राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, आरएसएस की ट्रेड यूनियन संगठन भारतीय मजदूर संघ यानी बीएमएस 17 नवंबर को केंद्र की मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ संसद भवन रैली करेगा और विरोध मार्च निकालेगा। बीएमएस का कहना है कि मोदी सरकार के फैसलों से गरीबों पर दबाव बढ़ रहा है और अमीर फायदा उठा रहे हैं। सरकार के हर फैसले से अमीरों को राहत मिल रही है। बीएमएस का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो 2019 में देश के लोग इस सरकार को उखाड़ फेकेंगे।
यह पहला मौका नहीं है जब आरएसएस ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की है। इससे पहले आरएसएस के स्थापना दिवस पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी अपने भाषण में किसानों, मजदूरों और बेरोजगारी की समस्याओं को उठाया था और मोदी सरकार से इन्हें दुरुस्त करने को कहा था।
आउटलुक मैगजीन में लिखे एक लेख में भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष सजी नारायण ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था जिस दिशा में जा रही है उससे साबित होता है कि सरकार न तो मुद्दों को पहचान पा रही है और न ही उनका समाधान करने का कोई तरीका खोज पा रही है। सजी नारायण ने लिखा है कि केंद्र सरकार एकदम पश्चिमी पूंजीवादी मॉडल की तरह काम कर रही है जो गरीब विरोधी है। सजी नारायण के मुताबिक जॉबलैस ग्रोथ यानी ऐसा विकास जिसमें रोजगार के अवसर न पैदा हों, देश की समस्या है। उन्होंने कहा है कि न तो नौकरियां पैदा हो रही है और न ही स्किल डवलेपमेंट के नतीजे सामने आए हैं।
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सजी नारायण ने अपने लेख में मोदी सरकार द्वारा योजना आयोग की जगह बनाए गए नीति आयोग की भी आलोचना की है। उन्होंने लिखा है कि इस आयोग में भी वही लोग हैं जो कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के दौर में योजना आयोग में होते थे, ऐसे में इसमें कोई अंतर नहीं सामने आया है।
लेख में सजी नारायण ने दावा किया है कि विदेशी निवेश को लेकर सरकार का पागलपन देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों और कारोबारियों को बरबाद कर रहा है। उनका कहना है कि अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां छोटे दुकानदारों के कारोबार पर हमला कर रही हैं। उनका कहन है कि सेवा क्षेत्र यानी सर्विस सेक्टर को कृषि और उद्योग क्षेत्र का सहयोग क्षेत्र होना चाहिए न कि मुख्य कारोबारी क्षेत्र।
सजी नारायण का कहना है कि देश की आर्थिक हालत का इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस देश की मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि आजादी के बाद के सबसे निचले स्तर पर है और कृषि क्षेत्र भयंकर समस्याओं से दो-चार है, बेरोजगारी चरम पर और 1950 के बाद की सबसे बड़ा ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार में कमी है।
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