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संसद में दिल्ली पुलिस की तारीफ कर शाह ने छिपाई अपनी नाकामी, खुद ही लगा लिया अपनी काबिलियत पर सवालिया निशान

दिल्ली हिंसा में अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहने के लिए गृहमंत्री अमित शाह बिना झिझके खुद पर जिम्मेदारी लेते और माफी मांग लेते तो उनका कद न केवल बढ़ता बल्कि उन्हें अच्छी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी मिलता। ऐसा कदम उनको सबसे अलग दिखाता।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

किसी भी तरह के दंगों के लिए क्या कभी कोई प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर माफी मांगना सीखेंगे? दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों में पचास से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में चर्चा के दौरान दंगों में मारे लोगों की मौत पर सिर्फ दुख जताकर अपना कर्तव्य पूरा समझ लिया। यहां सवाल उठता है कि क्या गृहमंत्री का सिर्फ दुख जताना ही पर्याप्त है?

नैतिकता का तकाजा तो कहता है कि गृहमंत्री अमित शाह को दिल्ली हिंसा के लिए संसद में माफी मांगनी चाहिए थी। साथ ही दंगों को रोकने में विफल आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी। क्योंकि दिल्ली में लगातार तीन दिनों तक हुए दंगों को रोकने में दिल्ली पुलिस बुरी तरह विफल साबित हुई थी। दिल्ली दंगों ने दिल्ली पुलिस के खुफिया तंत्र के साथ ही केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की भी पोल खोल दी। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह को तो दिल्ली पुलिस का काम इतना अच्छा लगा कि उन्होंने संसद में पुलिस की जमकर तारीफ की।

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पुलिस की तारीफ से खुद को बचाया

सच्चाई ये है कि गृहमंत्री ने दिल्ली दंगों में भूमिका के लिए दिल्ली पुलिस की संसद में तारीफ अपने बचाव के लिए की है। दरअसल दिल्ली पुलिस सीधा गृहमंत्री के अधीन है। ऐसे में देश की राजधानी में तीन दिन तक जारी दंगों और उनको रोकने में पुलिस अधिकारियों की विफलता ने गृहमंत्री अमित शाह को फेल साबित कर दिया। ऐसे में अगर गृहमंत्री शाह संसद में पुलिस के फेल रहने की बात स्वीकार कर लेते तो यह सीधे तौर पर बतौर गृहमंत्री अपनी विफलता को स्वीकारना होता। इसलिए गृहमंत्री ने संसद में दिल्ली पुलिस की तारीफ खुद को बचाने के लिए की है।

पूर्व अधिकारी पुलिस पर उठा चुके हैं सवाल

दिल्ली हिंसा में पुलिस की भूमिका पर विपक्ष ही नहीं कई पुलिस आयुक्त सवाल उठा चुके हैं। दिल्ली पुलिस के कई पूर्व आयुक्तों ने खुल कर कहा कि दिल्ली में दंगों के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिम्मेदार हैं। कई पूर्व पुलिस कमिश्नरों और पुलिस महानिदेशकों के बयान बहुत अहम हैं, क्योंकि कोई भी आईपीएस अफसर बिना गंभीर या ठोस वजह के पुलिस की कभी बुराई नहीं करता है। सभी पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने साफ कहा कि लोगों के जान-माल की रक्षा करने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है और दिल्ली में पुलिस अपने इस कर्तव्य का पालन करने में बुरी तरह विफल रही है।

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मात्र 36 घंटे दंगे का तर्क शर्मनाक

दिल्ली में हुए दंगें तीन दिन तक लगातार चलते रहे, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में घंटों के हिसाब से यह तर्क दिया कि दंगे केवल 36 घंटे तक ही चले। शायद गृहमंत्री की नजर में देश की राजधानी में उनकी नाक के नीचे 36 घंटे तक दंगे होना सरकार और पुलिस के लिए गर्व की बात है। देश की सरकार की नाक के नीचे 36 घंटों तक दंगे होना यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि पुलिस बुरी तरह विफल रही।

दंगे अगर साजिश तो कहां थीं खुफिया एजेंसियां

संसद में दिल्ली हिंसा पर चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि दंगों के पीछे गहरी साजिश की संभावना है। यह बयान खुद गृहमंत्री शाह की काबिलियत पर सवालिया निशान लगाता है। क्योंकि देश की राजधानी में दंगों की साजिश रचकर तीन दिन तक कत्लेआम करना गृहमंत्री, उनकी पुलिस और उनके अधीन रहने वाले खुफिया तंत्र की विफलता है। हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर आतंकियों के हमले को लेकर इनपुट देने वाली खुफिया एजेंसियों के जासूसों को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी कि देश की राजधानी दिल्ली में सैकड़ों लोग दंगा करने की साजिश रच रहे हैं। और वो भी ऐसे समय पर जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका का राष्ट्रपति दिल्ली दौरे पर शहर में था। इसके अलावा यूपी से भी 300 दंगाइयों के आने की बात कहकर शाह ने अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को भी कठघरे में ला खड़ा किया।

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जिम्मेदारी लेने की बजाय विपक्ष पर हमला

अमित शाह ने दिल्ली हिंसा के लिए संसद में दिए अपने जवाब में नाम लिए बगैर एआईएमआईएम के वारिस पठान सहित सोनिया गांधी और राहुल गांधी के भाषणों को दंगे भड़कने के लिए जिम्मेदार ठहराया। शाह ने आरोप तो लगा दिए, लेकिन यह नहीं बताया कि इन नेताओं के खिलाफ उन्होंने कानूनी कार्रवाई करके उनको जेल में क्यों नहीं डाला? इतना ही नहीं गृहमंत्री ने ये भी नहीं बताया कि “देश के गद्दारों को गोली मारो.. " को जैसे भड़कऊ भाषण देने वाले अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा बयानों से कैसी शांति स्थापित करने की कोशिश की जा रही थी?

दूसरों पर हमले से पाप कम नहीं होते

दिल्ली हिंसा में अपनी जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहने के लिए गृहमंत्री अमित शाह बिना झिझके खुद पर जिम्मेदारी लेते और माफी मांग लेते तो इससे उनका कद न केवल बढ़ता बल्कि उन्हें अच्छी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी मिलता। ऐसा कदम उनको पहले के गृह मंत्रियों से अलग दिखाता।

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