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जजों को घूस देने का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की एफआईआर किसी न्यायाधीश के खिलाफ नहीं है। इस तरह की याचिका दायर कर संस्थान को नुकसान पहुंचाया गया और उसकी निष्ठा पर बेवजह शक जाहिर किया गया।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए जजों के रिश्वत वाले केस की जांच एसआईटी से कराने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता कामिनी जायसवाल ने जजों के नाम पर घूस लेने के मामले में एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम भी कानून से ऊपर नहीं हैं और सभी जरूरी प्रक्रियाओं का पालन होना ही चाहिए लेकिन सीबीआई की एफआईआर किसी जज के खिलाफ नहीं है और न ही उसके लिये एक जज के खिलाफ ऐसा करना संभव है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर कर संस्थान को ठेस पहुंचाई गई और उसकी निष्ठा पर बेवजह शक जाहिर किया गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने कामिनी जायसवाल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि फिलहाल अवमानना का केस नहीं चला रहे लेकिन याचिका अवमानना लायक थी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि उम्मीद करते है कि वकील अपना बर्ताव सुधारेंगे। याचिका में दावा किया गया था कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए गए थे। इसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश इशरत मसरूर कुदुसी भी आरोपी हैं।

13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ घंटे तक बहस हुई थी जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता कामिनी जायसवाल की ओर से वरिष्ठ वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने दलीलें दी जबकि केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलीलें रखीं।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि याचिका में दायर आरोप पहली नजर में न्यायपालिका की छवि को खराब करने वाले हैं।

वकील शांति भूषण ने कहा था कि चीफ जस्टिस के खिलाफ सीधे कोई आरोप नहीं है। ये याचिका सीबीआई द्वारा दायर एफआईआर की गंभीरता को देखते हुए दायर की गई है। एफआईआर में किसी भी मौजूदा जज का नाम नहीं है। लेकिन ये एक लंबित मामले को प्रभावित करने के लिए रिश्वत लेने का गंभीर मामला है।

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि दोनों याचिकाओं ने संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने इस नुकसान की भरपाई के लिए याचिकाओं को वापस लेने की सलाह दी थी।

कामिनी जायसवाल की याचिका पर सुनवाई के लिए 10 नवंबर को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया था। ये तीनों ही जज उस पांच सदस्यीय बेंच के सदस्य थे जिसने जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा 9 नवंबर को पांच सदस्यीय बेंच गठित करने के आदेश को निरस्त किया था। इस बेंच ने 9 नवबर को जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा जजों के नाम पर रिश्वत वसूलने के मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान बेंच को रेफर करने के आदेश को निरस्त कर दिया था। बेंच ने कहा था कि इससे अराजकता का माहौल पैदा होता है।

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