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मुंबई यूनिवर्सिटी का भगवा चेहरा उजागर, अधिकारियों को ट्रेनिंग के लिए आरएसएस से जुड़ी संस्था में भेजने पर सवाल

रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी को आरएसएस और बीजेपी का थिंक टैंक माना जाता है, जहां सांप्रदायिक विचारधारा की घुट्टी पिलाई जाती है। लेकिन मामला सामने आने पर शिक्षा मंत्री ने मुंबई यूनिवर्सिटी के वीसी को आदेश देकर इस प्रशिक्षण को बीच में ही रद्द करवा दिया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र में बीजेपी की सत्ता जाने के बाद मुंबई यूनिवर्सिटी का भगवा चेहरा एक बार फिर सामने आया है। हाल ही में यूनिवर्सिटी द्वारा अपने 30 प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण के लिए रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी संस्था में भेजने का मामला सामने आया। लेकिन कांग्रेस नेता राजीव सातव की जागरूकता की वजह से यूनिवर्सिटी के इन 30 प्रशासनिक अधिकारियों का यह प्रशिक्षण अधूरा रह गया, जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आरएसएस की विचारधारा फैलाने के मकसद से रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा गया था।

यहां बता दें कि रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी को आरएसएस और बीजेपी का थिंक टैंक माना जाता है, जहां आरएसएस की विचारधाराओं की ही घुटी पिलाई जाती है। लेकिन कांग्रेस नेता की शिकायत पर राज्य के उच्च एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा मंत्री उदय सावंत ने यूनिवर्सिटी के वीसी डॉक्टर सुहास पेडणेकर से चर्चा कर इस प्रशिक्षण को बीच में ही रद्द करवा दिया। शिक्षा मंत्री ने इस पूरे मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया है।

उधर कई छात्र संगठनों और सीनेट सदस्यों ने वीसी से इस्तीफे की मांग की है। इन छात्र संगठनों का मानना है कि यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक अधिकारियों को रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी में प्रशिक्षण दिलाने के पीछे मंशा साफ है कि उन्हें आरएसएस की विचारधारा के रंग में रंगना था और फिर उसी विचारधारा को यूनिवर्सिटी में फैलाना था। इस प्रशिक्षण के लिए यूनिवर्सिटी की ओर से दो लाख रूपये रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी को दिया गया था और ये रकम छात्रों की फीस से जमा राशि का हिस्सा माना जा रहा है।

प्रशिक्षण का यह मामला उजागर होने से पहले भी यूनिवर्सिटी के एकेडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स के निदेशक प्रोफेसर योगेश सोमण ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी के खिलाफ एक वीडियो चलाया था। इससे विवाद पैदा हुआ तो उसके बचाव में बीजेपी नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री आशीष शेलार आगे आए थे। यूनिवर्सिटी ने विवाद को ठंडा करने के मकसद से प्रोफेसर सोमण को छुट्टी पर भेज दिया। अब प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण के मामले में भी बीजेपी नेता शेलार यूनिवर्सिटी प्रशासन और रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी के बचाव में कूद पड़े हैं। हालांकि रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी की ओर से सफाई में कोई बयान नहीं आया है। लेकिन शेलार ने प्रशिक्षण कार्यक्रम को रद्द कराने के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर वैचारिक द्वेष से कार्रवाई करने का आरोप लगाया है।

पिछले साल भी नागपुर यूनिवर्सिटी में आरएसएस से जुड़े विषय को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के मुद्दे पर उसे हटाने के लिए छात्र संगठनों ने आंदोलन किया था। तब भी छात्र संगठनों ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन बीजेपी सरकार राज्य के तमाम यूनिवर्सिटी में आरएसएस की विचारधारा को फैलाने के लिए सुनियोजित तरीके से काम कर रही है। आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित शिक्षाविदों को उपकुलपति के पदों पर नियुक्त किया गया है। राज्य में तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार के दौरान ही डाक्टर सुहाग पेडणेकर को 2018 में मुंबई यूनिवर्सिटी वीसी नियुक्त किया गया था।

इस बीत चर्चा है कि पिछले साल मुंबई यूनिवर्सिटी में राज्य के तमाम उपकुलपतियों की एक गुप्त बैठक बुलाई गई थी, जिसमें आरएसएस की विचारधारा को कैसे फैलाना है इस पर भी चर्चा हुई थी। सूत्रों का कहना है कि उसी चर्चा का नतीजा है कि यूनिवर्सिटी के उप कुलसचिव, सहायक कुलसचिव, सिस्टम एंड नेटवर्क मैनेजर, सीनियर सिस्टम प्रोग्रामर, मुख्य लेखापाल सहित 30 प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया और उन्हें 31 जनवरी और 1 फरवरी को दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए भायंदर के उत्तन गांव स्थित रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी ले जाया गया था।

इधर एनएसयूआई और युवा सेना जैसे छात्र संगठनों का आरोप है कि इस प्रशिक्षण के मामले में वीसी डॉक्टर सुहाग पेडणेकर की संदिग्ध भूमिका है। इसलिए छात्र संगठन अब उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। एनएसयूआई के नेता निखिल कांबले का कहना है कि रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी एक राजनीतिक पार्टी बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा का प्रचार करने वाली संस्था है। उसकी विचारधारा के कई सदस्यों को यूनिवर्सिटी में गलत तरीके से भर्ती किया गया है और प्रशिक्षण के लिए भी प्रशासनिक अधिकारियों का चुनाव तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही किया गया था।

युवा सेना से जुड़े सीनेट सदस्य प्रदीप सावंत ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि वाइस चांसलर से हमने कालीना में एक ऑडिटोरियम बनाने की मांग की तो फंड नहीं होने का रोना रोया, जबकि गैरकानूनी तरीके से प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण के नाम पर दो लाख रूपये खर्च किए गये। यह भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि एक राजनीतिक संस्था को यूनिवर्सिटी के कई गोपनीय नियमों और कामकाज के तरीकों के बारे में बताकर अपने प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा था।

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