मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और अपने आपको बच्चों का मामा कहने वाले शिवराज सिंह चौहान सही कहते हैं कि ‘एमपी अजब है, सबसे गजब है’। मध्य प्रदेश में ऐसा ही कुछ चल रहा है जिससे यह बात साबित होती है। मध्य प्रदेश में बिना परीक्षा पास किए आप डॉक्टर भी बन सकते हैं और काला कोर्ट पहन कर वकालत भी कर सकते हैं। ताजा मामला यह है कि एमपी में जज बनने तक के लिए आपको परीक्षा पास करने की जरूरत नहीं।
मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापमं घोटाले जैसा एक और मामला सामने आया है। दरअसल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) में एक दर्जन से ज्यादा छात्र ऐसे हैं जिन्हें गलत तरीके से पास कर दिया गया। इनमें से कुछ छात्र ऐसे हैं जो परीक्षा में फेल हो गए थे, जबकि कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने परीक्षा ही नहीं दी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इनमें से कई छात्रों ने वकालत शुरू कर दी है। इतना ही नहीं, इन्ही छात्रों में से दो छात्र तो जज बनकर फैसले भी सुना रहे हैं।
यह मामला तब सामने आया जब फर्जी तरीके से पास हुए छात्रों के सहपाठियों ने एनएलआईयू के दीक्षांत समारोह के दौरान इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ किया। छात्रों ने सवाल किया कि जिन छात्रों के पेपर रुके हुए थे, वह पास कैसे हो गए और वैसे छात्रों को कैसे पास कर दिया गया, जिन्होने परीक्षा ही नहीं दी थी। जानकारी के मुताबिक, एनएलआईयू के कुछ छात्रों ने इस फर्जीवाड़े की शिकायत उच्चतम न्यायलय में भी की। मामले को तूल पकड़ता देख विश्वविधालय ने जांच के लिए प्रो घघोर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था, जिसके बाद जांच में सारे आरोप सही पाए गए और तत्काल एनएलआईयू के असिस्टेंट रजिस्ट्रार (परीक्षा) रंजीत सिंह को सस्पेंड कर दिया गया।
Published: 19 Nov 2017, 2:07 PM IST
एनएलआईयू में ट्राई सेमेस्टर सिस्टम चलता है और 5 साल में कुल 15 परीक्षाएं होती हैं। फेल होने के कारण कई छात्रों के पेपर रुक जाते हैं, जिन्हें बाद में परीक्षा देकर क्लियर करना होता है। आरोपियों में से कई छात्र बाद में दी गई परीक्षा में भी फेल हो गए। मिली जानाकारी के अनुसार, एनएलआईयू की परीक्षा शाखा द्वारा 30 से 50 हजार रुपये लेकर ऐसे छात्रों को पास कर दिया गया। परीक्षा लेने से लेकर रिजल्ट तैयार करने और डिग्री देने तक के सारे कामों की जिम्मेदारी एनएलआईयू के ऊपर ही है। पिछले काफी समय से रिजल्ट तैयार करने और गोपनीय कार्यों का जिम्मा असिस्टेंट रजिस्ट्रार (परीक्षा) रंजीत सिंह के पास था। अंतिम रिजल्ट तैयार होने के बाद उस पर औपचारिक तौर से प्रोफेसर यूपी सिंह के हस्ताक्षर होते थे। इसी अंतिम रिजल्ट के आधार पर ही डिग्रियां तैयार की जाती थीं। आरोप है कि अंतिम रिजल्ट तैयार करते समय फेल छात्रों से पैसे लेकर उनको भी पास कर दिया जाता था।
विश्वविद्यालय की जांच में ऐसे दो नाम भी मिले जो गलत तरीके से डिग्री लेकर जज बन गए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस अभय गोहिल ने बताया, “फेल होने वाले जिन छात्रों को गलत तरीके से डिग्री दी गई उनमें भानु पंडवार और अमन सूलिया का नाम भी शामिल है। दोनों को फेल होने के बावजूद डिग्री दे दी गई। इसी का उपयोग कर वह जज बने हैं। इस तरह से डिग्री लिए कई छात्र कुछ बड़े प्रतिष्ठानों में भी काम कर रहे हैं।”
इस बीच एनएलआईयू के डायरेक्टर डॉ एसएस सिंह ने कहा है कि मामले के सामने आते ही उन्होंने एक आंतरिक जांच कमिटी का गठन कर असिस्टेंट रजिस्ट्रार को सस्पेंड कर दिया था। उन्होंने बताया कि इस पूरे मामले की एक सेवानिवृत्त जज द्वारा जांच की जा रही है। इस संबंध में एनएलआईयू के एक पूर्व छात्र कृष्णा ने नवजीवन को बताया, “वह 2015 में एनएलआईयू से पास होकर निकले हैं और जज बनी भानु पंडवार उनकी बैचमेट रही हैं। फर्जी तरीके से पास होने की बात पर उन्होने कहा कि उन्हे भी इस बारे में जानकारी मीडिया के माध्यम से मिली है।”
Published: 19 Nov 2017, 2:07 PM IST
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Published: 19 Nov 2017, 2:07 PM IST