बिहार में जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ता ने जातिगत जनगणना का विरोध किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण डेटा प्रकाशित कर दिया है। ऐसे में इस पर जल्द सुनवाई की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट 6 अक्टूबर को सुनवाई करने पर सहमत हो गया है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन. भट्टी की पीठ ने आदेश दिया कि मामले को शुक्रवार की वाद सूची से नहीं हटाया जाएगा क्योंकि यह जिक्र किया गया था कि राज्य सरकार ने 2 अक्टूबर को जाति-आधारित सर्वेक्षण डेटा जारी किया था।
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महात्मा गांधी की जयंती के दिन बिहार सरकार ने बहुप्रतीक्षित जाति आधारित सर्वेक्षण जारी किया। रिपोर्ट के अनुसार, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 36.01 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है, जबकि राज्य की कुल 13 करोड़ से अधिक आबादी में ऊंची जातियां 15.52 प्रतिशत हैं।
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इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आम लोगों के हित में नीतियां बनाने के लिए मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेक्षण प्रक्रिया या सर्वेक्षण के परिणामों के प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम आदेश पारित करने से बार-बार इनकार कर दिया था, हालांकि यह तर्क दिया गया था कि डेटा के प्रकाशन के बाद मामला निरर्थक हो जाएगा।
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6 सितंबर को पिछली सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर अक्टूबर में सुनवाई टाल दी थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि भारत में जनगणना करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है, और बिहार सरकार के पास राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण के संचालन पर निर्णय लेने और अधिसूचित करने का कोई अधिकार नहीं है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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