महाराष्ट्र के एक यूनिवर्सिटी के इतिहास के पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े विषय को शामिल किए जाने से विवाद खड़ा हो गया है। यूनिवर्सिटी पर पाठ्यक्रम से लेकर छात्रों को भी वैचारिक रूप से भगवाकरण के रंग में रंगने का प्रयास करने का आरोप लग रहा है। गैरभाजपाई छात्र संगठन इस तथाकथित भगवाकरण के खिलाफ आंदोलनरत हैं। ये छात्र संगठन पाठ्यक्रम में शामिल किए जा रहे आरएसएस से जुड़े विषय को हटाने की मांग कर रहे हैं।
यह आशंका भी जताई जा रही है कि अगर आरएसएस से जुड़ा यह विषय नहीं निकाला गया तो महाराष्ट्र की सभी यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रमों में ऐसे विषय शामिल करके आरएसएस की छवि सुधारने और उसी सोच वाले युवा तैयार करने की कोशिश की जाएगी।
Published: undefined
आरएसएस के जन्मस्थल नागपुर स्थित राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी के इतिहास के संशोधित पाठ्यक्रम में आरएसएस से जुड़ा एक विषय शामिल किया गया है जिसका शीर्षक है-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका। इसपर कांग्रेस और एनसीपी ने कड़ा विरोध जताया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का कहना है कि आरएसएस का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा है। आरएसएस हमेशा संविधान के खिलाफ रहा है। इसके बाद भी पाठ्यक्रम में आरएसएस को शामिल करना और कुछ नहीं, बल्कि शिक्षा में आरएसएस की विचारधारा को शामिल करने की साजिश है।
एनसीपी के विधायक जितेंद्र आव्हाड और एमआईएम के विधायक वारिस पठान ने भी इसी तरह की राय जाहिर की है। विपक्ष ने यह भी कहा है किअगर बीजेपी यूनिवर्सिटी में आरएसएस के बारे में पढ़ाना ही चाहती है तो इतिहास के छात्रों को यह भी बताना चाहिए कि आरएसएस को तीन बार प्रतिबंधित क्यों किया गया था।
Published: undefined
लेकिन बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि आरएसएस पर कांग्रेस ने सत्ता का दुरुपयोग कर प्रतिबंध लगाया था। क्योंकि, कांग्रेस एक परिवार के सिवाए राष्ट्र निर्माण में किसी के योगदान को स्वीकार नहीं कर सकती। इसलिए आरएसएस के इतिहास को कोर्स में शामिल करने का विरोध कर रही है। प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता गिरीश व्यास के मुताबिक नागपुर यूनिवर्सिटी पहला यूनिवर्सिटी नहीं है, जहां पाठ्यक्रम में आरएसएस को शामिल किया गया है और भी दूसरे यूनिवर्सिटी हैं जहां आरएसएस के बारे में पढ़ाया जा रहा है।
नागपुर यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर यह संशोधित पाठ्यक्रम उपलब्ध है। बीए (इतिहास) के भाग-2 के चतुर्थ सत्र में भारत का इतिहास(1885-1947) का पाठ्यक्रम है। इसमें चार इकाई हैं जिसकी इकाई तीन का पहला विषय है- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका। इसके अलावा दो अन्य विषय हैं- क्रिप्स मिशन और कैबिनेट मिशन योजना।
अन्य तीन इकाइयों में जो विषय हैं वो हैं- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, नरमपंथी राजनीति का स्वरूप (1885-1905), उग्र राष्ट्रवाद का उदय और विकास (1900-1920), असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, सुभाष चंद्र बोस, आजाद हिंद फौज, माउंटबेटन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम। बताया जाता है कि सांप्रदायिकता के उदय एवं विकास विषय को हटाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषय को शामिल किया गया है।
Published: undefined
इस विवादास्पद विषय के विरोध में छात्र संगठन एनएसयूआई के प्रतिनिधिमंडल ने यूनिवर्सिटी के उपकुलपति सिद्धार्थ विनायक काणे से मुलाकात की और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषय को पाठ्यक्रम से निकालने की मांग रखी। उस वक्त यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ स्टडीज के अध्यक्ष डाक्टर श्याम कोरेटी भी उपस्थित थे। महाराष्ट्र एनएसयूआई के उपाध्यक्ष अभिषेक सिंह ने बताया कि उपकुलपति ने प्रतिनिधिमंडल को कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया बल्कि इतना ही कहा कि वह इस मामले को देखेंगे।
अभिषेक ने कहा कि अगर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पाठ्यक्रम से इस विषय को नहीं हटाया तो इसके खिलाफ पूरे प्रदेश की यूनिवर्सिटी में आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि हम कॉलेज में जाकर स्टूडेंट्स से अपील करेंगे कि वे आरएसएस से जुड़े इस विषय का चयन नहीं करें। क्योंकि शिक्षा में किसी व्यक्ति विशेष, पार्टी, धर्म को इतिहास से जोड़कर न रखा जाए। इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। हमारी युवा पीढ़ी उसी तरह की सोच को लेकर आगे बढ़ेगी जो समाज और देश के लिए अच्छा नहीं है।
इतिहास का संशोधित पाठ्यक्रम इसी साल से लागू किया गया है यानी दूसरे साल में प्रवेश करने वाले छात्रों को चौथे सेमेस्टर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषय पढ़ने का मौका मिलेगा। यूनिवर्सिटी की ओर से कुछ लेखकों की किताबों की सूची देकर पढ़ने के सुझाव दिए गए हैं। इसमें एक मराठी लेखक एसजी कोलारकर की किताब भारत का इतिहास (1707-1950) भी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसमें आरएसएस के बारे में काफी सकारात्मक पक्ष लिखा गया है।
Published: undefined
इधर यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ स्टडीज के सदस्य सतीश चैफल के मुताबिक भारत का इतिहास (1885-1947) इकाई में एक अध्याय राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका को जोड़ा गया है जो बीए (इतिहास) द्वितीय वर्ष पाठ्यक्रम के चौथे सेमेस्टर का हिस्सा है। इससे छात्र इतिहास में नई विचारधारा के बारे में जान पाएंगे। उन्होंने यूनिवर्सिटी के फैसले को सही बताया और कहा कि इतिहास के पुनर्लेखन से समाज के सामने नए तथ्य आते हैं। सतीश ने दावा किया कि इससे पहले 2003-2004 में यूनिवर्सिटी के एमए (इतिहास) पाठ्यक्रम में एक अध्याय- आरएसएस का परिचय था।
दूसरी तरफ बोर्ड ऑफ स्टडीज के अध्यक्ष डॉक्टर श्याम कोरेटी ने मीडिया में स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषय के तहत संघ की विचारधारा, उसके प्रचार के कार्य और सामाजिक योगदान के बारे में पढ़ाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि उस दौर में वामपंथी विचारधारा, आंदोलनकारी विचारधारा और सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा की तरह ही संघ की भी विचारधारा थी। इसलिए इसपर कोई विवाद नहीं है।
लेकिन पुरातत्ववेत्ता कुरूप दलाल का कहना है कि शैक्षणिक संस्थानों में कोई भी इतिहास पढ़ाएं, उससे किसी का विरोध नहीं है। अगर आप पक्षपातपूर्ण तरीके से चुनकर पढ़ाते हैं तो यह गलत है। इतिहास को लेकर इतना जागरूक होना जरूरी है कि उसे कौन-सी दिशा से पढ़ाने वाले हैं। क्योंकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। उन दोनों पहलुओं के बारे में बताया जाना चाहिए। आप आरएसएस का इतिहास जरूर पढ़ाइए पर उसके दोनों पहलू बताना हम शिक्षा शास्त्रियों का कर्तव्य है।
Published: undefined
उन्होंने कहा कि आजादी और सामाजिक लड़ाई में कई तरह के आंदोलन हुए हैं, उन सबके बारे में बताना चाहिए। समाजवादी आंदोलन, वामपंथी आंदोलन, मुस्लिम आंदोलन सहित कई आंदोलन हुए हैं। विचारधाराओं की भी लड़ाई हुई है। लेकिन इस समय सत्ता के प्रभाव में आकर सिर्फ आरएसएस के बारे में पढ़ाना है तो उसके अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं को पढ़ाना चाहिए। अब जागरूक होना इसलिए जरूरी है कि इतिहास के नाम पर कुछ भी पढ़ाया जाता है। यूनिवर्सिटी को भी इस पर ईमानदारी और तटस्थ होकर फैसला लेना चाहिए।
हालांकि, इससे पहले भी जब शैक्षणिक संस्थानों में आरएसएस की विचारधारा को थोपने की कोशिश हुई थी, तब भी विरोध हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान देश में शिक्षा के भगवाकरण का विवाद उठा था। साल 2000 में मुरली मनोहर जोशी, वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन मंत्री थे। उस समय विपक्ष ने शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगाया था।
इस समय केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार है। नागपुर में आरएसएस का मुख्यालय है। नागपुर यूनिवर्सिटी के पुराने छात्रों में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं। गडकरी और फडणवीस नागपुर के ही हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय नागपुर यूनिवर्सिटी में बीजेपी और आरएसएस का प्रभाव ज्यादा है। यही वजह है कि आरएसएस की विचारधारा को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयोग नागपुर यूनिवर्सिटी में किया जा रहा है। इसकी सफलता के साथ ही राज्य की हर यूनिवर्सिटी में इसी तरह के पाठ्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। इस पाठ्यक्रम के जरिए बीजेपी महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में लाभ लेने की रणनीति भी तैयार कर रही है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined