स्वच्छ भारत मिशन का जोर शौचालय बनवाने पर तो रहा, लेकिन इससे पैदा होने वाले मल-मूत्र के निस्तारण (फीकल मैनेजमेंट) और शौचालयों में पानी की उपलब्धता जैसे जरूरी पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया। अब ये मुद्दे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे हैं। इस पर ध्यान न देने की वजह से जमीन के तल का पानी (ग्राउंड वाटर) दूषित हो रहा है। भारत में शहरी पानी और स्वच्छता पर टेरी विश्वविद्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट के बाद प्रो अरुण कंसल ने यह बातें बताईं। प्रो कंसल टेरी विश्वविद्यालय में डीन हैं और उन्हीं के नेतृत्व में यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
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स्वच्छ भारत मिशन के तीन साल पूरे होने के बाद इसकी सफलता के दावों के बीच इस मिशन से पैदा हुई दुश्वारियों पर बहुत कम चर्चा हुई है। कम ही सही, लेकिन अब जाकर इन पर बात होनी शुरू हुई है। इस रिपोर्ट के विमोचन के मौके पर नवजीवन से प्रो कंसल ने बात की जिसमें तीन अहम बिंदु सामने आए। पहला यह कि स्वच्छ भारत मिशन में स्वच्छता या शौचालय बनवाने पर तो जोर है, लेकिन शौचालय कैसे चलता रहे, इस बारे में कोई योजना नहीं है। पैदा हो रहे मल के निस्तारण को लेकर भी कोई योजना नहीं है। सेप्टिक टैंक की वजह से भू-जल प्रदूषित हो रहा है और शौचालयों में पानी का कनेक्शन अनिवार्य न होने से उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। इसमें एक नया सवाल कॉरपोरेट तबके से यह भी आ रहा है कि स्वच्छ भारत से जुड़ने या उसमें योगदान करने की कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं है। उपर से लेकर नीचे तक सिर्फ सरकार ही की भूमिका है। इस दिशा में भी सरकार को ठोस पहल करनी चाहिए।
इस रिपोर्ट को जारी करते हुए आवास और शहरी मामलों के अतिरिक्त सचिव मनोज कुमार ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन इस समय बहुत निर्णायक दौर में है और सरकार के साथ-साथ नेताओं, जानी-पहचानी शख्सियतों, कंपनियों को साथ आना चाहिए। इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि पहले की तुलना में 88 फीसदी स्वच्छता सुविधा में सुधार हुआ है। पेयजल में खास सुधार नहीं दर्शाया गया है और इसकी एक बड़ी वजह विस्थापन और पलायन से पैदा हुई कठिन जीवन स्थितियों को बताया गया है। इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि भारत में जो स्वच्छता का संकट है, उसे लेकर पूरे विश्व में चिंता है और अगर भारत इसमें अपनी स्थिति सुधारता है तो उसकी वैश्विक छवि सुधरेगी और वह निरंतर विकास का लक्ष्य पूरा कर सकेगा।
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