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सूरत के निलंबित जिलाधिकारी भूमि घोटाले में शामिल, कांग्रेस ने किया था पर्दाफाश: पार्टी नेता का दावा

गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव नायक ने कहा, ‘‘डुमस क्षेत्र में 2.17 लाख वर्ग मीटर की यह भूमि 1948 से राजस्व अभिलेखों में सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत है और अब इसकी कीमत लगभग 2,000 करोड़ रुपये है।"

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर  

 गुजरात में विपक्षी कांग्रेस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि सूरत के पूर्व जिलाधिकारी आयुष ओक 2,000 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में शामिल थे, जिसका पर्दाफाश पार्टी ने मई में किया था।

यह आरोप ऐसे समय आया है जब राज्य सरकार ने एक दिन पहले सोमवार को ओक को सूरत के तत्कालीन जिलाधिकारी के रूप में 2021 से 2024 के बीच राजस्व भूमि मामले से निपटने में "लापरवाही" बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया था।

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कांग्रेस नेता दर्शन नायक ने मीडिया को संबोधित करते हुए दावा किया कि उन्होंने 25 मई को मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को एक पत्र भेजा था, जिसमें सूरत शहर के डुमस इलाके में 2,000 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन के राजस्व रिकॉर्ड में एक पट्टेदार किसान का नाम कथित तौर पर दर्ज करने के लिए ओक के खिलाफ जांच की मांग की गई थी।

राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने सोमवार को एक आदेश में विस्तृत जानकारी दिये बिना कहा कि निलंबन के समय वलसाड के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत ओक ने भूमि मामले से निपटने के दौरान कथित तौर पर सरकारी खजाने को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी को 31 जनवरी, 2024 को सूरत से वलसाड स्थानांतरित किया गया था।

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नायक ने मुख्यमंत्री को मई में ईमेल के माध्यम से भेजे गए पत्र की एक प्रति साझा की और ओक द्वारा लिए गए निर्णयों की जांच की मांग की।

गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव नायक ने कहा, ‘‘डुमस क्षेत्र में 2.17 लाख वर्ग मीटर की यह भूमि 1948 से राजस्व अभिलेखों में सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत है और अब इसकी कीमत लगभग 2,000 करोड़ रुपये है। पट्टेदारी और कृषि भूमि को नियंत्रित करने वाले कानूनों के अनुसार, सरकारी भूमि के अभिलेखों में पट्टेदार किसानों के नाम दर्ज नहीं किए जा सकते हैं।"

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उन्होंने कहा कि जब लगभग 22 लोगों ने जिलाधिकारी के समक्ष आवेदन दायर करके मांग की थी कि उनके नाम उस भूमि के अभिलेखों में शामिल किए जाएं, तो 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया था और जनहित में इन सभी आवेदनों को खारिज कर दिया था।

नायक ने कहा कि उसके बाद भी किसी जिलाधिकारी ने उस आदेश को चुनौती नहीं दी और राजस्व अभिलेखों में यह भूमि सरकारी स्वामित्व वाली भूमि बनी रही।

उन्होंने दावा किया, "हालांकि, भू-माफियाओं और राजनीतिक नेताओं के साथ मिलीभगत से एक साजिश के तहत, ओक ने अपने तबादले से एक दिन पहले कृष्णमुखलाल श्रॉफ नामक एक व्यक्ति का नाम एक पट्टेदार किसान के रूप में दर्ज करने की मंजूरी दे दी, जिससे उस व्यक्ति का उस कीमती जमीन पर अधिकार स्थापित हो जाएगा। यह शायद पहली घटना थी, जिसमें सरकारी जमीन के राजस्व अभिलेखों में पट्टेदार का नाम जोड़ा गया।"

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कांग्रेस नेता ने कहा कि विपक्षी पार्टी द्वारा मामला प्रकाश में लाए जाने के बाद राज्य सरकार ने मई में ओक के आदेश को पलट दिया और जांच शुरू की।

नायक ने कहा कि उन्होंने मौजूदा कांग्रेस विधायक डॉ. तुषार चौधरी के साथ 20 मई को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया था और ओक को निलंबित करने और सरकारी जमीन पर कब्जा के कथित घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी।

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