरें इस बात की तसदीक कर रही हैं कि हरियाणा विधानसभा चुनाव भगवा दल के लिए गंभीर चिंता का सबब है। यही वजह है कि हरियाणा बीजेपी का बड़ा वर्ग लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव चाह रहा है। उसका मानना है कि यदि विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ ही होते हैं, तो अयोध्या में श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा और तीन राज्यों में जीत के बाद बने माहौल में उसकी नैया पर हो सकती है। नहीं तो 10 साल के बाद सरकार के खिलाफ बनी एंटी-इन्कमबेंसी उसे सत्ता से दूर ले जाएगी।
Published: undefined
बीजेपी नेताओं के लिए ऐसा सोचने की वजह 2019 विधानसभा चुनावों का सबक है। 2019 में बीजेपी ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 75 पार का नारा दिया था। बीजेपी की चुनाव मशीनरी ने 75 पार के नारे के साथ प्रदेश में ऐसा माहौल बना दिया था कि विपक्ष के साथ राज्य की जनता भी बीजेपी के बनाए इस जाल में फंस गई थी। इसी का नतीजा था कि लोग कह रहे थे कि वोट तो बीजेपी को नहीं देंगे लेकिन राज्य में सरकार तो उसी की बनेगी। यहां तक कि विपक्ष ने भी एक तरह से सरेंडर कर बीजेपी के लिए सत्ता का दरवाजा खोल दिया था। लेकिन जब विधानसभा चुनाव का नतीजा सामने आया तो वास्तविकता सामने थी। हरियाणा की जनता ने बीजेपी को नकार दिया था। मुख्यमंत्री मनोहर लाल मंत्रिमंडल के 7 दिग्गज मंत्री चुनाव हार गए थे। एक मात्र कैबिनेट मंत्री अंबाला कैंट से अनिल विज चुनाव जीत पाए थे। सोनीपत से कैबिनेट मंत्री कविता जैन, नारनौंद से वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, बादली से कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़, महेन्द्रगढ़ से शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा और इसराना से परिवहन मंत्री कृष्णलाल पंवार चुनाव हार गए थे। यहां तक कि बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला भी चुनाव हार गए थे। करनाल से मुख्यमंत्री मनोहर लाल की जीत का अंतर भी पिछले चुनाव से कम हो गया था।
Published: undefined
90 सदस्यीय विधानसभा में 2014 में 47 सीटें जीतने वाली बीजेपी 40 पर अटक गई थी और 2014 में 15 जीतने वाली कांग्रेस की सीटें दोगुनी से भी बढ़कर 31 हो गई थीं। इन चुनाव परिणामों के बाद हरियाणा में यह चर्चा प्रबल थी कि विपक्ष ने थोड़ा भी जोर लगाया होता तो बीजेपी सत्ता से बाहर होती। विपक्ष को भी इसकी कसक अभी तक साल रही है। लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने के पक्षधर हरियाणा बीजेपी के बड़े वर्ग को यही चिंता खाए जा रही है। बीजेपी के इन नेताओं का मानना है कि जनता ने तो उन्हें पांच साल बाद 2019 में ही झटका दे दिया था। वह भी उस वक्त इस तरह का परिणाम आया था जब 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और इससे पहले पुलवामा ब्लास्ट के चलते देश में बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त माहौल था और लोकसभा चुनाव के महज छह महीने के अंदर ही विधानसभा चुनाव हो गए थे।
Published: undefined
अब तो सरकार के 10 साल पूरे होने के बाद सरकार से जनता की नाराजगी ज्यादा है। लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव के पक्षधर नेताओं को तीसरी बार सत्ता उसी हालत में मिलती दिख रही है जब इस बुने जा रहे वर्तमान मायालोक में ही चुनाव करवा लिए जाएं। दिलचस्प तथ्य यह है कि राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर काबिज बीजेपी के सांसदों की राय इससे उलट आ रही है। उनको लगता है कि लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव हो गए तो सरकार की 10 साल की एंटी-इन्कमबेंसी का शिकार उन्हें होना पड़ेगा जिससे 2019 का प्रदर्शन दोहराना पार्टी के लिए मुश्किल होगा। मतलब बीजेपी की हरियाणा इकाई को लग रहा है कि लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव नहीं हुए तो उनकी नैया डूब जाएगी और सांसदों को लग रहा है कि लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए तो उनकी नैया डूब जाएगी। मामला बड़ा दिलचस्प है।
Published: undefined
6 जनवरी को पंचकूला में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी के किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन न करने के ऐलान के अगले दिन 7 जनवरी को मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र करनाल में जन नायक जनता पार्टी ने मिशन 2024 का आगाज कर दिया। इसके लिए सीएम सिटी का चयन काफी मायने रखता है। जेजेपी की इस रैली में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को अगली बार मुख्यमंत्री बनाने के नारे भी लगे। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि इंडिया गठबंधन को काउंटर करने के लिए दिल्ली के पांच सितारा होटल में एनडीए के नाम पर आनन-फानन में जुटाए गए 38 दलों में शामिल रही जेजेपी की राहें क्या अलग हो गई हैं? क्या हरियाणा में एनडीए टूट गया है? क्या बीजेपी ने मान लिया है कि अब उसे चुनाव में किसी की जरूरत नहीं है? वह अकेले ही चुनाव जीतने में सक्षम है? इन तमाम सवालों के जवाब लोग खोज रहे हैं। हां, यह तो साफ है कि 2019 में 40 पर अटकने के बाद जेजेपी के साथ राज बांटने को मजबूर हुई बीजेपी में इस बात का दर्द आज भी है। वह चाहती है कि हरियाणा में अगर उसकी सरकार बने, तो अपने दम पर बने। लेकिन बीजेपी के गढ़ करनाल में रैली कर जेजेपी ने यह संदेश दे दिया है कि वह भी इस चुनौती के लिए तैयार है। जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला ने ऐलान कर दिया कि वह लोकसभा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संभावना है कि लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव करा दिए जाएं जिसके लिए वह तैयार हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined