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गंगा के लिए 111 दिनों से आमरण अनशन कर रहे स्वामी सानंद का निधन, पत्र का जवाब तक नहीं दिया पीएम मोदी ने

2011 में संन्यास लेने के पहले स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद का नाम डॉ जी डी अग्रवाल था। उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि अगर गंगा की सफाई की उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो वह 10 अक्टूबर से जल का भी त्याग कर देंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया गंगा के लिए 111 दिनों से आमरण अनशन कर रहे स्वामी सानंद का निधन

गंगा की सफाई के लिए विशेष काननू पास कराने की मांग को लेकर आमरण अनशन कर रहे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का गुरुवार को ऋषिकेश के एम्स में निधन हो गया। एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि कमजोरी और हार्ट अटैक की वजह से स्वामी सानंद का निधन हुआ है।

बीते 111 दिनों से अनशन पर बैठे स्वामी सांनद को प्रशासन ने बुधवार को ऋषिकेश के एम्स में जबरन भर्ती कराया था। अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार 111 दिनों से अनशन पर बैठे स्वामी सांन द ने मंगलवार को जल का भी त्याग कर दिया था, जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें अनशन स्थल से उठाकर अस्पताल में भर्ती कराया था।

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अपने निधन से पहले आज ही सुबह अस्पताल में लिखे गए एक पत्र में स्वामी सानंद ने एम्स में अपने स्वास्थ्य की स्थिति और डॉक्टरों के सहयोग के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने पत्र में लिखा, “कल दोपहर तकरीबन 1 बजे हरिद्वार प्रशासन ने मुझे बलपूर्वक मातृसदन से उठाकर ऋषिकेश के एम्स में भर्ती करा दिया। एम्स के सभी डॉक्टर मां गंगा के संरक्षण और जीर्णोद्धार की मेरी मांग और तपस्या के प्रति बहुत सहयोगी हैं। हालांकि, एक कार्यकुशल अस्पताल होने के कारण उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास, मुंह और नाक से जबर्दस्ती खिलाने, आईवी के जरिये पानी या अस्पताल में नहीं रखने के केवल तीन ही विकल्प हैं। विस्तृत जांच में पता चला कि मेरे खून में पोटैशियम की गंभीर कमी और डिहाइड्रेशन की शुरुआत हो गई है। उनके जोर देने पर मैं मुंह और आईवी दोनों ही तरीके से 500 एमएल पोटैशियम प्रतिदिन लेने के लिए तैयार हो गया। मेरी तपस्या में सहयोग के लिए मैं एम्स को दिल से शुक्रिया कहता हूं।”

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बता दें कि वर्तमान में नदियों की समस्याओं और उनके समाधान के देश में सबसे बड़े विशेषज्ञ स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद 22 जून से गंगा के संरक्षण के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे। इतना ही नहीं उन्होंने गंगा के संरक्षण पर कानून के लिए प्रधानमंत्री मोदी को भी पत्र लिखा था। इसी साल 6 अगस्त को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था, “इन चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ, उससे गंगा जी को कोई लाभ नहीं हुआ। उसकी जगह कॉर्पोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं। अभी तक आपने गंगा से मुनाफा कमाने की ही बात सोची है।” लेकिन स्सानंद के पत्र का ना ही कोई जवाब मिला और न ही कोई कार्रवाई हुई।

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अपने पत्र में उन्होंने गंगा के विषय पर मनमोहन सिंह सरकार की प्रशंसा करते हुए लिखा था, “मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए मनमोहन सिंह जी ने लोहारी-नागपाल जैसे बड़े प्रोजेक्ट रद्द कर दिए थे, जो 90 प्रतिशत बन चुके थे और जिसमें सरकार को हजारों करोड़ रुपये की क्षति उठानी पड़ी थी। इसके साथ ही उन्होंने भागीरथी जी के गंगोत्री से उत्तरकाशी तक का क्षेत्र ईको-सेन्सिटिव जोन घोषित करा दिया था, जिससे गंगा जी को हानी पहुंचाने वाले कार्य नहीं हो सकें।” इससे पहले 4 जुलाई को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भेजे पत्र में डॉ अग्रवाल ने लिखा था, “आप लोगों की गलत नीतियों और आर्थिक विकास की लालच से यह स्थिति आयी है।”

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2011 में संन्यास लेने के पहले स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद का नाम डॉ जी डी अग्रवाल था। डॉ अग्रवाल आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर थे, फिर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के शुरुआती दिनों में लंबे समय तक उसके सदस्य सचिव रहे। इसके बाद ग्रामोदय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। इस सरकार के पहले तक डॉ अग्रवाल नदियों से और पर्यावरण से जुड़ी लगभग हर उच्च-स्तरीय कमेटी का हिस्सा रहे। पिछले कुछ वर्षों से, विशेष तौर पर संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन गंगा के लिए समर्पित कर दिया था।

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