देश भर के गांवों में करीब 2,70,000 डाक कर्मचारी पिछले एक सप्ताह से हड़ताल पर हैं, लेकिन केंद्र सरकार कानों में तेल डाले बैठी है। ये कर्मचारी कमलेश चंद्रा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर उन्हें सरकारी कर्मचारी के तौर पर नियमित किए जाने की मांग कर रहे हैं। इस कमेटी ने नवंबर 2016 में अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को दी थीं।
ग्रामीण डाक सेवक के बैनर तले 22 मई को शुरु हुई यह हड़ताल मंगलवार को आठवें दिन में पहुंच गई है। ऑल इंडिया पोस्टर इम्प्लाइज़ यूनियन का आरोप है कि अभी तक मोदी सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। हड़ताल के कारण देश भर के करीब 1,29,000 ग्रामीण डाकघर ठप पड़े हैं। हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि मांगे पूरी होने तक वे काम पर नहीं लौटेंगे।
ग्रामीण डाक सेवक वे गैर-विभागीय एजेंट होते हैं जो ग्रामीण इलाकों में डाक सेवाएं मुहैया कराते हैं। इनकी मांग है कि उन्हें भी बाकी डाक कर्मचारियों की तरह वेतन और सुविधाएं दी जाएं।
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डाक सेवकों की मांगों पर विचार के लिए केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग में एक सदस्यी कमलेश चंद्रा कमेटी बनाकर ग्रामीण इलाकों में डाक सेवाएं देने वाले एजेंटों की मांगों पर सिफारिशें देने को कहा था। कमेटी को डाक सेवकों की वेतन अनियमितताएं, सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा की स्टडी कर अपनी रिपोर्ट देनी थी।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिशें की थीं कि ग्रामीण डाक अधिकारियों को कम से कम 10,000 और अधिकतम 35,480 रूपए मानदेय दिया जाए साथ ही नौकरी में 50 साल की अधिकतम सीमा को खत्म किया जाए। कमेटी ने सालाना 3 फीसदी वेतन वृद्धि और बच्चों की शिक्षा के लिए सालाना 6,000 रुपए भत्ता देने की भी सिफारिश की थी। इसके अलावा विशेष इलाकों में काम करने के लिए 500 रुपए प्रतिमाह का अतिरिक्त भत्ता देने का भी प्रावधान करने की सिफारिश थी। कमेटी ने अंतरिम राहत के तौर पर दी जाने वाली राशि को भी 60,000 से बढ़ाकर 5,00,000 रुपए करने को भी कहा था।
हड़ताली यूनियन के महासचिव पी पांडुरंगराव का कहना है कि, “सरकार हमें कुछ भी देने को तैयार नहीं है, इसीलिए हमने हड़ताल को अनिश्चितकालीन करने का फैसला किया है।” उन्होंने बताया कि सरकार ने सिफारिशें लागू करने के लिए तीन महीने के वक्त की बात की थी, लेकिन 18 महीने गुजरने पर भी कुछ नहीं हुआ, ऐसे में हमें सरकार पर भरोसा नहीं है।
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पांडुरंगराव ने बताया कि, “सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद हमारी हालत दैनिक मजदूर से बदतर है। हमें कोई सब्सिडी नहीं मिलती, कोई लाभ नहीं मिलता, हम महज मामूली मानदेय पर काम करते रहे हैं। हमें दफ्तर के लिए भवन और बिजली बिल तक की बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दी जा रही हैं।”
हालांकि ग्रामीण डाक सेवक केंद्र सरकार के कर्मचारी होते हैं, लेकिन उन्हें अस्थाई कर्मचारी मानकर उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित रखा जाता है।। पांडुरंगराव के मुताबिक, “30-40 साल काम करने के बाद भी हमें रिटायर होने पर मात्र एक लाख रुपए दिए जाते हैं, हमारी प्रतिदिन तंख्वाह 300 रुपए के आसपास है और हमें मात्र 50-60 रुपए की सालाना वेतन बढ़ोत्तरी दी जाती है।”
वहीं डाक कर्मचारी संघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष वीरेंद्र शर्मा का कहना है कि, “इस बारे में सरकार से कम से कम पांच बार बात हुई है, लेकिन कुछ भी नतीजा नहीं निकल सका।” उन्होंने ऐलान किया कि पहली जून को वे संचार मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करेंगे।
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