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बिहारः उपचुनाव और राज्यसभा चुनाव से पहले एनडीए में मची भगदड़

बिहार में अररिया लोकसभा और जहानाबाद, भभुआ विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव से पहले एनडीए गठबंधन को बड़ा झटका लगा है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है। 

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  पीएम मोदी, जीतनराम मांझी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार 

एक समय था जब उपचुनाव का कोई खास महत्व नहीं होता था। लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं है, क्योंकि आजकल एक नगरपालिका चुनाव में भी बीजेपी की जीत टीवी चैनलों पर बड़ी खबर बन जाती है और उसे सत्तारूढ़ सरकार के दल के पक्ष में एक जनमत संग्रह के रूप में पेश किया जाता है।

बिहार की एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों के लिए आगामी 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता देखी जा रही है। क्योंकि बिहार की जनता द्वारा 2015 में चुने गए आरजेडी-जेडीयू-महागंठबंधन को धोखा देकर नीतीश कुमार द्वारा चुनाव में हारने वाली बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन की सरकार बनाने के बाद से यह उनकी पहली चुनावी परीक्षा होगी। चारा घोटाला मामले में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को सजा दिए जाने का भी मतदाताओं पर असर पड़ेगा।

दलित राजनिति और आगामी राज्यसभा के चुनाव से संबंधित दो ताजा घटनाक्रमों ने 11 मार्च के उपचुनाव से पहले एनडीए के लिए समस्या खड़ा कर दिया है। बिहार एनडीए में बीजेपी और जेडीयू के अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी शामिल है।

उपचुनाव से ठीक पहले एनडीए को एक बड़ा झटका देते हुए जीतनराम मांझी ने गठबंधन से नाता तोड़ लिया है। इससे पहले 25 फरवरी को उन्होंने ऐलान किया था कि 23 मार्च को बिहार की राज्यसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में अगर उनकी पार्टी को कम से कम एक सीट नहीं मिली तो वह एनडीए गठबंधन के तीनों उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं करेंगे और यहां तक बिहार में सत्ताधारी गठबंधन से अलग भी हो जाएंगे। जब से नीतीश कुमार एनडीए में वापस आए हैं तभी से मांझी नाराज चल रहे हैं। देश भर में अनुसूचित जाति के लोगों पर लगातार हो रहे हमले और बक्सर जिले के नंदन गांव में महादलितों की पिटाई और फिर उनकी गिरफ्तारी ने मांझी की नाराजगी को और बढ़ा दिया था। 12 जनवरी को नीतीश कुमार के काफिले पर कथित पत्थरबाजी के बाद पुलिस ने महादलितों के खिलाफ बहुत निर्ममता से कार्रवाई की थी।

दिलचस्प बात ये है कि मांझी का ये फैसला अररिया लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप सिंह के नामांकन में उनकी मौजूदगी के कुछ दिनों बाद आया है। उसी दिन मांझी के बेटे ने रांची जाकर जेल में बंद लालू प्रसाद से मुलाकात किया था। मांझी ने साफ कहा है कि उपचुनाव के नतीजों की उन्हें कोई चिंता नहीं है, क्योंकि एनडीए का लगातार एकतरफा समर्थन करने के बावजूद भी किसी को उनकी परवाह नहीं है।

मांझी एकलौते नहीं हैं जो नाखुश हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वरिष्ठ जेडीयू नेता उदय नारायण चौधरी खुलेआम एनडीए की आलोचना करते रहे हैं। कुछ महीने पहले उन्होंने वर्तमान एनडीए नेतृत्व की लगातार आलोचना करने वाले पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को आमंत्रित किया था। और 24 फरवरी को वह उस कार्यक्रम में मौजूद थे जिसमें दलित नेता प्रकाश अंबेडकर ने भाषण दिया था।

25 फरवरी को जब मांझी एनडीए छोड़ने की धमकी दे रहे थे तो लगभग उसी समय बिहार विधानसभा में विपक्षी पार्टी आरजेडी के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव संत रविदास की जयंति के अवसर पर एक कार्यक्रम में दलितों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर तेजस्वी ने इस बात का खुलासा किया कि हाल ही में उन्होंने बसपा अध्यक्ष मायावती को राज्यसभा की सीट देने का प्रस्ताव दिया है। लेकिन तेजस्वी के अनुसार मायावती ने यह कहते हुए उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि वह तब तक संसद में कदम नहीं रखेंगी जब तक सांप्रदायिक ताकतें सत्ता में हैं। मायावती ने राज्यससभा के प्रस्ताव के लिए लालू प्रसाद यादव का शुक्रिया भी अदा किया। उन्होंने पिछले साल यह आरोप लगाते हुए अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था कि उन्हें राज्यसभा में दलित उत्पीड़न के मुद्दों को उठाने नहीं दिया जा रहा था।

कांग्रेस और आरएलएसपी के सूत्रों ने इस बात की पुष्ट की है कि कुछ चल रहा है और आरएलएसपी के नेता और कार्यकर्ता आरजेडी और कांग्रेस के उम्मीदवारों का समर्थन कर सकते हैं।

विधानसभा उपचुनाव में यादवों और मुसलमानों से समर्थन मिलने को लेकर आश्वस्त आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन दलित वोटों को अपनी तरफ करने की कोशिश कर रहा है, जो राज्य की 16 प्रतिशत आबादी है। वहीं दूसरी ओर एनडीए अपने पुराने सामाजिक समीकरण को फिर से साधने की कोशिश करेगा। ऐसे में यह उपचुनाव सत्ताधारी गठबंधन और विपक्ष दोनों के लिए राजनीतिक हवा को भांपने का एक महत्वपूर्ण मौका है।

आरजेडी जहां जहानाबाद विधानसभा सीट और अररिया लोकसभा सीट पर अपनी जीत को बरकरार रखने को लेकर आश्वस्त है, वहीं भभुआ सीट से कांग्रेस उम्मीदवार शंभू पटेल को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि बीजेपी ने यहां से दिवंगत पूर्व विधायक आनंद भूषण पांडे की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है, जो एक ब्राह्मण हैं। भभुआ में कांग्रेस की रणनीति एनडीए के किले में सेंध लगाने की है, क्योंकि शंभू पटेल एक कुर्मी हो जो इत्तेफाक से मुख्यमंत्री नीतश कुमार की जाति है। भभुआ में कुर्मी और कोयरी जाति के मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। अपने नेता और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से 22 फरवरी को मुलाकात के बाद आरएलएसपी ने एनडीए उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान कर दिया है। हालांकि कांग्रेस के साथ आरएलएसपी के सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टी की है कि आरएलएसपी नेता और कार्यकर्ता उपचुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को समर्थन कर सकते हैं। इसके अलावा भभुआ विधानसभा सीट सासाराम (सुरक्षित) सीट में आती है, जो काराकाट लोकसभा सीट से बिल्कुल सटी हुई है, जहां से कुशवाहा सांसद हैं।

हालांकि बीजेपी भभुआ सीट को बरकरार रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी क्योकि गुजरात चुनाव और राजस्थान के उपचुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद यह उपचुनाव उसके लिए सम्मान की बात हो गई है।

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