महाराष्ट्र सुलग रहा, झुलस रहा है, बंद है। कौन है, जिसकी हरकत से हिंसा और उपद्रव का तांडव महाराष्ट्र में शहर से लेकर गांव और गली से लेकर सड़कों तक नजर आ रहा है? कौन है जो इस हिंसक उपद्रव को पुरस्कार की तरह मानता है?
इसके पीछे दो शख्स हैं। एक हैं भिड़े गुरुजी के नाम से मशहूर 85 साल के संभाजी भिड़े और दूसरे हैं 56 वर्ष के मिलिंद एकबोटे। यही दोनों हैं जिन्होंने हर साल होने वाले एक शांतिपूर्ण कार्यक्रम को हिंसक बना दिया। और यह कोई पहला मौका नहीं है जब इन दोनों ने अपने और पराए की जंग छेड़ी हो। ये दोनों पहले भी ऐसी हरकतें करते रहे हैं।
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लेकिन सबसे रोचक तथ्य यह है कि इनमें से एक संभाजी भिड़े, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरणास्त्रोत हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री उनके घर जा चुके हैं, उनसे मिलते रहे हैं। और जैसा कि पीएम मोदी की आदत है, जहां जाते हैं, वहां के बारे में कहते हैं कि वे आए नहीं हैं, उन्हें बुलाया गया है, उन्होंने संभाजी भिड़े के घर जाते वक्त भी कहा था, कि वे सांगली आए नहीं हैं, उन्हें तो संभाजी भिड़े यानी भिड़े गुरुजी से आदेश मिला था।
तो कौन हैं संभाजी भिड़े उर्फ भिड़े गुरुजी और मिलिंद एकबोटे? सबसे पहले भिड़े गुरुजी के बारे में जान लीजिए।
बात 2008 की है, जब आशुतोष ग्वारिकर की फिल्म जोधा-अकबर रिलीज होने वाली थी। महाराष्ट्र में एक गुट ने इस फिल्म का विरोध करने का ऐलान किया, और जब फिल्म रिलीज हुई तो संभाजी भिड़े ने अपने लोगों के साथ मिलकर सिनेमा घरों में तोड़फोड़ की। इस घटना से संभाजी भिड़े रातों रात राष्ट्रीय स्तर पर जान लिए गए।
संभाजी यहीं नहीं रुके। 2009 में गणेशोत्सव के दौरान एक गणेश पंडाल में किसी कलाकार की रचना पेश की जानी थी। लेकिन प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी। इससे नाराज भिड़े गुरुजी ने अपने गृहनगर सांगली में बंद का आव्हान किया जो पूरी तरह कामयाब रहा। दरअसल इस रचना में शिवाजी द्वारा आदिल शाह की सेना के कमांडर अफजल खान की हत्या के बारे में प्रस्तुति थी।
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इस बार भिड़े गुरुजी और मिलिंद एकबोटे ने बेहद खतरनाक खेल खेला। उन्होंने हिंदुत्ववादी ताकतों को दलितों के खिलाफ भड़काया। इसके लिए उन्होंने गोविंद गायकवाड नाम के एक माहर की समाधि को ध्वस्त कर दिया। किंवदंती है कि माहर गोविंद राव गायकवाड ने उस समय शिवाजी के पुत्र संभाजी राजे भोसले के शव का अंतिम संस्कार किया था, जब मुगलों के डर से कोई संभाजी के शव को हाथ तक लगाने को तैयार नहीं था।
इन दोनों ने माहर गोवंद राव गायकवाड की समाधि को ध्वस्त करने का समय सोच-समझकर तय किया था। यह समाधि पुणे जिले के वाधु गांव में है। इन्हें पता था कि हर साल पहली जनवरी को हजारों-लाखों दलित करीब के गांव भीमा-कोरेगांव में इकट्ठा होकर अंग्रेजों के हाथों पेशवा सेना की हार का जश्न मनाते हैं। जश्न का कारण यह है कि अंग्रेजी सेना की जिस टुकड़ी ने यह जीत हासिल की थी, उसमें मुख्यतौर पर दलित सैनिक थे।
भिड़े गुरुजी और मिलिंद एकबोटे को इसी जश्न से ऐतराज है। इनका मानना है कि गोविंद राव गायकवाड के बारे में जो किंवदंती है, वह अंग्रेजों की गढ़ी हुई है, और अंग्रेजों को हाथ पेशवा की हार का जश्न नहीं मनाया जा सकता।
29 दिसंबर 2017 को गोविंद गायकवाड की समाधि ध्वस्त करने के बाद मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े ने हिंदुत्ववादी स्वंय सेवकों को भीमा-कोरेगांव में प्रदर्शन के लिए उकसाया और उन्हें वहां भेजा। भीमा-कोरेगांव में पहले से हजारों दलित जमा थे। दलितों और हिंदुत्ववादी स्वंयसेवकों का आमना-सामना हुआ जो देखते-देखते टकराव और फिर हिंसा में बदल गया। भीमा-कोरेगांव से शुरु हुआ उपद्रव पहले पूरे पुणे शहर और फिर पूरे महाराष्ट्र में फैल गया।
हालांकि इस मामले में भिड़े और एकबोटे, दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है, लेकिन दोनों अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। और, इस बात पर किसी को अचरज भी नहीं हैं, क्योंकि दोनों के ही आरएसएस से गहरे रिश्ते हैं और दोनों का ही महाराष्ट्र और केंद्र की सरकार में अच्छा खासा प्रभाव है।
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2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के लिए अभियान शुरु किया तो उन्होंने महाराष्ट्र के सांगली में भिड़े के घर जाकर उनके पैर छुए थे। बाद में एक रैली में मोदी ने कहा था कि, “मैं खुद सांगली नहीं आया हूं। मुझे तो भिड़े गुरुजी ने आपके शहर आने का आदेश दिया था, इसलिए मैं यहां हूं।”
भिड़े के अनुयाइयों की तादाद अच्छी खासी है। खासतौर से सांगली, कोल्हापुर और सतारा जिलों में। और युवाओं पर उनकी अच्छी पकड़ है। भिड़े गुरुजी 85 वर्ष की उम्र में भी नंगे पैर चलते हैं, साइकिल चलाते हैं, सरकारी बसों से यात्रा करते हैं और उनका अपना खुद का मकान भी नहीं है। भिड़े न्यूक्लियर फिजिक्स में एमएससी हैं और गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं। भिड़े पुणे के फर्गुसन कॉलेज में फिजिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं। लेकिन बाद में उन्होंने आरएसएस का दामन थाम लिया और उसके प्रचारक बन गए।
1980 में भिड़े ने अपना संगठन शिवा प्रतिष्ठान शुरु किया। इसका मकसद शिवाजी और उनके पुत्र और वारिस संभाजी का संदेश लोगों तक पहुंचाना था। भिड़े के भाषणों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत खुलेआम दिखती है।
अब बात दूसरे शख्स मिलिंद एकबोटे की। एकबोटे का पहला परिचय तो यह जान लीजिए कि उनके खिलाफ दंगा फैलान, बिना अनुमति के प्रवेश करने, आपराधिक धमकी और दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने की कोशिश करने समेत 12 केस दर्ज हैं। इनमें से पांच मामलों में उन्हें दोषी करार दिया गया है। 1997 से 2002 के बीच पुणे में बतौर बीजेपी नगर निगम पार्षद अपने पहले कार्यकाल के दौरान, उन्होंने हज हाउस के निर्माण मुद्दे पर एक मुस्लिम पार्षद के साथ मारपीट की थी।
एकबोटे का दूसरा परिचय यह है कि वे आरएसएस और बीजेरी से बहुत गहरे से जुड़े हैं। एकबोटे का पूरा परिवार संघ से जुड़ा हुआ है। 1997 से 2002 के बीच एकबोटे बीजेपी के टिकट पर पुणे में पार्षद रहे। अगली बार उन्होंने जब टिकट नहीं मिला था तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और जीते थे। लेकिन 2007 में वे चुनाव हार गए तो चर्चा में बने रहने के लिए एकबोटे ने हिंदू एकता मंच नाम से एक संगठन की शुरुआत की।
यह वही मंच है जो अपनी स्थापना के बाद से लगातार वैलेंटाइन डे पर युवाओं के साथ मारपीट करता है। 2014 में एकबोटे ने शिवसेना के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। एकबोटे की एक भाभी ज्योत्सना एकबोटे पुणे में बीजेपी से पार्षद हैं।
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