पटना शहर के एक कॉलेज से स्नातक एवं यहीं के मूल निवासी साहिल कुमार ने नौकरी नहीं मिलने की अपनी हताशा को एक विचित्र नाम 'बेरोजगार चायवाला' के साथ चाय बेचने के व्यवसाय में बदल दिया है। इस काम का उद्देश्य चाय बेचने से कहीं अधिक एक सामाजिक संदेश देना है।
साहिल कुमार के भाई सूरज कुमार उनके इस छोटे से व्यवसाय में भागीदार हैं और वह इसे एक "स्टार्ट-अप" कहते हैं। वह ऐसे में स्थिति की विडंबना उल्लेखित करते हैं जब विभिन्न उम्मीदवारों के लाउडस्पीकर लगे प्रचार वाहन रोजगार सहित उनके वादे बताते हैं।
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ऐसे प्रचार वाहन शहर के बीचों-बीच स्थित लोकप्रिय डाकबंगला चौराहे के पास सड़क किनारे उनकी ठेलागाड़ी के पास से प्रतिदिन गुजरते हैं।
सूरज (24) ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, "सड़कों पर प्रचार करते हुए उम्मीदवार बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन जब वे छात्रों के लिए कुछ करने की स्थिति में होते हैं, तो वे पीछे हट जाते हैं।"
उन्होंने कहा कि व्यवसाय का नाम उनके भाई साहिल ने दिया, जो उनसे एक साल छोटा है। साहिल ने मीठापुर स्थित एक कॉलेज से बीकॉम किया है, जहां उनका परिवार रहता है। उनके परिवार में उनकी गृहिणी मां और तीन भाई शामिल हैं। उनके पिता की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा प्राप्त करने एवं नौकरी के लिए कड़ी मेहनत करने के बाद भी, हम सफल नहीं हो पाये। कुछ ना कुछ बाधाएं आती रहीं। मैं प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने से चूक गया।"
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कड़ी मेहनत के बावजूद भाइयों को सही अवसर या उचित वेतन नहीं मिला। इसलिए, उन्होंने समाज को यह दिखाने के लिए चाय की दुकान शुरू की कि शिक्षा के बावजूद भी व्यक्ति बेरोजगार है। सूरज ने ग्राहकों को चाय के कुल्लड़ पकड़ाते हुए कहा, ‘‘और हमने यह 'बेरोजगार चायवाला' चाय की दुकान खोली।"
उन्होंने कहा कि यह नाम उनके भाई ने ‘‘पूरी तरह से हताशा और गुस्से" के कारण चुना था क्योंकि उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई थी।
सूरज ने कहा, ‘‘हमारे पड़ोस के कई लोगों ने उनसे कहा कि अगर उन्होंने उद्यम के लिए ऐसा नाम चुना तो लोग उनका मजाक उड़ाएंगे। लेकिन वह दृढ़ निश्चयी थे और समाज को यह संदेश देना चाहते थे।"
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कुमार बंधुओं की कहानी पटना में कोई अकेली कहानी नहीं है, लेकिन बहुत कम लोगों में ऐसा करने का साहस होता है। सचल चाय-स्टॉल के सामने की तरफ लगे एक पोस्टर में भी चाय का काव्यात्मक रूप से बखान किया गया है, जिसमें लिखा है ‘‘ये चाय की मोहब्बत तुम क्या जानो, हर घूंट में ही नशा है।’’
वहीं इस चाय के स्टॉल पर यह भी लिखा है, ‘‘फिक्र मत कर, चाय ट्राई कर।’’ साथ ही स्टॉल पर पोस्टर में यह भी लिखा है कि चाय के दो प्रकार के रेट हैं- नौकरीपेशा लोगों के लिए 15 रुपये और बेरोजगारों के लिए 10 रुपये।
सूरज ने मुस्कुराते हुए कहा, "नौकरीपेशा लोग भी ज्यादातर 10 रुपये की 'बेरोजगार दर' पर चाय पीना चाहते हैं। जब हम उनसे पूछते हैं, तो वे कहते हैं कि वे भी बेरोजगार हैं।"
देर शाम को लोग स्टॉल के आसपास इकट्ठा होते देखे जा सकते हैं, जो गर्म चाय की चुस्की लेते गपशप करते कभी-कभी चुनावों पर भी चर्चा करते हैं।
सूरज और साहिल के बचपन के कई दोस्त अक्सर उन्हें नैतिक समर्थन देने के लिए आते हैं और पैसे भी देते हैं।
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इस चुनाव में युवाओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा क्या है, यह पूछे जाने पर सूरज ने कहा, "छात्रों को सशक्त बनाया जाना चाहिए और उन्हें नौकरी मिलनी चाहिए। सरकार को कड़ी मेहनत करने वालों का समर्थन करना चाहिए।"
उन्होंने बताया कि उद्यम को एक सरकारी योजना के तहत पंजीकृत किया गया है ताकि भविष्य में "हमें सरकार से सहायता मिल सके।’’
बिहार की राजधानी में दो संसदीय क्षेत्र हैं - पटना साहिब और पाटलिपुत्र - दोनों सीट से वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद हैं। इन दोनों सीट के लिए चुनाव एक जून को होंगे, जो सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव का आखिरी है।
बृहस्पतिवार को प्रचार थम गया। शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी प्राथमिक मुद्दों में से हैं, खासकर पटना के युवा मतदाताओं के लिए, जिनमें से बड़ी संख्या में लोग बेहतर शिक्षा और नौकरी की तलाश में शहर छोड़कर बड़े शहरों में जाते हैं।
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