एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सोमवार को केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यसभा में संविधान की धारा-370 और 35ए को रद्द करने का विधेयक पेश करते हुए ऐलान किया कि केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित करने का फैसला किया है। इस फैसले के तहत अब जम्मू और कश्मीर विधानसभा के साथ एक केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख बिना विधानमंडल वाला केंद्र शासित क्षेत्र होगा।
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मोदी सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए जम्मू औऱ कश्मीर के पूर्व वार्ताकार वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि यह एक घोर प्रतिगामी कदम है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस कदम से कश्मीर के लोगों के लिए इस बात को सच साबित कर दिया है कि वे अब एक लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “यह एक अत्यंत प्रतिगामी कदम है और मैं यह समझ पाने में अक्षम हूं कि इसका उद्देश्य क्या है। अगर इसका मकसद कानून-व्यवस्था में सुधार करना है तो यह कदम उसे और भी बदतर करने जा रहा है। इसको लेकर कश्मीर के लोगों में कड़ी प्रतिक्रिया होगी।”
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देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त रहे हबीबुल्लाह ने कहा, “अब यह अदालतों को तय करना है कि क्या राष्ट्रपति का कोई आदेश संविधान को बदल सकता है। मैं कोई कानूनी राय नहीं दे सकता, लेकिन जो सामने है, वह गैरकानूनी है। धारा-370 एक अस्थायी प्रावधान था, लेकिन लोगों से मशवरा किए बिना संविधान में कोई भी बदलाव अपने आप में असंवैधानिक है। अधिकांश लोगों को अभी यह भी नहीं पता कि क्या हुआ है क्योंकि उन्हें बाकी देश से काट दिया गया है।”
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मोदी सरकार के फैसले के तरीके को अलोकतांत्रिक बताते हुए वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, “आखिर उन्होंने ऐसा अलोकतांत्रिक कदम क्यों उठाया? क्योंकि वे जानते हैं कि इसका कश्मीर में प्रतिगामी असर होगा। वास्तव में, कश्मीर हमेशा से उनके लिए एक समस्या रहा है। पहले वे जम्मू और कश्मीर कहते थे, लेकिन अब खुलकर सामने आ गया है कि इनकी समस्या कश्मीर ही है।”
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फैसले पर निराशा जताते हुए वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि इस सरकार ने अपने इस कदम से कश्मीर के लोगों के इस संदेह को सच साबित कर दिया कि वे किसी लोकतंत्र में नहीं रहते। उन्होंने कहा, “भारत सरकार ने अब स्पष्ट कर दिया है कि यहां अब कोई लोकतंत्र नहीं है। अब यहां लोकतंत्र की कोई निशानी नहीं है। अब, यहां कोई बीच का रास्ता नहीं है। उन्होंने राज्य के लोगों को सीधा तौर पर एक साथ टकराव में झोंक दिया है।
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