देश में सियासी फिजां के साथ शिक्षा और संस्कृति की दुनिया का बदलता रंग गहराने लगा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता रहे राम बहादुर राय इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरमैन हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सचिव के तौर पर काम कर चुके शक्ति सिन्हा नेहरू मेमोरियल एंड म्यूजियम के चेयरमैन हैं।
यही नहीं लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद पर आरएसएस से जुड़े लोग बैठाए जा चुके हैं। यही हाल राजभवनों का है। आरएसएस से जुड़े संगठनों को दफ्तर बनाने के लिए राउज एवेन्यू में बेशकीमती जमीन दी जा चुकी है। बीजेपी शासित प्रदेशों में आरएसएस को एक विषय के तौर पर सेकंडरी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा चुका है। यहां तक कि कुछ विश्वविद्यालयों के भी पाठ्यक्रम में आरएसएस दाखिल हो चुका है। कुल मिलाकर शिक्षा और संस्कृति का भगवाकरण अपने चरम पर है।
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उनका पहला लक्ष्य राज्य की संस्थाएं हैं, खासतौर पर वे संस्थाएं जो शिक्षा और संस्कृति से जुड़ी हैं। उनका एजेंडा इन संस्थाओं में खास तरह के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जड़ें फैलाना है जिसे उनके कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं में दीर्घकालिक बदलाव के जरिये पूरा करना है। उन्होंने अपने वफादारों को इन संस्थाओं में ऊंचे पदों पर बैठा रखा है, ताकि वे इन बदलावों को अंजाम दे सकें।
वे चाहते हैं कि भारतीय इतिहास, साहित्य और संस्कृति को उन प्रभावों से मुक्त किया जाए जिन्हें वे पश्चिमी, मुगल, वामपंथी और समाजवादी कहते हैं। वे ऐसा राष्ट्र बनाना चाहते हैं जिसमें अल्पसंख्यकों को कोई अधिकार न हो और वे अपनी बेहतरी, अपने हक के लिए बहुसंख्यकों की इच्छा पर निर्भर रहें।
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नवोदय विद्यालयों, सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों, 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर कुछ आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में क्रिसमस को सुशासन दिवस के तौर पर मनाने का आदेश इसी दिशा में लिया गया पहला कदम है। अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. हेडगेवार, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे आरएसएस नेताओं और हिंदू महासभा के पूर्व नेता मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों की जयंती मनाई जाएगी।
संघ के एजेंडे में इस तरह के संस्थानों पर कब्जा करके इनके पाठ्यक्रमों में बदलाव करना है। सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, शिमला स्थिति इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च, कुछ आईआईटी संस्थानों और सबीएसई के प्रमुख के तौर हिंदुत्व समर्थक लोगों को नियुक्त कर रखा है।
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मोदी सरकार पर आरएसएस के प्रभाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि सभी केंद्रीय मंत्रियों के सहयोगियों में कम से कम एक आरएसएस का व्यक्ति है। सरकार में बड़े पदों पर सभी नियुक्तियां बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव स्तर पर जांच-पड़ताल के बाद ही होती है और राष्ट्रीय सचिव आरएसएस का ही व्यक्ति होता है।
दिलचस्प बात यह है कि यह सब पिछले पांच साल के दौरान ही हुआ। हाल के लोकसभा चुनावों में अपने बूते स्पष्ट बहुमत पाने वाली नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के मौजूदा पांच साल के कार्यकाल में देश का पूरी तरह भगवाकरण हो जाने की प्रबल संभावना है।
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