युवा साध्वी पद्मावती के आमरण अनशन को एक माह से अधिक हो गया है। बिहार के नालंदा में जन्मी तेइस साल की युवा पद्मावती मातृ-सदन, हरिद्वार में गंगा की तपस्या कर रही हैं। स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) के आमरण अनशन और बलिदान से प्रेरित होकर उन्होंने स्वयं भी इसी राह पर चलने का निश्चय किया है। गंगा नदी में होने वाले खनन और बांधों पर रोक, उसकी सेहत को खराब करने वाला कोई काम नहीं हो और मां गंगा शुद्ध सदा नीरा बहती रहे जैसे लक्ष्य लेकर पद्मावती अनशन कर रही हैं।
मां गंगा के लिए उनकी इस बेटी का यह बहुत बड़ा त्याग है, ऐसा अहिंसक त्याग जो दुनिया में इस उम्र के लोग आमतौर पर नहीं करते। यूरोप के देश स्वीडन की किशोरी ग्रेटा थन्बर्ग ने केवल जलवायु परिवर्तन के संकट पर बोलना शुरू किया तो उसे पूरी दुनिया में प्रसिद्धि दी गई। दूसरी तरफ, हमारी युवा साध्वी पद्मावती की बात उत्तराखंड, केंद्र सरकार और संयुक्त राष्ट्रसंघ (यूएनओ) संवेदनहीन बनकर अनसुना कर रहे हैं।
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हमारी सरकार और समाज का दायित्व बनता है कि वे युवाओं की साधना सिद्धि में मदद करें, उनकी त्याग और तपस्या को मान्यता दें। युवाओं की साधना और त्याग-तपस्या की पहचान ही भारत को दुनिया का गुरु बनाने का रास्ता है। पद्मावती गंगा जल की विशिष्टता को बचाने वाली अविरलता की मांग कर रही हैं। अविरलता के बिना गंगा की निर्मलता संभव नहीं है, इसलिए निर्मलता के नाम पर बंदरबांट करना भी उचित नहीं है। गंगा को अविरलता प्रदान करने के लिए बांध निर्माण और खनन बंद करने होंगे।
पद्मावती के समर्थन में देशभर के 17 राज्यों के 150 लोगों ने छह जनवरी को हरिद्वार में घोषणा की कि ‘हम भारतवासी गंगा पर्यावरण सम्मेलन, हरिद्वार में 17 राज्यों में फैली संपूर्ण गंगा घाटी के 11 राज्यों के प्रतिनिधि साध्वी पद्मावती के ‘गंगा सत्याग्रह’ को सर्वसम्मति से समर्थन देते हैं।’ सम्मेलन ने इस आशय का प्रस्ताव पारित किया कि भारत की न्यायपालिका गंगा से संबंधित मामलों में सरकारों और सभी राजनीतिक दलों समेत यूएनओ को प्रभावी कदम उठाने के लिए सुझाव दे।
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इससे पहले यूएनओ ने गंगा नदी की सफाई में सरकार की ढिलाई और निष्क्रियता के मद्देनजर 111 दिन अनशन रखने के उपरांत 86 वर्षीय पर्यावरण विज्ञानी और कार्यकर्ता प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के प्राणोत्सर्ग का संज्ञान लेते हुए मोदी सरकार को प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया था।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने नेपाल, भारत और बांग्लादेश में बहने वाली और हिंदुओं द्वारा देवी मानकर पूजी जाने वाली गंगा नदी को अत्यधिक प्रदूषित माना है। यूएनईपी का मानना है कि स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अवैध खनन और घातक बांधों से 1600 किलोमीटर में मृतप्राय हो रही गंगा नदी के रक्षार्थ अपना जीवन समर्पित कर दिया। हालांकि, सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के लिए बजट में आवंटन किया है और प्रधानमंत्री मोदी को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाव के प्रयासों के लिए पुरुस्कार से सम्मानित भी किया है, लेकिन इसके बावजूद गंगा-सफाई के सरकारी प्रयास संतोषजनक नहीं हैं।
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यूएनओ गंगा नदी के प्रदूषण के संदर्भ में स्वामी निगमानन्द और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के बाद किसी अन्य पर्यावरण रक्षक को जान गंवाते हुए नहीं देखना चाहता और उसका यह मंतव्य स्वयं प्रधानमंत्री को सूचित किया गया है। अमेरिका की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी (बर्कले), जहां से स्वामी ज्ञानस्वरूप सांनद उर्फ प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने पीएचडी की डिग्री हासिल की थी, ने उनके देहावसान पर शोक व्यक्त करते हुए उनके त्याग को प्रेरणादायी माना है।
गंगा सम्मेलन में उपस्थित गंगा सेवक इस संकल्प के साथ विदा हुए हैं कि “साध्वी पद्मावती का गंगा सत्याग्रह सिद्धी प्राप्त करे और पद्मावती सतायु हों। हम सबकी शक्ति ‘गंगा सत्याग्रह’ में पद्मावती की आत्मशक्ति के साथ जुड़े और सरकार, न्यायपालिका और राजनीतिक दल इस कार्य को जल्दी से जल्दी पूरा करें। गंगा के विशिष्ट गुणों के ज्ञान को पूरी दुनिया को बताने और न्याय, नैतिकता और शांति के लिए अविरल गंगा जल यात्रा आज से ही पूरी दुनिया में चलाई जाएगी।”
सरकार को चाहिए कि वह खुद के लिखित आश्वासनों को जल्दी क्रियान्वित करे। सरकार यदि अपना काम मानकर इसे जल्दी संपादित करेगी तो पद्मावती को अपने प्राणों का बलिदान नहीं करना पड़ेगा और गंगा भी बांध निर्माण और खनन रुकने से स्वस्थ होगी।
(सप्रेस से साभार)
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