पश्चिम बंगाल विधानसभा ने आठ प्रमुख विधेयकों को पारित किया था। लेकिन राज्यपाल ने इन्हें मंजूरी नहीं दी। ममता सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने मामले में राज्यपाल सचिवालय और केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय के माध्यम से) से जवाब मांगा है।
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अधिवक्ता आस्था शर्मा के माध्यम से याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल का आचरण संविधान के मूल सिद्धांतों और लोकतांत्रिक शासन को खतरे में डालता है, साथ ही विधेयकों के माध्यम से लागू किए जाने वाले कल्याणकारी उपायों के लिए राज्य के लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
आगे कहा गया, "राज्य के राज्यपाल के पास कई महत्वपूर्ण विधेयक 2022 से लंबित हैं (जब जगदीप धनखड़ ने राज्यपाल का पद संभाला था) और वर्तमान राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने भी इन विधेयकों को मंजूरी देने या खारिज करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।"
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जिन आठ विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है, उसमें पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022; पश्चिम बंगाल पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022; पश्चिम बंगाल निजी विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022; पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022; पश्चिम बंगाल कृषि विश्वविद्यालय कानून (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022; अलिया विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022; पश्चिम बंगाल नगर एवं ग्राम (योजना एवं विकास) (संशोधन) विधेयक, 2023 और पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 शामिल हैं।
इससे पहले अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022 को मंजूरी नहीं देने के राज्यपाल आनंद बोस के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था।
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सितंबर 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्यपाल आनंद बोस के उस फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर राजभवन से हलफनामा मांगा था, जिसमें राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को सभी राज्य विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने के प्रस्ताव वाले विधेयक को मंजूरी नहीं देने का फैसला किया गया था। बाद में मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगनम और न्यायमूर्ति हिरणमय भट्टाचार्य की पीठ ने अपने पहले के निर्देश को स्थगित कर दिया और पहले याचिका की वैधता की जांच करने का फैसला किया।
यह विधेयक जून 2022 में विधानसभा ने पारित किया था। हालांकि, यह विधेयक उसी साल 15 जून को राज्यपाल भवन को भेज दिया गया था, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक इस पर अपनी सहमति नहीं दी है।
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